
उत्तर प्रदेश के तेज-तर्रार रहे पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह!
लखनऊ [TV 47 न्यूज नेटवर्क] । सहारनपुर के थाना गंगोह पुलिस और बदमाशों के बीच हुई मुठभेड़ में एक 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित बदमाश घायल हो गया। मुठभेड़ के दौरान पुलिस की गोली लगने से बदमाश को चोटें आईं। घायल बदमाश की पहचान ईनाम पुत्र हसम उर्फ हाजी ममदा, निवासी ग्राम शाहपुर, थाना गंगोह के रूप में हुई है। ईनाम सीतापुर में ATM उखाड़कर चोरी करने वाले गैंग का सदस्य है और इसके खिलाफ सहारनपुर, सीतापुर, और हरियाणा में लगभग एक दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। इसके बाद यह चर्चा जोरों पर है कि आपरेशन लंगड़ा के तहत यह संभव हो सका है। ऐसे में सवाल उठता है कि आपरेशन लंगड़ा क्या है। इसके तहत पुलिस को क्या-क्या छूट है। आपरेशन लंगड़ा के बाद क्या यूपी में अपराध की संख्या में कमी आई है। इसका मकसद क्या है।
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा, मेरे समय में ऐसी कोई नीति नहीं थी
1- उत्तर प्रदेश के तेज-तर्रार पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि मेरे जमाने में ऐसी कोई नीति सरकार और पुलिस महकमे की नहीं थी। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि अब भी यह कोई घोषित नीति होगी। पूर्व डीजीपी ने कहा कि हालांकि मेरे समय में भी यह नियम था कि अगर अपराधी भाग रहा है तो कोशिश होनी चाहिए कि कमर के नीचे गोली मारी जाए। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर गंभीर अपराधी है तो उसके सीने में ही गोली मारनी चाहिए न की टांग में।
2- उन्होंने कहा कि अपराधियों के खिलाफ इसे उत्तर प्रदेश पुलिस की नई रणनीति बताया जा रहा है और अनाधिकारिक रूप से इस कार्रवाई को आपरेशन लगंड़ा के तौर पर प्रचारित भी किया जा रहा है। अपराधियों के ख़िलाफ़ इसे उत्तर प्रदेश पुलिस की नई रणनीति बताया जा रहा है और अनाधिकारिक रूप से इस कार्रवाई को आपरेशन लंगड़ा के तौर पर प्रचारित भी किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कई बार पुलिस आत्मरक्षा के लिए बल प्रयोग करती है। पुलिस एक प्रशिक्षित बल है। अपराधी को काबू करने के लिए, उसे गिरफ्तार करने के लिए और विशेष परिस्थितियों में ही बल प्रयोग किया जाता है।
पुलिस सक्रियता से मुठभेड़ों की संख्या में वृद्धि
यूपी के मौजूदा पुलिस महानिदेशक प्रशांत कुमार पूर्व में कह चुके हैं कि यह कोई योजनाबद्ध तरीके से नहीं किया गया है, लेकिन पुलिस की सक्रियता की वजह से मुठभेड़ों की संख्या बढ़ी है। उनके मुताबिक पुलिस का मकसद किसी अपराधी को गिरफ्तार करना ही होता है और पूरी कोशिश होती है कि उसे घेरकर पकड़ा जाए। बड़ी संख्या में अपराधियों के घायल होना यह साबित करता है कि पुलिस का पहला मकसद गिरफ्तारी है।
सरकार की जीरो टारलेंस नीति
1- उत्तर प्रदेश पुलिस का दावा है कि मार्च 2017 से लेकर अब तक राज्य भर में कुल 8559 एनकाउंटर हुए हैं। इसमें 3349 अपराधियों को गोली मारकर घायल किया गया है। इन मुठभेड़ों में अब तक 146 लोगों की मौत भी हुई है , जबकि इस दौरान 13 पुलिसकर्मी भी मारे गए हैं, जबकि क़रीब 12 सौ पुलिसकर्मी घायल भी हुए हैं। मुठभेड़ों के दौरान 18 हजार से भी ज्यादा अपराधी गिरफ्तार भी हुए हैं। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के दौरान एनकाउंटर की सबसे अधिक 2839 घटनाएं मेरठ में हुई हैं। एनकाउंटर में 61 अपराधियों की मौत हुई है। 1547 अपराधी घायल हुए हैं। इन मामलों में दूसरे नंबर पर आगरा और तीसरे पर बरेली है।
2- उत्तर प्रदेश सरकार अपराध और अपराधियों के खिलाफ जीरो टारलेंस नीति के तहत इसे जायज ठहराते रहे हैं। पिछले साल जुलाई महीने में कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद मुख्य अभियुक्त विकास दुबे और उनके छह साथियों की पुलिस मुठभेड़ में जिस तरह से मौत हुई, एनकाउंटर्स को लेकर सरकार को फिर घेरा जाने लगा।
3- इसके बाद ही यह रणनीति अपनाई गई कि अपराधियों को जान से मारने की बजाय उसे अपंग बना दो। पैर पर गोली मारना उसी का एक हिस्सा है। इससे अपराधी मरता नहीं है, लेकिन उसके मन में पुलिस के प्रति खौफ आजीवन बना रहेगा और पैर खराब हो जाने के कारण अपराध से भी दूर रहेगा।
एनकाउंटर्स को किया गया प्रचारित
उत्तर प्रदेश में मार्च 2017 में सत्ता संभालने के बाद ही प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने एनकाउंटर्स को उपलब्धि के तौर पर प्रचारित किया और विपक्ष, मानवाधिकार संगठनों ने इन एनकाउंटर्स को फर्जी बताते हुए सवाल उठाए। सरकार बनने के करीब डेढ़ साल के भीतर ऐसे मुठभेड़ों में मरने वालों की संख्या जब 58 तक पहुंच गई तो एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी इन एनकाउंटर्स पर सवाल उठाए और रिपोर्ट मांगी।