
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पव्लादिमीर पुतिन
नई दिल्ली [TV47 न्यूजनेटवर्क] । सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के रूस दौरे पर हैं। तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद उनका यह पहला विदेशी दौरा है। मोदी की यात्रा कई मायनों में अहम है। मोदी की रूस यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब चीन से रूस की निकटता बढ़ रही है। चीन, भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है। ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी की यात्रा के क्या निहितार्थ हैं। क्या मोदी की इस यात्रा से चीन को मिर्ची लगी है। आइए जानते हैं कि पीएम मोदी की इस यात्रा से चीन क्यों चिंतिंत है। अमेरिका और पश्चिमी देशों की नजर क्यों है। इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
भारत-रूस के सबंधों में चीन फैक्टर
प्रो हर्ष वी. पंत (लंदन के किंग्स कालेज में रक्षा अध्ययन विभाग और इंडिया इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर का कहना है कि पीएम मोदी की रूस यात्रा पर चीन की चिंता लाजमी है। प्रो पंत ने कहा कि हाल के घटनाक्रमों ने भारत-चीन संबंधों में दोनों देशों के बीच भविष्य में संघर्ष की संभावना के बारे में चिंताओं की वृद्धि की है। भारत और चीन के तनावपूर्ण संबंधों को हाल के चीनी उकसावों से बढ़ावा मिला है। इससे अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के लिए नामों का आवंटन, भारतीय मीडियाकर्मियों को वीजा देने से इनकार करना और युद्ध की तैयारी पर राष्ट्रपति के वक्तव्य शामिल हैं। इन घटनाओं ने चीन के इरादों के बारे में चिंता उत्पन्न की है। भारत को किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहने की जरूरत है। इस संदर्भ में, भारत की रक्षा तैयारियों की समीक्षा की जा रही है, जहां रक्षा संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने सशस्त्र बलों के तत्काल आधुनिकीकरण की जरूरत पर बल दिया है।
बदले अतंरराष्ट्रीय हालात में रूस-भारत दोस्ती कायम
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में अतंरराष्ट्रीय राजनीति में तेजी से बदलाव आया है। इसके चलते रूस और चीन आपसी मतभेद और मनभेद भुलाकर एक दूसरे के निकट आए हैं। दोनों देशों के बीच दोस्ताना रिश्ते हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ दोनों एकजुट है, लेकिन बदले हालात में भी रूस और भारत की दोस्ती कायम है। उन्होंने कहा कि भारत और रूस के बीच सामरिक रिश्तों की आंच कहीं न कहीं चीन पर आएगी। ऐसे में भारत-रूस की निकटता ड्रैगन को अखर सकती है। हालांकि, इस मामले में रूस की नीति स्पष्ट है। वह भारत-चीन विवाद में शामिल हुए बगैर दोनों देशों के साथ अपने संबंधों का निर्वाह करता है। भारत उसका नैसर्गिक मित्र है। यह दोस्ती काफी पुरानी है। उधर, चीन आज की बदली हुई अतंरराष्ट्रीय राजनीति की जरूरत है।
भारतीय रक्षा आयात में रूस की बड़ी हिस्सेदारी
- उन्होंने कहा कि रूस, भारत की जरूरतों के मुताबिक उसको अत्याधुनिक सैन्य उपकरण मुहैया कराता है। इस मामले में वह किसी की नाराजगी की परवाह नहीं करता है। उन्होंने कहा कि अमेरिका से निपटने के लिए रूस ड्रैगन की एक बड़ी जरूरत है। चीन इस बात को भलीभांति जानता है कि अमेरिकी विरोध को झेलने के लिए उसे रूस की जरूरत पड़ेगी। उन्होंने कहा कि भारतीय रक्षा आयात में रूस की बड़ी हिस्सेदारी है।
- भारतीय वायु सेना रूसी सुखोई एसयू-30 एमकेआई, मिग-29 और मिग-21 लड़ाकू विमानों पर निर्भर है। इसके अलावा आईएल-76 और एंटोनोव एएन-32 ट्रांसपोर्ट विमान, एमआई-35 और एमआई-17वी5 हेलिकाप्टर हैं और कुछ वक्त पहले ली गई एस-400 वायु रक्षा प्रणाली भी रूसी है। भारत की सेना रूसी T72 और T90 युद्धक टैंकों का इस्तेमाल करती है, नौसेना का आईएनएस विक्रमादित्य विमान वाहक पोत पहलेएडमिरल गोर्शकोव था। भारत की नौसेना आइएल 38 समुद्री निगरानी विमान और कामोव के-31 हेलिकाप्टर भी उड़ाती है। भारत के पास रूस से पट्टे पर ली हुई एक परमाणु पनडुब्बी है। वह भारत को अपनी परमाणु पनडुब्बी बनाने में भी मदद कर रहा है। भारत लगातार इस बात की कोशिश कर रहा है कि रूस से हथियारों की खरीदारी कुछ कम हो।
- हालांकि नवंबर 2023 को द वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट में कहा गया था कि रूस यूक्रेन युद्ध के बाद हथियारों की कमी से जूझ रहा है और उसने भारत समेत कई देशों को की जाने वाली हथियारों की सप्लाई रोकी है। हालांकि हाल के वर्षों में यह 62 फीसद से गिरकर 45 फीसद हो गई थी। स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट का कहना था कि भारत में हथियारों का उत्पादन बढ़ने और यूक्रेन पर आक्रमण के कारण हथियारों के निर्यात में आ रही बाधाओं के कारण रूस से हथियारों की सप्लाई घटी।