
परमानंद आश्रम की अनूठी पहल
प्रयागराज [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। यह कहानी न केवल सुषमा बल्कि उन सैकड़ों महिलाओं की दृढ़ता और संकल्प को दर्शाती है, जिन्होंने शिक्षा की औपचारिक कमी को अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के अध्ययन से पूरा किया है। झूंसी के परमानंद आश्रम की इस पहल ने न केवल महिलाओं को वैदिक और सनातन ग्रंथों का अध्ययन कराया, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया है।
इन महिलाओं की लगन और समर्पण इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा केवल वर्णमाला के ज्ञान तक सीमित नहीं है। गीता के श्लोक, रामचरितमानस की चौपाइयों और हनुमान चालीसा को कंठस्थ कर उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। इसके साथ ही वे सुरों और उच्चारण की सूक्ष्मताओं को भी समझने लगी हैं।
परमानंद आश्रम की यह पहल समाज के उन वर्गों में आत्मविश्वास जगाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिन्हें अक्सर शिक्षा से वंचित मान लिया जाता है। इस तरह की पहलें यह सिद्ध करती हैं कि सही दिशा और मार्गदर्शन से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। इस अनूठी पहल के माध्यम से सुषमा और उनकी सहेलियां न केवल अपनी जिंदगी को सार्थक बना रही हैं, बल्कि सनातन संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
परमानंद आश्रम में आने वाली महिलाओं की इस टोली में विविध उद्देश्य और भावनाएं देखने को मिलती हैं, लेकिन सभी के दिलों में एक समान भक्ति और ज्ञान की प्यास है। यह मंच उनके लिए न केवल अध्यात्म से जुड़ने का जरिया है, बल्कि उनके व्यक्तिगत जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाने का एक माध्यम बन गया है।
भक्ति और भगवत प्रेम की तलाश
देवकली जैसी महिलाएं, जो यहां मंदिर में बिताए गए पलों को अपने जीवन के सबसे सुंदर पल मानती हैं, भक्ति में डूबकर अपने मन को शांति और आनंद प्रदान करती हैं। उनके लिए यह स्थान सांसारिक चिंताओं से परे भगवत प्रेम में लीन होने का अवसर है। कुछ महिलाएं सुंदरकांड का पाठ करने की इच्छा लेकर आती हैं, तो कुछ में पढ़ने और समझने की गहरी चाहत है। अनपढ़ होने का “दाग” मिटाने की उनकी कोशिश उन्हें इस अद्भुत पहल से जोड़ती है, जहां वे अपने सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर पाती हैं।
आश्रम का ध्येय
इन सभी विविध उद्देश्यों और भावनाओं को जोड़ने का काम परमानंद आश्रम कर रहा है। उनका एकमात्र ध्येय इन महिलाओं को सनातन धर्म और वेद-पुराणों का पाठ पढ़ाकर उनके जीवन में नया प्रकाश लाना है। यह पहल न केवल महिलाओं को सांस्कृतिक और धार्मिक ज्ञान से समृद्ध कर रही है, बल्कि उनके जीवन में आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, और आध्यात्मिकता का संचार भी कर रही है। महिलाएं यहां आकर सिर्फ पढ़ाई नहीं करतीं, बल्कि अपने भीतर एक नई शक्ति और प्रेरणा का अनुभव करती हैं।
स्वामी शरद पुरी का दृष्टिकोण और उद्देश्य
परमानंद आश्रम के महंत स्वामी शरद पुरी का मानना है कि समाज के मूल को सुदृढ़ करने के लिए परिवार के केंद्र में स्थित महिलाओं का सशक्त होना अत्यंत आवश्यक है। उनका लक्ष्य न केवल इन महिलाओं को भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथों का पाठ पढ़ाना है, बल्कि उनके माध्यम से आने वाली पीढ़ियों को संस्कारों की समृद्ध धरोहर प्रदान करना भी है।
