
बरेली, [TV 47 न्यूज नेटवर्क]। प्रस्तावित सितारगंज फोरलेन और रिंग रोड प्रोजेक्ट में धांधली पर एनएचएआइ के परियोजना अधिकारी (पीडी) बीपी पाठक को निलंबित कर दिया गया। भुगतान में संदिग्ध भूमिका पाए जाने पर लखनऊ में बैठने वाले क्षेत्रीय अधिकारी संजीव कुमार शर्मा को भी हटा दिया गया। एनएचएआइ मुख्यालय ने शुक्रवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया।
इसके पूर्व धांधली की आशंका जताते हुए खबरें प्रकाशित की थीं। उस समय एनएचएआइ मुख्यालय से टीम जांच करने आई थी। टीम की रिपोर्ट के आधार पर मुख्यालय ने कार्रवाई कर दी, जोकि 100 करोड़ से अधिक की गड़बड़ी की ओर इशारा कर रही। इस प्रकरण में राजस्व से जुड़े अधिकारियों भी फंसेंगे। इसके लिए एनएचएआइ के चेयरमैन संतोष कुमार यादव ने उप्र के मुख्य सचिव को पत्र में लिखा कि कार्रवाई करें। इस संबंध में चेयरमैन का पक्ष लेने के लिए फोन किया मगर, रिसीव नहीं हुआ। वाट्सएप पर भेजे संदेश का उन्होंने जवाब नहीं दिया।
71 किमी के प्रस्तावित बरेली-पीलीभीत-सितारगंज फोरलेन पर सबसे ज्यादा गड़बडी पाई गई। इस प्रोजेक्ट के लिए वर्ष 2021 में भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया शुरू हुई थी। इसके बाद वर्ष 2022 में बीपी पाठक बतौर परियोजना अधिकारी नियुक्त हुए। बताया जाता है कि तत्कालीन परियोजना अधिकारी, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से पीलीभीत से सितारगंज (उत्तराखंड) के बीच के बीच कृषि भूमि पर आनन-फानन कई भवन बनवा गए गए। टीन शेड आदि डालकर उनका भूउपयोग परिवर्तित कर अधिक मुआवजा ले लिया गया।
नियमानुसार कृषि भूमि की तुलना में आवास का अधिक मुआवजा मिलता है। इसका लाभ लेने के लिए पूरा रैकेट बनाया गया था। मिलीभगत के कारण ही प्रस्तावित मार्ग पर भवन बने और उनके लिए मुआवजा भी 15-15 दिनों के अंदर ही जारी कर दिया गया। इससे ध्यान भटकाने के लिए पीलीभीत शहर से सटे क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू कराने का दिखावा शुरू किया गया, जबकि वहां भूमि का अधिग्रहण ही नहीं हुआ था। जांच कमेटी ने ऐसे कई बिंदुओं पर गड़बड़ी मानी, जिसके बाद कार्रवाई कर दी गई। 2400 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट में 33 गांवों के 450 किसानों से जमीन लेनी है।
रिंग रोड पर भी बदला भूमि उपयोग
इसी तरह बरेली के रजऊ परसपुर से लालफाटक रोड तक 12 किमी और झुमका तिराहे से रामगंगा तिराहे तक करीब 18 किमी का रिंग रोड प्रस्तावित है। इसके 18 किमी वाले रूट पर भी अधिक मुआवजा के लिए खेल शुरू किया गया। वहां भी अधिग्रहण से पहले कृषि भूमि पर अस्थायी भवन बनवाए गए। इस प्रोजेक्ट की भी जांच मुख्यालय से हुई थी। गड़बड़ी में घिरे तत्कालीन परियोजना अधिकारी बीपी पाठक का कुछ समय पहले ओड़िशा ट्रांसफर हो चुका। उन्होंने फोन पर बताया कि निलंबन की सूचना मिली है मगर, इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है। सितारगंज प्रोजेक्ट कर गजट व अधिग्रहण प्रक्रिया मेरे कार्यकाल से पहले हो चुकी थी। मैंने तो प्रोजेक्ट को तेजी से आरंभ कराने के प्रयास किए थे।