
चुनावी नारों में जुबानी जंग
लखनऊ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। उत्तर प्रदेश में इस बार नौ विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हो रहे हैं और इसके साथ ही राजनीतिक दलों के बीच नारों की जंग छिड़ चुकी है। भाजपा, समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सभी ने इस उपचुनाव में अपने-अपने नारे गढ़े हैं, जो जनता के बीच चर्चा का विषय बन गए हैं।
भाजपा का नारा: ‘बटेंगे तो कटेंगे’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी घोषणा से पहले ही ‘बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा दिया था। इस नारे का संदेश साफ है: भाजपा विपक्ष पर लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने का आरोप लगाती है। भाजपा का यह नारा मतदाताओं को समाज में एकता बनाए रखने का संदेश देने के लिए है।
समाजवादी पार्टी का जवाब: ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’
सपा के कार्यकर्ता विजय प्रताप यादव ने लखनऊ पार्टी कार्यालय के बाहर ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारा लिखा, जो भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे का सीधा जवाब है। इसके अतिरिक्त, सपा ने ‘पीडीए जुड़ेगा और जीतेगा’ जैसे नारों के माध्यम से एकता और समरसता का संदेश दिया है। ‘पीडीए’ का मतलब पंडित, दलित और अगड़ा से है, जो समाज के विभिन्न वर्गों को एक साथ लाने का प्रयास है।
बसपा का संदेश: ‘बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे’
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने भी इस नारे की होड़ में शामिल होकर ‘बसपा से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे, सुरक्षित रहेंगे’ का संदेश दिया है। मायावती ने इस नारे के जरिए बसपा के प्रति लोगों को आकर्षित करने का प्रयास किया है, जिसमें खासकर सुरक्षा और विकास की बात कही गई है।
चुनावी नारों का मनोवैज्ञानिक असर
विशेषज्ञों को कहना है कि चुनावी नारे लोगों के दिमाग पर गहरा असर डालते हैं और एक स्थायी प्रभाव छोड़ते हैं। राजनीतिक दल इन नारों के जरिए मतदाताओं से एक त्वरित और प्रभावी जुड़ाव बनाते हैं, जो कई बार भाषणों से ज्यादा प्रभावी साबित होता है।
उपचुनाव में नारों का असर और भविष्य की रणनीति
उत्तर प्रदेश के इस उपचुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी का नारा अधिक असरकारी साबित होता है और किसे जनता का साथ मिलता है। आगामी 13 नवंबर को मतदान होगा और परिणाम यह तय करेंगे कि नारों की यह जंग किस हद तक मतदाताओं को प्रभावित कर पाई है।