नई दिल्ली [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। सालों से राजनीतिक और आर्थिक विवादों से घिरे नेशनल हेराल्ड केस में आखिरकार एक बड़ा कानूनी मोड़ आया है। 16 दिसंबर 2025 को दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने कांग्रेस के प्रमुख नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बड़ी राहत दी। विशेष जज विशाल गोगने ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दाखिल की गई मनी लॉन्ड्रिंग की चार्जशीट पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इसे तकनीकी रूप से अवैध करार दिया, क्योंकि जांच एक निजी शिकायत पर आधारित थी, न कि पुलिस FIR पर। इससे पिछले 12 साल की जांच पर सवाल खड़ा हो गया है, और इस फैसले ने पूरी जांच प्रक्रिया को ही प्रभावित कर दिया है। आइए, इस महत्वपूर्ण मामले के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं, जहां पर गलती हुई और क्यों यह मामला इतना लंबा खिंच गया।
मामला क्या है?
नेशनल हेराल्ड केस का मूल विवाद 2012 से शुरू हुआ, जब भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उन्होंने नेशनल हेराल्ड की प्रकाशक कंपनी, एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL), को 90 करोड़ रुपये का ब्याज-मुक्त कर्ज दिया। यह कर्ज बाद में माफ कर दी गई और संपत्तियों का गलत तरीके से ट्रांसफर कर दिया गया।
मुख्य आरोप:
- सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76% हिस्सेदारी वाली यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड (YIL) को AJL की संपत्तियों का ट्रांसफर।
- संपत्तियों की कीमत करोड़ों रुपये में थी, और इसमें धोखाधड़ी, विश्वासघात, और आपराधिक साजिश का आरोप था।
- ED ने 2025 अप्रैल में इस मामले में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सोनिया, राहुल, सैम पित्रोदा, सुमन दुबे समेत अन्य आरोपित बनाए गए।
यह मामला राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील रहा, जिसमें कांग्रेस इसे भाजपा की बदले की कार्रवाई बताती रही।
कोर्ट का फैसला और मुख्य टिप्पणियां
16 दिसंबर 2025 को राउज एवेन्यू कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:
- PMLA के तहत मनी लॉन्ड्रिंग की शिकायत केवल पुलिस FIR या सरकारी जांच एजेंसी की शिकायत पर ही मान्य हो सकती है।
- यह मामला भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की 2012 की निजी शिकायत पर आधारित था, इसलिए ED की जांच और चार्जशीट कानूनी रूप से मान्य नहीं थी।
- कोर्ट ने आरोपों के मेरिट्स पर कोई टिप्पणी नहीं की।
- राहत की बात: ED अब भी जांच जारी रख सकती है, खासकर जब दिल्ली पुलिस की EOW ने अक्टूबर 2025 में नई FIR दर्ज की है।
यह फैसला क्यों आया?
कहां हुई गलती?
यह मामला 2012 से चलता आ रहा है, जब सुब्रमण्यम स्वामी ने यह शिकायत दर्ज कराई।
मुख्य चूक कहां हुई:
- ED ने 2014 में जांच शुरू की, लेकिन बिना किसी पुलिस FIR के।
- 2015 में, तत्कालीन ED अधिकारी हिमांशु कुमार लाल ने सिफारिश की कि FIR के बिना जांच आगे नहीं बढ़ सकती और केस बंद कर देना चाहिए।
- हालांकि, यह सुझाव अनसुना कर दिया गया और जांच जारी रही।
- अंत में 2025 में चार्जशीट दाखिल की गई, जो कोर्ट के मुताबिक, तकनीकी रूप से गलत थी।
कानूनी आधार पर गलती:
- PMLA के तहत अपराध के लिए FIR जरूरी है।
- अगर शुरुआत में ही FIR दर्ज कराई जाती, तो यह लंबी और खर्चीली प्रक्रिया नहीं चलती।
यह तकनीकी खामियां जांच की वैधता पर बड़ा सवाल खड़ा कर देती हैं।
पूरा मामला: क्या हुआ था?
- 2012 में, भाजपा नेता स्वामी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने AJL को 90 करोड़ रुपये का ब्याज-मुक्त ऋण दिया।
- यह ऋण बाद में माफ कर दिया गया और संपत्तियां YIL को ट्रांसफर कर दी गईं।
- YIL में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की हिस्सेदारी 76% थी।
- संपत्तियों का मूल्यांकन करोड़ों रुपये में था, जिसमें दिल्ली, मुंबई, लखनऊ जैसे शहरों की संपत्तियां शामिल थीं।
- ED ने इस मामले में 2025 अप्रैल में चार्जशीट दाखिल की, जिसमें सोनिया, राहुल, और अन्य आरोपित बनाए गए।
क्या आरोप था?
- धोखाधड़ी, विश्वासघात, आपराधिक साजिश, संपत्ति का गलत हस्तांतरण।
- आरोपों का आधार था कि संपत्तियों को गलत तरीके से हस्तांतरित कर करोड़ों रुपये का नुकसान किया गया।
नई FIR और आगे की राह
कोर्ट के फैसले के बाद, ED को राहत मिली है कि:
- दिल्ली पुलिस की EOW ने अक्टूबर 2025 में नई FIR दर्ज की।
- इस FIR में भी आरोप हैं: आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, विश्वासघात।
- अब ED इस नई FIR को अपनी जांच में जोड़कर नई चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी कर रहा है।
क्या कदम होंगे आगे?
- ED नई FIR के आधार पर फिर से जांच करेगा।
- संभव है कि वह नई चार्जशीट दाखिल करे।
- कांग्रेस इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई कह रही है, जबकि भाजपा और ED इसे गंभीर आर्थिक अपराध मानते हैं।
राजनीतिक और कानूनी विश्लेषण
यह मामला लंबे समय से राजनीतिक रूप से संवेदनशील रहा है।
- कांग्रेस का तर्क: यह पूरी कार्रवाई राजनीतिक बदले की है।
- BJP का तर्क: यह गंभीर आर्थिक अपराध है, और जांच जारी रहेगी।
- कानूनी दृष्टिकोण: यदि शुरुआत में ही सही तरीके से FIR दर्ज की गई होती, तो लंबी कानूनी प्रक्रिया नहीं खिंचती।
क्या यह फैसला न्यायिक व्यवस्था की मजबूती है या तकनीकी खामी?
यह दर्शाता है कि कानून की प्रक्रिया में छोटी सी चूक भी बड़े नुकसान का कारण बन सकती है।
