
उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज
प्रयागराज [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत एक ऐसी संस्था है जो भारतीय संस्कृति के विविध रंगों को प्रदर्शित करती है। शिल्पहाट प्रांगण में आयोजित राष्ट्रीय शिल्प मेले के नौंवे दिन लोकनृत्यों और नृत्य नाटिकाओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राष्ट्रीय शिल्प मेला: अब 15 दिसंबर तक
राष्ट्रीय शिल्प मेला, जो उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनसीजेडसीसी), प्रयागराज के शिल्पहाट प्रांगण में आयोजित किया जा रहा है, को दर्शकों की भारी मांग पर 15 दिसंबर तक बढ़ा दिया गया है। इस मेले में भारतीय हस्तशिल्प, कला और संस्कृति के विविध रंगों का प्रदर्शन हो रहा है। केंद्र के प्रभारी निदेशक आशिष गिरि ने बताया कि मेला 12 दिसंबर को समाप्त होना था, लेकिन इसकी लोकप्रियता और दर्शकों की रुचि को देखते हुए इसे तीन दिन के लिए और बढ़ा दिया गया है।
सांस्कृतिक संध्या: भक्ति और नृत्य की प्रस्तुतियां
सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत प्रयागराज की रीतिका सोनी और उनके दल ने गणेश वंदना ‘घर में पधारो गजानंदी’ से की। इसके बाद उन्होंने ‘मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जाएंगे, राम आएंगे’ जैसे भक्ति गीतों की प्रस्तुति से दर्शकों को भक्ति रस में डुबो दिया। इसके बाद वरुण मिश्रा ने ‘चलो मन गंगा यमुना तीर’ और ‘घर-घर बजत बधैया’ जैसे गीतों से श्रोताओं को आनंदित किया।
नृत्य नाटिका: सती वियोग की भावपूर्ण प्रस्तुति
सांस्कृतिक संध्या के मुख्य आकर्षणों में से एक थी सती वियोग पर आधारित नृत्य नाटिका, जिसे आदर्श महादेव और उनके दल ने प्रस्तुत किया। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को गहराई तक भावविभोर कर दिया। नाटिका ने सती के त्याग, प्रेम, और उनके वियोग से जुड़ी पौराणिक कथा को जीवंत कर दिया। भावनाओं और कला के इस अनोखे संगम ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
लोकनृत्य: विविध राज्यों की सांस्कृतिक झलक
सांस्कृतिक संध्या में विभिन्न राज्यों के लोकनृत्य भारतीय संस्कृति की समृद्ध विविधता और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत प्रदर्शन थे। हर प्रस्तुति में उस राज्य की परंपरा और कला की झलक दिखाई दी।

तेलंगाना: माधुरी और बोनालू नृत्य
टी. श्रीधर और उनके दल ने माधुरी और बोनालू नृत्य की प्रस्तुति से तेलंगाना की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन किया। इस नृत्य ने श्रद्धा और उत्सव के रंग बिखेरे।
मध्य प्रदेश: भगोरिया नृत्य
कैलाश सिसोदिया और उनके दल ने भगोरिया नृत्य के माध्यम से मध्य प्रदेश की परंपरागत आदिवासी संस्कृति को मंच पर उतारा। इसकी रंग-बिरंगी वेशभूषा और ऊर्जा से भरपूर प्रदर्शन ने दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया।
पश्चिम बंगाल: रायबेन्शे नृत्य
बाबलू हाजरा और उनके दल ने रायबेन्शे नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य बंगाल के लोकजीवन और वीरता की परंपरा का प्रतीक है। उनकी प्रस्तुति में शारीरिक दक्षता और लय का अद्भुत समन्वय देखने को मिला।
राजस्थान: तेराताली नृत्य
गंगा देवी और उनके दल ने राजस्थान के प्रसिद्ध तेराताली नृत्य से सभी का दिल जीत लिया। यह नृत्य अपनी अनूठी लय और चूड़ियों पर थाप देने की कला के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तर प्रदेश: चौलर लोकनृत्य
जटाशंकर और उनके दल ने उत्तर प्रदेश का चौलर लोकनृत्य प्रस्तुत किया। इस नृत्य ने ग्रामीण जीवन और सांस्कृतिक विरासत की झलक पेश की।

भारतीय संस्कृति की गंगा-जमुनी तहजीब
इस सांस्कृतिक संध्या ने न केवल विभिन्न राज्यों की कला और परंपराओं को एक मंच पर प्रस्तुत किया, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का भी अद्भुत उदाहरण पेश किया। लोकनृत्यों और नाटिकाओं के माध्यम से विभिन्न संस्कृतियों की समृद्ध एकरूपता को दर्शकों ने महसूस किया। इस तरह की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता को जीवंत करती हैं, और समाज को जोड़ने का एक मजबूत माध्यम बनती हैं।
राष्ट्रीय शिल्प मेले के मुख्य आकर्षण
यह मेला भारतीय परंपरा और संस्कृति को करीब से जानने और अनुभव करने का अनूठा अवसर प्रदान करता है।
1- हस्तशिल्प और कला के स्टॉल
- भारत के विभिन्न राज्यों के शिल्पकारों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित उत्पाद।
- मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के खिलौने, कपड़े, गहने, और अन्य सजावटी वस्तुएं।
- पारंपरिक और आधुनिक शिल्पकला का अद्भुत संगम।
2- लोक संगीत और नृत्य प्रदर्शन
- हर शाम दर्शकों के मनोरंजन के लिए विभिन्न राज्यों के लोक नृत्य और संगीत प्रस्तुतियां।
- तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, और उत्तर प्रदेश के कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
- ये प्रस्तुतियां भारतीय संस्कृति की समृद्ध विविधता और सांस्कृतिक एकता को दर्शाती हैं।
3- क्षेत्रीय व्यंजनों के स्वाद
- मेले में भारत के विभिन्न राज्यों के पारंपरिक व्यंजन का आनंद।
- राजस्थान की दाल बाटी चूरमा, पंजाब के परांठे, दक्षिण भारतीय डोसा, और बंगाल की मिठाइयों जैसे स्वादिष्ट व्यंजन।
- यह मेला भारतीय भोजन प्रेमियों के लिए एक खास आकर्षण है।
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शिल्प मेले का महत्व
राष्ट्रीय शिल्प मेला केवल कला और शिल्प को बढ़ावा देने का मंच नहीं है, बल्कि यह कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी प्रभाव डालता है:
- शिल्पकारों को मंच: शिल्पकारों और कारीगरों को अपने उत्पाद प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर।
- पर्यटन को बढ़ावा: प्रयागराज में इस तरह के आयोजनों से पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होती है।
- संस्कृति का संरक्षण: भारतीय संस्कृति और परंपराओं को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का माध्यम।
- स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान: शिल्प और खाद्य स्टॉल स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देते हैं।
दर्शकों का अनुभव
दर्शकों ने मेले में विभिन्न राज्यों के हस्तशिल्प और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद लिया। साथ ही, क्षेत्रीय व्यंजनों का स्वाद चखकर इसे यादगार अनुभव बताया।