
Prayagraj Maha Kumbh News File Photo
Prayagraj Mahakhumb 2025 । में होने वाला प्रयागराज महाकुंभ एक नए और महत्वपूर्ण बदलाव की ओर बढ़ रहा है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सर्वसम्मति से फैसला लिया है कि इस बार कुंभ में ‘शाही स्नान’, ‘पेशवाई’ और ‘चेहरा-मोहरा’ जैसे पारंपरिक शब्दों का उपयोग नहीं किया जाएगा। इसका मकसद कुंभ के धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर अधिक जोर देना है।
शाही स्नान और पेशवाई: परंपरा से बदलाव की ओर
महाकुंभ में शाही स्नान और पेशवाई संत समाज की प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में से एक हैं। इन रस्मों में संतों और अखाड़ों द्वारा शाही अंदाज में स्नान किया जाता था, जो उनकी आध्यात्मिक महत्ता और समाज में उनके योगदान को दर्शाता था।
परंतु, 2025 का महाकुंभ इस दिशा में एक बड़ा बदलाव लेकर आ रहा है। इस बार, संत समाज ने यह निर्णय लिया है कि वे सादगी और आध्यात्मिकता पर जोर देंगे, और शाही ठाठ-बाट को छोड़कर केवल राजसी स्नान करेंगे। यह कदम समाज में अध्यात्म और सादगी को बढ़ावा देने की दिशा में है।
परिवर्तन के पीछे कारण
1- सादगी और अध्यात्म का महत्व: संत समाज का मानना है कि कुंभ का मूल उद्देश्य अध्यात्मिकता पर केंद्रित होना चाहिए। शाही ठाठ-बाट के बजाय, सादगी और आध्यात्मिकता को बढ़ावा दिया जाएगा।
2- समाज की बदलती सोच: आजकल लोग भौतिकता से हटकर आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित हो रहे हैं। संत समाज इस बदलती सोच के साथ कदम मिलाते हुए इस निर्णय पर पहुंचा है ताकि कुंभ मेला एक अध्यात्मिक अनुभव बन सके।
3- 700 साल पुरानी परंपरा में बदलाव: संतों ने माना कि 700 साल पुरानी परंपरा में अब समय के साथ बदलाव की आवश्यकता है। अब राजसी ठाठ-बाट की जगह साधारण और आध्यात्मिक रूप में स्नान किया जाएगा।
श्रद्धालुओं के लिए नई आध्यात्मिक अनुभूति
महाकुंभ 2025 में, श्रद्धालु साधु-संतों को अधिक आध्यात्मिक और सादगीपूर्ण रूप में देख सकेंगे। शाही ठाठ के स्थान पर, संतों का यह नया रूप श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक यात्रा की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। यह परिवर्तन श्रद्धालुओं के लिए एक नई और पवित्र आध्यात्मिक अनुभूति का द्वार खोलेगा।
2025 का महाकुंभ सादगी और आध्यात्मिकता की नई दिशा में कदम रख रहा है। अखाड़ा परिषद का यह निर्णय महाकुंभ के अध्यात्मिक मूल्यों को फिर से उजागर करेगा, जो इस महापर्व का ऐतिहासिक महत्व और बढ़ाएगा। श्रद्धालु अब इस पवित्र मेले में संतों की सादगी और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कर पाएंगे।