
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र
प्रयागराज [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। प्रयागराज स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी) में चल रहे राष्ट्रीय शिल्प मेले के ग्यारहवें दिन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने दर्शकों का मन मोह लिया। विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को एक मंच पर समेटे इस मेले में दर्शकों को अनोखे अनुभव प्राप्त हो रहे हैं।
सांस्कृतिक विविधता का संगम
एनसीजेडसीसी द्वारा आयोजित इस मेले में, देश के विभिन्न प्रदेशों की परंपराओं, भजन, लोकनृत्यों और लोकगायन की शानदार प्रस्तुतियां देखने को मिल रही हैं।
- जादू की शुरुआत: प्रयागराज के ए.एस. शुक्ला ने जादू का प्रदर्शन कर मेले का शुभारंभ किया और दर्शकों को रोमांचित किया।
- पंजाब का भांगड़ा: पंजाब के अमरेंद्र सिंह और उनके दल ने पारंपरिक पोशाक, ढोल और लोकगीतों के साथ भांगड़ा नृत्य प्रस्तुत किया, जिससे दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
- त्रिपुरा का होजागिरी नृत्य: पांचाली और साथी कलाकारों ने त्रिपुरा के प्रसिद्ध होजागिरी नृत्य की प्रस्तुति देकर तालियां बटोरी।
- ब्रज की महक: मथुरा से आए नरेन्द्र शर्मा और उनके दल ने ब्रज के लोकनृत्य की अद्भुत प्रस्तुति दी।
भजन और गीतों की रसधारा
मेले की सांस्कृतिक संध्या में भजन गायिका रंजना त्रिपाठी ने अपनी मधुर आवाज में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने “पहले मैं तुमको मनाऊं गौरी के लाला” और “विनय करु हाथ जोड़के कलेवा” जैसे भजनों की प्रस्तुति दी।
इसके बाद, बिहार के गोपाल सिंह भरद्वाज ने “किसको दिल दिया जाए, सोचना जरूरी है” और “सांसों की माला पे सिमरू मैं पी का नाम” जैसे गीत प्रस्तुत कर दर्शकों को भावविभोर कर दिया।
लोकवाद्य और संगीत की धुनें
कोलकाता के हरेकृष्ण और उनके दल ने ढोल, खंजीरा और खोल वादन के माध्यम से श्रोताओं को लुभाया। उनकी प्रस्तुतियों ने पारंपरिक संगीत की गहराई और मधुरता को प्रदर्शित किया।
सांस्कृतिक संध्या का संचालन
कार्यक्रम का सफल संचालन प्रियांशु श्रीवास्तव ने किया, जिन्होंने कलाकारों और दर्शकों के बीच शानदार तालमेल स्थापित किया।
मेले की विशेषताएं
राष्ट्रीय शिल्प मेला न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विविधता और धरोहर को संरक्षित और प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास भी है।
- शिल्प प्रदर्शन: देशभर के शिल्पकारों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की प्रदर्शनी।
- पारंपरिक व्यंजन: विभिन्न राज्यों के पारंपरिक खाने-पीने के स्टॉल।
- शैक्षिक सत्र: युवाओं को भारतीय कला और संस्कृति से अवगत कराने के लिए कार्यशालाएं।