संस्कारों का स्थानांतरण
स्वामी शरद पुरी का कहना है, “यदि घर की महिलाएं सनातनी मूल्यों को आत्मसात कर लेंगी, तो उनकी संतानों को यह संस्कार स्वतः ही प्राप्त होंगे।” इस विचारधारा के अंतर्गत, वह आश्रम में हर वर्ग और जाति की महिलाओं को समान अवसर प्रदान करते हैं, ताकि कोई भी सांस्कृतिक शिक्षा और आध्यात्मिक ज्ञान से वंचित न रहे।
आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
महिलाओं के इस समूह में 20 वर्ष की युवतियों से लेकर 50 वर्ष की अनुभवी महिलाएं शामिल हैं। इनमें से लगभग 90% महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आती हैं, लेकिन अपनी रोजमर्रा की चुनौतियों और रोजी-रोटी की चिंता को परे रखते हुए वे इस प्रयास में पूरी निष्ठा से जुड़ी हुई हैं। यह न केवल उनके भक्ति भाव को दर्शाता है, बल्कि उनकी जिजीविषा और जीवन में एक नई दिशा पाने की लालसा को भी उजागर करता है।
सभी के लिए खुला मंच
आश्रम का यह मंच जाति, वर्ग और आर्थिक स्थिति से परे हर महिला का स्वागत करता है। इस समानता और समर्पण के साथ, परमानंद आश्रम समाज में एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, जो यह सिद्ध करता है कि शिक्षा और संस्कार किसी भी भौतिक बाधा से ऊपर हैं।
स्वामी शरद पुरी की यह पहल समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और महिलाओं को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इससे न केवल इन महिलाओं का व्यक्तिगत विकास हो रहा है, बल्कि उनके परिवारों और आने वाली पीढ़ियों पर भी इसका दूरगामी प्रभाव पड़ रहा है।
विशिष्ट पैटर्न पर आधारित शिक्षण कार्य
परमानंद आश्रम में शिक्षा का यह अद्भुत प्रयास किसी सामान्य शिक्षण प्रणाली पर आधारित नहीं है, बल्कि यह विशेष रूप से तैयार किए गए पाठ्यक्रम और संरचित पैटर्न पर चलता है। स्वामी शरद पुरी बताते हैं कि शिक्षण कार्य के लिए एक सुव्यवस्थित प्रणाली अपनाई गई है, जिसमें न केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कराया जाता है, बल्कि उन्हें याद करने और उनके महत्व को समझने पर भी जोर दिया जाता है।
संगठित पाठ्यक्रम और शिक्षकों की टीम
शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए एक टीम शिक्षकों की नियुक्त की गई है। इस शिक्षण कार्यक्रम में गीता, रामचरित मानस और संस्कृत श्लोकों को शामिल किया गया है। इन ग्रंथों को सामूहिक रूप से पढ़ाया जाता है और महिलाओं को इन्हें कंठस्थ करने में मदद दी जाती है। हर दिन के लिए एक विशिष्ट विषय या ग्रंथ निर्धारित है। शनिवार को हनुमान जी का दिन मानते हुए सुंदरकांड का पाठ और उसका गायन आयोजित किया जाता है। अन्य दिनों में गीता के श्लोक,रामचरित मानस की चौपाइयां और वैदिक मंत्रों का अभ्यास कराया जाता है।
गायन और समूह पाठ
पाठ के दौरान धार्मिक ग्रंथों को संगीतबद्ध गायन के माध्यम से सिखाया जाता है,जिससे महिलाएं इसे आसानी से समझ सकें और आत्मसात कर सकें। यह पाठ्यक्रम भगवान और उनके जीवन दर्शन से प्रेरित है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि महिलाएं न केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें, बल्कि उनके मर्म और शिक्षाओं को भी अपनी दैनिक जीवनशैली में उतार सकें।
समर्पित अभ्यास और अनुशासन
