
पूज्य आचार्य श्री आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 श्री स्वामी बालकानंद गिरी जी महाराज
श्री स्वामी बालकानंद गिरी जी महाराज का जीवन आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। दिल्ली के निवासी बालाकानंद महाराज ने न केवल भौतिक क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की बल्कि आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान बनाई। उनका जीवन इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन संभव है।
बाल्यावस्था से ही सनातन और वैदिक साहित्य में गहरी रुचि के चलते उन्होंने गुरुओं की शरण में रहकर वेदों और दर्शन का अध्ययन किया। परंपरागत शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उनका चयन उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में हुआ, जहां से उन्होंने चिकित्सा का गहन अध्ययन किया।
महज 35 वर्ष की उम्र में उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त हुई, जो उनके जीवन के आध्यात्मिक पहलू की बुलंदियों को दर्शाता है। उनका जीवन दर्शन और विचार आधुनिक युवाओं को यह सिखाते हैं कि भौतिकता और आध्यात्मिकता विरोधी नहीं, बल्कि परस्पर पूरक हो सकते हैं।
आज उनके जीवन और उनके दृष्टिकोण के जरिए हम भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच गहरे संबंधों और उनकी प्रासंगिकता को समझने का प्रयास करेंगे। इसके साथ धर्म और विज्ञान का संबंध, ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ कितना वैज्ञानिक है और सनातन क्यों सर्वश्रेष्ठ है। इन तमाम अनसुलझे पहलुओं पर पूज्य आचार्य श्री आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 श्री स्वामी बालकानंद गिरी जी महाराज (पंचायती तपोनिधि आनंद अखाड़ा भारत) के जवाब —-
प्रश्न : बतौर चिकित्सक, आप भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को किस रूप में देखते हैं?
उत्तर: देखिए, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन एक-दूसरे के पर्याय हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हें अलग-अलग देखना हमारी सबसे बड़ी गलती होती है। भौतिक जीवन का उद्देश्य केवल सुख-सुविधाओं का उपभोग करना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होना है। यही हमारी सनातन परंपरा की शिक्षा है। इस परंपरा में हमें यह सिखाया गया है कि हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।
प्रश्न: यह पंचतत्व क्या हैं और इनका जीवन पर क्या प्रभाव है?
उत्तर: पंचतत्वों का अर्थ केवल भौतिक शरीर से नहीं है, बल्कि इनमें गहरी आध्यात्मिकता समाहित है। पृथ्वी, यह स्थिरता और सहनशीलता का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में संतुलन बनाए रखना और अपनी जड़ों से जुड़े रहना कितना महत्वपूर्ण है। जल, जीवन का आधार है। यह शुद्धता और प्रवाह का प्रतीक है, जो हमें लचीला बनना और जीवन में स्वच्छता को अपनाना सिखाता है। अग्नि, ऊर्जा और परिवर्तन का प्रतीक है। यह हमारे भीतर आत्मबल और प्रकाश को प्रज्वलित करती है। वायु, गति और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह हमारे विचारों और जीवन के प्रवाह को दर्शाती है। आकाश, अनंत संभावनाओं और चेतना का प्रतीक है। यह आत्मा की व्यापकता और हमारी असीमित क्षमताओं को दर्शाता है। इन पंचतत्वों का भौतिक और आध्यात्मिक जीवन दोनों में योगदान है। हमारे शरीर और आत्मा की संरचना को समझने के लिए इनका संतुलन आवश्यक है।
प्रश्न: भौतिक और आध्यात्मिक जीवन का संतुलन कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर: देखिए, सनातन धर्म हमें सिखाता है कि भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को अलग नहीं किया जा सकता। दोनों का सही संतुलन ही हमें पूर्णता की ओर ले जाता है। भौतिक जीवन का प्रबंधन बेहद जरूरी है। भौतिक जीवन में हमें अपने शरीर और मन का ध्यान रखना चाहिए। एक स्वस्थ शरीर और शांत मन आध्यात्मिक साधना के लिए आवश्यक हैं। आध्यात्मिक जीवन हमें सिखाता है कि कैसे हम दया, प्रेम, करुणा और संतुलन को अपने जीवन में शामिल करें।
प्रश्न: क्या भौतिक जीवन में आध्यात्मिकता का महत्व है ?
उत्तर: बिल्कुल। भौतिक जीवन का उद्देश्य ही आध्यात्मिक उन्नति है। जब हम भौतिक चीजों का सही उपयोग करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं, तो हमारा जीवन अधिक सार्थक बनता है। आध्यात्मिकता हमें हर स्थिति में संतुलित और सकारात्मक बने रहने की शिक्षा देती है। साथ ही हमें यह भी सिखाती है कि हमारे हर कर्म का उद्देश्य आत्मा की उन्नति होना चाहिए।
प्रश्न: आपके अनुसार, क्या आज के समाज में यह समन्वय संभव है ?
