
नोएडा में छठ पर्व के दूसरे दिन खरना पूजा संपन्न
नोएडा [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। छठ पर्व के दूसरे दिन, बुधवार को नोएडा में खरना पूजा संपन्न हुई, जिसके साथ व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ कर दिया। छठ पर्व में खरना का विशेष महत्त्व है और इस पूजा के बाद से ही व्रती निर्जला उपवास करते हैं, जो छठ पर्व की कठिन साधना को दर्शाता है। नोएडा के लगभग 200 घाटों पर गुरुवार को व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे और आठ नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर महापर्व का समापन करेंगे।
खरना पूजा: छठ पर्व का दूसरा दिन
खरना पूजा छठ पर्व का दूसरा दिन होता है। इस दिन मिट्टी के बर्तन में, पारंपरिक चूल्हे पर प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसमें विशेष रूप से चावल, गुड़ और गन्ने का रस का उपयोग होता है। इस प्रसाद को व्रती छठी मैया को अर्पित करते हैं और इसके बाद व्रत शुरू करते हैं। यह प्रसाद पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बीच भी बांटा जाता है। नोएडा में व्रत रखने वाली महिलाओं ने बताया कि यह उपवास संतान की लंबी आयु, सुख-शांति, समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है।
घाटों पर भव्य सजावट और गांव जैसा माहौल
नोएडा के ग्रेनो के नवादा गांव स्थित शीतला माता शनि मंदिर, गौर सिटी के लेक व्यू पार्क और चेरी काउंटिंग सोसायटी के सामने नेफोवा छठ घाट पर विशेष आयोजन किए जा रहे हैं। इन घाटों पर पारंपरिक सजावट की गई है, जिससे घाटों पर एक गांव जैसा माहौल बनाया गया है। केले के पेड़ों, रंग-बिरंगी लाइटों, और सुंदर सजावट से सजे हुए ये घाट छठ पूजा का एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करते हैं। चेरी काउंटिंग सोसायटी के सामने बने नेफोवा छठ घाट पर गंगाजल और गुलाब जल भरकर गुलाब के पत्ते बिखेरे जा रहे हैं, ताकि व्रतियों को शुद्ध वातावरण मिल सके।
व्रतियों के लिए विशेष सुविधाएं
छठ पूजा के इस महोत्सव में व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने बताया कि घाटों पर किसी भी प्रकार की परेशानी से बचने के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। घाटों में पानी की भराई और सफाई का कार्य पूरा कर लिया गया है, जिससे व्रती पूरी श्रद्धा के साथ पूजा कर सकें।
सांस्कृतिक महत्त्व और भक्तिमय माहौल
छठ पर्व में गाए जाने वाले गीतों, जैसे “गूं उग हो सुरुज देव, बिरहन पुकार देव दुनु करजोरवा” के सुरों से नोएडा का माहौल भक्तिमय हो गया है। जगह-जगह छठ मैया के गीत बजाए जा रहे हैं, जो लोगों में आस्था और उत्साह का संचार कर रहे हैं। यह महापर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह समाज को जोड़ने और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का प्रतीक भी है।