
Vantika Agarwaly winning gold medal in Chess Olympiad
नोएडा [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। सेक्टर-27 निवासी वंतिका अग्रवाल ने शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी मां की मेहनत और त्याग का अहम योगदान है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट संगीता अग्रवाल ने बेटी के लिए अपना काम छोड़ दिया। प्रतियोगिता से लेकर अभ्यास तक हमेशा वह बेटी वंतिका के साथ रहती हैं।
हंगरी में रविवार को शतरंज ओलंपियाड खत्म हुआ। शतरंज ओलंपियाड में भी वंतिका अग्रवाल के साथ उनकी मां संगीता अग्रवाल हंगरी में रहीं। लगभग नौ साल की उम्र से वंतिका शतरंज खेल रही हैं। इस दौरान मां संगीता अग्रवाल और पिता आशीष अग्रवाल चार्टर्ड अकाउंट काम करते थे।
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शतरंज में वंतिका लगातार बेहतर प्रदर्शन करने लगी, लेकिन मां और पिता की व्यस्तता के कारण कई प्रतियोगिता में नहीं जा पाती थी। बेटी को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए मां ने चार्टर्ड अकाउंटेंट का काम छोड़ दिया। पिता अब भी अपने काम से जुड़े हुए हैं।
अभी भी मां संगीता अग्रवाल सभी बड़ी प्रतियोगिताओं में बेटी वंतिका के साथ होती हैं। वंतिका की मां संगीता अग्रवाल ने बताया कि बेटी ने शानदार प्रदर्शन कर देश का मान बढ़ाया है। भविष्य में भी शानदार प्रदर्शन का सफर जारी रहेगा।
भाई के साथ शतरंज खेलना शुरू किया
करीब नौ साल की उम्र से वंतिका शतरंज खेल रही हैं। वह भाई विशेष अग्रवाल को शतरंज खेलते देख इस खेल से जुड़ गईं। इसके बाद उन्होंने लगातार सफलता प्राप्त की। प्रदेश शतरंज की चैंपियन रहने के साथ ही राष्ट्रीय चैंपियन भी बनी। साथ ही कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी शानदार प्रदर्शन किया।
शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक
-2021 में महिला ग्रैंडमास्टर का खिताब अपने नाम किया
-2020 शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं
-एशियाई शतरंज चैंपियनशिप में भी जीत हासिल की
-शतरंज में प्रदेश और राष्ट्रीय चैंपियन भी रहीं
राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री कर चुके हैं सम्मानित
शतरंज में वंतिका के बेहतर प्रदर्शन को देखते हुए इसी साल जनवरी में योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित किया। इससे पहले 2014 में राष्ट्रपति सम्मान भी मिल चुका है। वहीं 2012 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं। वंतिका के पिता आशीष अग्रवाल बताते हैं कि वंतिका को बचपन से ही शतरंज खेलने का शौक था। स्कूल के समय में उसे शतरंज लाकर देते वक्त इसका इलम नहीं था कि एक दिन इसी खेल में परिवार के साथ देश को भी गौरवान्वित करेगी।
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