उत्तर: क्यों नहीं, यह आज भी संभव है। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे हर कार्य के पीछे एक गहरा उद्देश्य होना चाहिए। आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाने से भौतिक संसाधनों का सही उपयोग किया जा सकता है। मेरा मानना है कि भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को साथ लेकर चलने से ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। आज यह जरूरी है कि हम भौतिक जीवन की जरूरतों को समझें और उन्हें आध्यात्मिक दृष्टिकोण से संतुलित करें। यही हमारी सनातन परंपरा का सार है। यही हमारे जीवन का सही मार्गदर्शन है।
प्रश्न: क्या धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी हैं ?
उत्तर: यह धारणा पाश्चात्य परंपरा से आती है कि धर्म और विज्ञान अलग या विरोधी हैं। वहां अक्सर धर्म को आस्था और विज्ञान को तर्क का प्रतीक माना गया है। लेकिन हमारी सनातन परंपरा इसके बिल्कुल विपरीत है। हमारे धर्म में ज्ञान और विज्ञान को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में देखा गया है। गीता का सूत्र है – ज्ञान विज्ञान संयम। भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि यदि इस ब्रह्मांड में कोई ज्ञान है, तो वह मैं हूं। अर्जुन ने जब पूछा कि विज्ञान क्या है, तो कृष्ण ने उत्तर दिया कि पंचतत्वों को जानना ही विज्ञान है।
प्रश्न: इन पंचतत्वों का विज्ञान से क्या संबंध है ?
उत्तर: हमारे शास्त्रों के अनुसार, पंचतत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – ब्रह्मांड और जीवन के मूल आधार हैं। इन्हें केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं देखा गया, बल्कि इनके पीछे वैज्ञानिक समझ भी है। उदाहरण के लिए, जल को हमारे धर्म में पवित्र माना गया है। यह क्यों पवित्र है, इसका उत्तर विज्ञान देता है। जल का रासायनिक घटक H₂O है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना है। यह हमारे शरीर के लिए आवश्यक तत्व हैं। जल में प्राणवायु होती है और इसके बिना जीवन असंभव है। इसी प्रकार, अग्नि को शुद्धिकरण का प्रतीक माना गया है। जब यज्ञ में औषधियों की आहुति दी जाती है, तो वायुमंडल में सुगंध और शुद्धता का अनुभव होता है। विज्ञान प्रमाणित करता है कि औषधियों में ऐसे तत्व होते हैं, जो वायु को शुद्ध करते हैं।
प्रश्न: तो क्या धर्म और विज्ञान दोनों एक ही दिशा में कार्य करते हैं ?
उत्तर: बिल्कुल। धर्म और विज्ञान के बीच कोई विरोध नहीं है। यह केवल हमारी सोच और शोध का विषय है। धर्म हमें प्रेरणा देता है कि हम प्रकृति और जीवन को समझें और विज्ञान इस समझ को प्रमाणित करता है। उदाहरण के लिए, हमारे धर्म में कहा गया है कि वायुमंडल को शुद्ध रखना अनिवार्य है। विज्ञान बताता है कि अशुद्ध वायु कैसे हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और शुद्ध वायु से हमें कैसे लाभ होता है। यज्ञ और हवन जैसी धार्मिक प्रक्रियाएं वायुमंडल को शुद्ध करती हैं और विज्ञान इसे प्रमाणित करता है।
प्रश्न: क्या धर्म और विज्ञान का संबंध केवल प्रकृति तक सीमित है ?
उत्तर: नहीं, धर्म और विज्ञान का संबंध जीवन के हर पहलू से है। उदाहरण के लिए, जन्म और मृत्यु को लें। हमारे धर्म में कहा गया है कि जन्म और मृत्यु विधाता के हाथ में हैं। लेकिन विज्ञान ने यह प्रमाणित किया है कि ज्योतिष और धार्मिक प्रक्रियाएं, जैसे शुभ मुहूर्त का चयन, किसी घटना के समय को निर्धारित करने में मदद कर सकती हैं। आज विज्ञान ने मेडिकल तकनीक के माध्यम से बच्चे की पैदाइश के समय को नियंत्रित करना संभव कर दिया है। यह धर्म और विज्ञान का सुंदर समन्वय है।
प्रश्न: तो क्या यह कहना सही होगा कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं ?
