
पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार।
नई दिल्ली TV 47 न्यूज नेटवर्क । बिहार को विशेष राज्य का दर्ज नहीं मिलेगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बारे में 22 जुलाई को संसद में यह जानकारी दी है। इसके बाद विपक्ष को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को घेरने का एक नया मुद्दा मिल गया। बिहार विधानसभा में नीतीश को इसका जवाब देना काफी भारी पड़ा। अब विपक्ष के निशाने पर नीतीश सरकार है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मोदी सरकार के इस फैसले से नीतीश नाखुश है। क्या उनकी नाराजगी का असर एनडीए की एकता पर पड़ेगा? क्या इस मुद्दे को लेकर नीतीश एनडीए से अलग हो सकते हैं? क्या वह एनडीए से अलग हुए तो मोदी सरकार का वजूद रहेगा? ये तमाम सवाल आज भी लोगों के मन में कौंध रहे हैं। इन सवालों पर राजनीतिक विशेषज्ञों की क्या राय है?
पासे राजनीतिक लाभ के लिए …..
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि राजनीति में दोस्ती नहीं चलती। इस खेल में न कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है न कोई स्थायी दुश्मन। यहां पासे राजनीतिक लाभ के लिए चले जाते हैं। जानकारों का कहना है कि नीतीश एनडीए में तब तक रहेंगे जब तक उनको बिहार की राजनीति में लाभ दिख रहा है। नीतीश जानते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार से वह राज्य को बहुत कुछ लाभ दिलाने की स्थिति में हैं। यह लाभ गैर भाजपाई सत्ता वाले राज्यों को नसीब नहीं होगा। नीति आयोग की बैठक में भी यह साफ हो गया। गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की नाराजगी का यही कारण रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो इसका मुखर विरोध भी किया है।
क्यों शुरू हुआ यह विवाद ….
दरअसल, इसकी बुनियाद लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद सेंट्रल हाल में 7 जून को एनडीए की बैठक में पड़ी थी। इस बैठक में शामिल होकर नीतीश कुमार ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया था कि वह इंडिया गठबंधन के किसी राजनीतिक लाभ से प्रेरित नहीं हैं। वह एनडीए का ही हिस्सा हैं। इतना ही नहीं इस बैठक में वह छाए रहे। बैठक में उन्होंने नरेंद्र मोदी की तारीफ में बहुत कुछ कहा था। नीतीश ने कहा था कि दस साल तक पीएम मोदी ने देश की सेवा की है। हमें पूरा भरोसा है कि जो कुछ भी बचा है, अगली बार ये सब पूरा कर देंगे। हम लोग पूरे तौर पर सब दिन इनके साथ रहेंगे। नीतीश ने कहा था कि बिहार और देश बहुत आगे बढ़ेगा। अब बिहार का भी सब काम हो ही जाएगा। जो कुछ भी बचा हुआ है, उसको भी कर देंगे। नीतीश के इस बयान को बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग से ही जोड़कर देखा गया था।
सुरक्षित है एनडीए की एकता …
1- राजनीतिक पंडितों का कहना है कि नीति आयोग की बैठक के पहले जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल का केंद्र सरकार से यह सवाल पूछना कि क्या बिहार समेत अन्य पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा देने का विचार है। उन्होंने कहा कि यह जेडीयू सांसद का सवाल अनायास नहीं था, बल्कि उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। इस सवाल के जरिए नीतीश मोदी सरकार पर एक दबाव बनाने की रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। हालांकि, केंद्र सरकार के जवाब से बिहार में विपक्ष को नीतीश कुमार को घेरने का मौका मिल गया, लेकिन जेडीयू अपने मिशन में कामयाब रही। वह इसके एवज में केंद्र सरकार से अन्य लाभ लेने की स्थिति में आ गई।
2- राजनीतिक पंडितों का कहना है कि फिलहाल एनडीए की एकता को अभी कोई खतरा नहीं है। बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त तक सब कुछ ठीक रहेगा। इसके बाद राजनीतिक समीकरण कैसे बनते हैं यह देखना दिलचस्प होगा। विधानसभा चुनाव में विपक्ष जब बिहार को स्पेशल राज्य के दर्जे को लेकर सवाल उठाएगा तब नीतीश को इसका जवाब जरूर खोजना होगा। उस समय कैसी राजनीतिक स्थिति बनती है। इस पर एनडीए की एकता निर्भर करेगी। अभी तो नीतीश कुमार राज्य के अन्य लाभों की ओर अपना ध्यान रखेंगे।
जेडीयू सांसद को मोदी के मंत्री ने दिया जवाब ….
जेडीयू सांसद के सवाल का लिखित जवाब देते हुए वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि विशेष दर्जा राष्ट्रीय विकास परिषद यानी एनडीसी की ओर से उन राज्यों को दिया जाता है, जो खास चुनौतियों का सामना करते थे। एनडीसी ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि मौजूदा मानदंडों के आधार पर बिहार के लिए विशेष दर्जे का मामला नहीं बनता है।
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