
नॉर्मलाइजेशन का छात्रों पर असर
प्रयागराज [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) द्वारा PCS-PRE 2024 और RO/ARO 2023 प्री परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया लागू करने के फैसले से छात्रों में असंतोष फैल गया है। यह मुद्दा प्रदेश भर के साथ दिल्ली और पटना तक पहुंच गया है। इस लेख में हम समझेंगे कि नॉर्मलाइजेशन क्या है और छात्रों के लिए यह क्यों चिंता का विषय बन गया है।
नॉर्मलाइजेशन क्या है: नॉर्मलाइजेशन एक सांख्यिकीय प्रक्रिया है, जिसका उपयोग तब किया जाता है जब परीक्षाएं एक से अधिक पालियों (शिफ्ट्स) में आयोजित होती हैं। इसका उद्देश्य परीक्षा में कठिनाई स्तर को संतुलित करना है ताकि सभी अभ्यर्थियों के अंकों को समान मापदंड पर आंका जा सके।
क्यों जरूरी है नॉर्मलाइजेशन: जब परीक्षाएं अलग-अलग पालियों में होती हैं, तो हर पाली में प्रश्नपत्रों का कठिनाई स्तर अलग हो सकता है।
उदाहरण: यदि पहली पाली में प्रश्न पत्र आसान हो और दूसरी पाली में कठिन, तो पहली पाली के छात्र अधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं।
नॉर्मलाइजेशन कैसे काम करता है: नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया में प्रत्येक पाली के छात्रों के औसत अंकों को ध्यान में रखा जाता है। नॉर्मलाइजेशन कठिनाई स्तर के इस अंतर को संतुलित करने का काम करता है।
क्या है प्रक्रिया
- सभी पालियों का औसत स्कोर निकाला जाता है।
- कठिन पाली के छात्रों के अंकों को बढ़ाया जाता है।
- आसान पाली के छात्रों के अंकों को तदनुसार समायोजित किया जाता है।
उदाहरण: यदि पहली पाली में औसत स्कोर 110/150 और दूसरी पाली में 100/150 है, तो दूसरी पाली के छात्रों के अंकों को बढ़ाकर दोनों पालियों के औसत को समान किया जाएगा।
छात्रों का आंदोलन क्यों?
- पारदर्शिता पर सवाल : छात्रों का मानना है कि नॉर्मलाइजेशन के तहत किए गए संशोधन में अक्सर पारदर्शिता की कमी होती है।
- असमान अवसर : कई छात्रों को लगता है कि नॉर्मलाइजेशन से उनकी मेहनत और तैयारी का सही आकलन नहीं हो पाता।
- परीक्षा की विश्वसनीयता : दो दिनों में परीक्षा आयोजित करने से सभी अभ्यर्थियों के लिए समान परिस्थिति नहीं बनती। इससे छात्रों में असंतोष बढ़ता है।
नॉर्मलाइजेशन का असर
- सकारात्मक पहलू
- कठिनाई स्तर में असमानता का संतुलन।
- छात्रों के प्रदर्शन का समान मूल्यांकन।
- नकारात्मक पहलू
- पारदर्शिता और प्रक्रिया में जटिलता।
- छात्रों का असंतोष और आंदोलन।
नॉर्मलाइजेशन छात्रों के लिए समानता सुनिश्चित करने की एक प्रक्रिया है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में पारदर्शिता का अभाव इसे विवादास्पद बनाता है। इस स्थिति में छात्रों की मांग है कि परीक्षा की प्रक्रिया को सरल और निष्पक्ष बनाया जाए। नॉर्मलाइजेशन जैसे मुद्दों पर स्पष्टता और सही संवाद आवश्यक है ताकि छात्रों का विश्वास बनाए रखा जा सके।