उत्तर: बिल्कुल। धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं, बल्कि एक गहरा तालमेल है। धर्म हमें प्रकृति और जीवन के रहस्यों को समझने की प्रेरणा देता है, और विज्ञान उन रहस्यों को साक्ष्य के साथ उजागर करता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि धर्म और विज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों का उद्देश्य मानव जीवन को बेहतर बनाना और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है।
प्रश्न: भगवान शंकराचार्य ने कहा है ‘अहम् ब्रह्मास्मि’। इसका अर्थ क्या है और इसका प्रमाण क्या है ?
उत्तर : ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का अर्थ है – ‘मैं ब्रह्म हूं।’ भगवान शंकराचार्य ने इस महान वाक्य के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के एकत्व का सिद्धांत स्थापित किया है। इसका अर्थ यह है कि हर व्यक्ति के भीतर ब्रह्म की चेतना विद्यमान है। पहले इसका प्रमाण धार्मिक ग्रंथों और कथाओं के माध्यम से दिया जाता था। उदाहरण के लिए, राम और कृष्ण को ब्रह्म का अवतार बताया गया और उनकी लीलाएं इसका प्रमाण बनीं। इसका प्रमाण कथाओं से मिलता है, लेकिन यदि हम यह कहें कि मैं ब्रह्म हूं, तो इसका क्या प्रमाण है ?
प्रश्न: क्या इसका प्रमाण केवल धर्म से मिलता है या विज्ञान भी इसे प्रमाणित करता है ?
उत्तर : आज विज्ञान भी इस बात को प्रमाणित करता है कि हर व्यक्ति के भीतर ब्रह्म की चेतना है। यह चेतना ही जीवन का आधार है। जब तक हमारे भीतर यह चेतना है, हम जीवित हैं। विज्ञान ने यह प्रमाणित किया है कि चेतना ही हमें ‘जीव’ बनाती है।
प्रश्न: चेतना को विज्ञान कैसे परिभाषित करता है ?
उत्तर : विज्ञान के अनुसार, चेतना वह शक्ति है जो हमारे शरीर को संचालित करती है। उदाहरण के लिए जब हमारे दिल की धड़कन चलती है, तो इसका कारण हमारी चेतना है। जब यह चेतना समाप्त हो जाती है, तो विज्ञान इसे ‘डेड बॉडी’ कहता है। इसका सीधा अर्थ है कि हमारे शरीर का संचालन केवल भौतिक तत्वों से नहीं, बल्कि चेतना से होता है। यही चेतना, ब्रह्म का स्वरूप है।
प्रश्न: क्या यह चेतना हर व्यक्ति में समान रूप से होती है ?
उत्तर : हां, यह चेतना हर व्यक्ति में समान रूप से होती है। इसका प्रमाण यह है कि हर जीवित प्राणी में जीवन के संकेत एक जैसे हैं – धड़कन, श्वसन और सोचने-समझने की क्षमता। शास्त्रों के अनुसार, यही चेतना ब्रह्म है। विज्ञान इसे ऊर्जा या जीवन शक्ति के रूप में परिभाषित करता है।
प्रश्न : क्या चेतना का अनुभव किया जा सकता है ?
उत्तर : जी हां, चेतना का अनुभव किया जा सकता है। जब व्यक्ति ध्यान करता है, तो वह अपनी चेतना के करीब आता है। धर्म इसे आत्मा का अनुभव कहता है और विज्ञान इसे मस्तिष्क की गहराई में जाने की प्रक्रिया मानता है। ध्यान और योग जैसे अभ्यासों से व्यक्ति अपनी चेतना को जागृत कर सकता है।
प्रश्न : ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का वास्तविक संदेश क्या है ?
उत्तर : ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ का वास्तविक संदेश है कि हर व्यक्ति अपने भीतर असीमित शक्ति और चेतना का स्रोत है। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम ईश्वर बन गए हैं, बल्कि यह है कि ईश्वर हमारे भीतर विद्यमान हैं। विज्ञान और धर्म दोनों इसे अपने-अपने तरीके से प्रमाणित करते हैं।
प्रश्न : क्या आप इसका कोई उदाहरण दे सकते हैं ?
उत्तर : जी हां, उदाहरण के लिए – जब हम गहरी नींद में होते हैं, तो हमारा शरीर निष्क्रिय रहता है, लेकिन हमारी चेतना जाग्रत होती है। विज्ञान इसे मस्तिष्क की न्यूरल एक्टिविटी मानता है और धर्म इसे आत्मा का विश्राम कहता है। जब हम जागते हैं, तो यही चेतना हमें सक्रिय करती है।
प्रश्न : आपका अंतिम संदेश क्या होगा ?