शिक्षण कार्य में दिनचर्या का पालन और नियमितता अनिवार्य है। सामूहिक पाठ और गायन न केवल महिलाओं को सीखने में मदद करता है, बल्कि उन्हें अध्यात्म से जुड़ने और एकजुटता का अनुभव कराने का भी माध्यम बन रहा है। इस अनूठी शिक्षण प्रणाली ने इन महिलाओं को धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने के साथ-साथ उनके जीवन में अनुशासन, भक्ति और आत्मविश्वास का संचार किया है।
महिलाओं को प्रोत्साहित करने की विशेष योजना
परमानंद आश्रम ने महिलाओं को नियमित रूप से इस शिक्षण कार्यक्रम से जोड़ने और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन राशि योजना की शुरुआत की है। इसके तहत हर महिला को 750 रुपये प्रतिमाह प्रदान किए जाते हैं, जो उनकी उपस्थिति के आधार पर निर्धारित की जाती है। महिलाओं की उपस्थिति पर नजर रखने और नियमितता सुनिश्चित करने के लिए एक उपस्थिति तालिका रजिस्टर बनाया गया है।
हर दिन इस रजिस्टर को अपडेट किया जाता है।
महिलाओं की उपस्थिति के आंकड़े के आधार पर उनकी प्रोत्साहन राशि तय की जाती है। इस प्रक्रिया से महिलाओं में न केवल अनुशासन की भावना विकसित होती है, बल्कि उन्हें नियमित रूप से शिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने की प्रेरणा भी मिलती है। स्वामी शरद पुरी ने बताया कि 750 रुपये की यह प्रोत्साहन राशि देने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की रोजाना उपस्थिति को अनिवार्य बनाना है। इस राशि के माध्यम से आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि वे अपनी अन्य चिंताओं को दरकिनार कर शिक्षा और भक्ति में अपना समय दे सकें। यह पहल यह भी सुनिश्चित करती है कि महिलाएं लंबे समय तक इस शिक्षण कार्यक्रम से जुड़ी रहें और नियमितता बनाए रखें।
आर्थिक सहायता और आध्यात्मिक जुड़ाव का संतुलन
इस प्रोत्साहन योजना से न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है, बल्कि यह उन्हें धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित कर रही है। यह मॉडल दर्शाता है कि किस तरह आर्थिक मदद और सामुदायिक समर्थन के माध्यम से समाज के कमजोर वर्गों को आत्मनिर्भर और जागरूक बनाया जा सकता है। इस तरह की योजनाएं शिक्षा और भक्ति को एक ठोस आधार प्रदान करती हैं, जिससे महिलाओं में न केवल आत्मविश्वास का संचार होता है, बल्कि वे अपने परिवार और समाज के लिए भी एक प्रेरणा बनती हैं।
मिशन 2010 से संचालित, कई राज्यों में विस्तार
परमानंद आश्रम के महंत स्वामी शरद पुरी ने बताया कि महिलाओं को वैदिक और सनातन शिक्षा प्रदान करने का यह मिशन वर्ष 2010 से संचालित हो रहा है। यह पहल केवल प्रयागराज तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में भी इसे विस्तार दिया गया है। इस मिशन का संचालन बिसन दास मेहता के एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है, जो इसे आर्थिक और प्रबंधन सहायता प्रदान करता है। इस ट्रस्ट की सक्रिय भूमिका ने मिशन को न केवल सफल बनाया है, बल्कि इसे कई राज्यों में विस्तार देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्वामी शरद पुरी का यह प्रयास शिक्षा, भक्ति और सामाजिक सेवा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
प्रयागराज से लेकर देशभर तक विस्तार
यह मिशन वर्ष 2010 से शुरू हुआ और अब यह कई राज्यों में फैल चुका है।
- उत्तर प्रदेश: प्रयागराज में झूंसी स्थित परमानंद आश्रम और मौनी आश्रम। वाराणसी में अस्सी स्थित वेद निधि।
- दिल्ली: सोनिया विहार में यह शिक्षण कार्य संचालित हो रहा है।
- हिमाचल प्रदेश: गगरेट स्थित गुरुशिखर वेद विद्यालय।