उत्तर : ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि जीवन का सत्य है। जब हम यह समझते हैं कि हमारे भीतर चेतना ही ब्रह्म है, तो हमें अपनी शक्ति, ऊर्जा और उद्देश्य का ज्ञान होता है। विज्ञान इसे प्रमाणित करता है और धर्म इसे आध्यात्मिक स्वरूप में समझाता है। हमें इसे केवल एक सिद्धांत नहीं, बल्कि अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
प्रश्न: कौन सा धर्म श्रेष्ठ है ?
उत्तर : धर्म के संदर्भ में, सनातन श्रेष्ठ नहीं बल्कि सर्वश्रेष्ठ है। सनातन धर्म का कोई इतिहास नहीं है, क्योंकि यह अनादि और निरंतर काल से अस्तित्व में है। बाकी सभी धर्मों का इतिहास निर्धारित है, जैसे कि कुछ धर्म 500 या 1000 वर्षों पुराने हो सकते हैं, लेकिन सनातन धर्म तो आदि-अनादि है, जिसका कोई प्रारंभ या अंत नहीं है। इसका प्रमाण समय और इतिहास से परे है। इसलिए इसे श्रेष्ठ नहीं, बल्कि सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सनातन धर्म जीवन जीने का तरीका है। यह जीवन के हर पहलू में हमारी मार्गदर्शिका है। जीवन में संतुलन बनाए रखना और अपनी आत्मा की उन्नति करना ही इसका मूल उद्देश्य है।
प्रश्न: क्या विशेषताएं हैं जो सनातन धर्म को अन्य धर्मों से अलग करती हैं ?
उत्तर: सनातन धर्म न केवल आध्यात्मिक शिक्षाएं प्रदान करता है, बल्कि यह हमें अपने दैनिक जीवन में उच्च आचरण और सद्गुणों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। जैसे मां, पिता और गुरु के प्रति आदर और सम्मान की जो भावना सनातन धर्म सिखाता है, वह अन्य धर्मों में नहीं मिलती। उदाहरण स्वरूप, मां के चरण स्पर्श करना, पिता के चरणों में श्रद्धा रखना और गुरु के चरणों को प्रणाम करना यह हमारे धर्म की विशेष परंपरा है। यह हमें यह भी सिखाता है कि व्यक्ति के जीवन में तीन महत्वपूर्ण तत्व होने चाहिए। विवेक, प्रभाव और आत्मविश्वास। विवेक हमें सही और गलत में अंतर समझने की क्षमता देता है। प्रभाव अपने कार्यों से दूसरों पर सकारात्मक प्रभाव डालने की शक्ति देता और आत्मविश्वास जीवन को दिशा देने की शक्ति देता है।
प्रश्न: सनातन धर्म में इन तत्वों को कैसे हासिल किया जा सकता है?
उत्तर: सनातन धर्म में बताया गया है कि इन तत्वों को प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है मां, पिता और गुरु के चरणों में श्रद्धा और सम्मान। इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब हम मां के चरणों को स्पर्श करते हैं, तो विज्ञान प्रमाणित करता है कि हमारे शरीर में इलेक्ट्रॉनिक पावर हथेली से और मैग्नेटिक पावर पैरों से निकलती है। जब हम इन दोनों को जोड़ते हैं, तो यह ऊर्जा का संचार हमारे शरीर में होता है। यही ऊर्जा हमें आत्मविश्वास, बुद्धि और शारीरिक शक्ति प्रदान करती है।
इसके अलावा, चरणों को माथे से छूने से हमारे मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे हमारे बुद्धि बल में वृद्धि होती है। इसी तरह, हमारे शरीर के अन्य हिस्सों से जुड़ी विशेषताओं के माध्यम से सनातन धर्म हमें ऊर्जा का सही उपयोग करना सिखाता है। यह विज्ञान और धर्म का अनूठा समन्वय है, जो हमें जीवन को सही दिशा में जीने की प्रेरणा देता है।
प्रश्न: क्या अन्य धर्मों में ऐसी शिक्षा मिलती है ?
उत्तर : अधिकतर धर्मों में भक्ति और पूजा की बातें होती हैं, लेकिन सनातन धर्म वह पहला धर्म है जो जीवन के सभी पहलुओं को एक साथ जोड़ता है – यह हमें समाज में सही आचरण, अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी और आत्म-उन्नति के लिए मार्गदर्शन देता है। हम अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाकर आध्यात्मिक उन्नति भी कर सकते हैं। मां, पिता और गुरु के प्रति सम्मान, प्रेम और आशीर्वाद लेना, यही हमें जीवन में सफलता और शांति प्राप्त करने की दिशा दिखाता है। यही वह शिक्षा है जो सनातन धर्म को अन्य धर्मों में शायद उतनी गहराई से नहीं मिलती।