
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और हरिद्वार के मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं महंत रवींद्र पुरी
प्रयागराज महाकुंभ शुरू होने से पूर्व मेले में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और हरिद्वार में मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी जी सुर्खियों में रहे हैं। शाही स्नान का नाम बदलने से लेकर उर्दू और फारसी भाषा के साथ महाकुंभ में मुस्लिम बिरादरी को दूर रखने तक के मसले पर सीधे सवालों का उन्होंने बेबाकी से अपना जवाब दिया। प्रयागराज मेले में आए महंत रविंद्र पुरी ने टीवी 47 न्यूज नेटवर्क की टीम को विशेष साक्षात्कार दिया। पेश है उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश-
1- शाही स्नान की जगह राजसी स्नान क्यों ?
राजसी स्नान के नामकरण की प्रेरणा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव से मिली। दरअसल, उज्जैन में सावन के महीने में महाकाल मंदिर में भगवान महाकाल की सवारी प्रतिवर्ष निकलती है। इस दौरान भगवान महाकाल को शिप्रा नदी में स्नान कराया जाता है। पहले भगवान महाकाल के इस यात्रा को शाही सवारी कहा जाता था, लेकिन मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने इसे राजसी सवारी का नाम दिया। सीएम मोहन यादव जी के इस कदम ने धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ में नया आयाम दिया। उनका मानना था कि “शाही” शब्द के बजाय “राजसी शब्द अधिक उचित है, क्योंकि यह भारतीय परंपरा और संस्कृति के अनुरूप है। इसे उर्दू या फारसी भाषा के विरोध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
मुख्यमंत्री के इस कदम की सूचना हमको दिल्ली में मिली। इसके बाद ही हमने वहीं यह संकल्प लिया था कि प्रयागराज महाकुंभ में भी हम इसका प्रयोग करेंगे। इस विचार का देश के संत समाज ने भी खुलकर समर्थन किया। प्रयागराज महाकुंभ में होने वाले शाही स्नान को अब राजसी स्नान का नाम दिए जाने का संत समाज ने सामूहिक फैसला लिया। दरअसल, यह बदलाव भारतीय संस्कृति और धर्म की महानता को दर्शाता है। राजसी स्नान का नामकरण सिर्फ एक शब्द बदलने तक सीमित नहीं है। इसके साथ ही यह भारतीय संस्कृति और धर्म के महत्व को बढ़ाने का प्रयास भी है। यह बदलाव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज के गौरव को भी बढ़ाता है।
2- क्या आपको उर्दू शब्द से गुरेज है ?
न न न … कतई नहीं। हमें किसी भी भाषा से बैर नहीं है। हमें उर्दू से कोई गुरेज नहीं है। उर्दू और हिंदी दोनों सगी बहने हैं। हम तो कहते हैं प्रत्येक नागरिक को उर्दू और फारसी जरूर सीखना चाहिए। आप देखिए कई मुस्लिम समुदाय के लोग संस्कृत के प्रकांड विद्वान हैं। उर्दू और हिंदी दोनों भाषाएं भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा हैं और एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं। उर्दू का साहित्य, शेरो-शायरी, कविता और दर्शन भारतीय समाज की एक अहम पहचान है, जिसे हर नागरिक को समझना और सीखना चाहिए।
स्वामी राम तीरथ उर्दू के बड़ें विद्वान थे। हमारे उत्तराखंड के मांडा में कई मुस्लिम बिरादरी के लोगों ने संस्कृत से पीएचडी की है। बिना उर्दू के हमारा काम नहीं चल सकता हैं। इसमें किसी तरह की राजनीति नहीं है। उर्दू और फारसी की शिक्षा से हम अन्य सांस्कृतिक धरोहरों को बेहतर समझ सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। कई मुस्लिम विद्वान तो संस्कृत के ज्ञाता रहे हैं। उन्होंने भारतीय शास्त्रों, ग्रंथों और संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया है। यही स्थिति उर्दू और फारसी साहित्य की भी हो सकती है, जहां इस भाषा के माध्यम से हम भारतीय इतिहास, संस्कृति और दर्शन को और गहराई से समझ सकते हैं। हमें किसी भी भाषा या संस्कृति के प्रति पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए, बल्कि उनके अध्ययन से हम एक-दूसरे के अधिक करीब आ सकते हैं और आपसी समझ और सहिष्णुता बढ़ा सकते हैं।
3- मुस्लिम समुदाय को महाकुंभ मेले से दूररखने का फैसला क्यों ?
न न न…। हम संतों की बातों की गलत व्याख्या की गई। इस मांग के पीछे हमारी मंशा यह कतई नहीं थी। बिना इस बिरादरी के तो हमारा काम नहीं चलेगा। हमने कभी इस बात का विरोध नहीं किया। यह मेला कौन चला रहा है। यहां अधिकतर काम करने वाले ठेकेदार मुस्लिम बिरादरी के लोग तो है। वह बहुत निष्ठा से अपना काम करते हैं। वह ईमानदार है। इनके बिना काम कैसे चलेगा। सरकार फेल हो जाएगी। हमारे इस बयान के पीछे आशय सिर्फ यह था कि केवल पूजा पाठ और खान-पान के काम में इनको न लगाया जाए।
देखिए, यह कदम बहुत दूर तक सोच विचार कर लिया गया था। यह मेला संतों का है। दरअसल, हाल के दिनों में जिस तरह से खान पान में थूकने की घटना सामने आई है, ऐसे में हमने मेले में किसी अनहोनी घटना को रोकने के लिए और सामाजिक सौहार्द न बिगड़ने पाए इसलिए यह फैसला लिया है। इस कदम से हमारे धर्म की रक्षा हो जाएगी और सामाजिक सौहार्द भी बना रहेगा। इसका मकसद किसी समुदाय को हतोत्साहित करना नहीं है।
2013 में उत्तराखंड के राज्यपाल अजीज कुरैसी हरिद्वार में हमारे कालेज के वार्षिक समारोह में आए। उस कार्यक्रम में राधा-कृष्ण का एक मंचन हुआ था। राधा कृष्ण का रोल निभा रहे छात्र मुस्लिम बिरादरी के लोग थे। राधा और कृष्ण का रोल दोनों मुस्लिम छात्रा कर रही थीं। जब यह बात राज्यपाल महोदय को मालूम हुई तो वह हैरत में आ गए। यह प्रकरण सुनाने का मकसद यह है कि हमारा किसी बरादरी से कोई बैर या मतभेद नहीं है।
इनसेट —- क्या है अखाड़ा परिषद
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (ABAP) एक ऐसा संगठन है, जो हिंदू संतों और साधुओं के बीच समन्वय स्थापित करने और उनकी परंपराओं को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी स्थापना के समय की घटना ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक समाज के भीतर सहयोग और समन्वय की भावना नहीं होगी, तब तक हर समुदाय को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ABAP इस आवश्यकता को समझते हुए हिंदू धर्म के भीतर एकता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए निरंतर काम करता है।
ABAP का महत्व न केवल संतों और साधुओं के बीच संबंधों को बेहतर बनाने में है, बल्कि यह हिंदू धर्म की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था में एक केंद्रीय भूमिका निभाती है। इस संगठन ने कई बार विवादों को सुलझाने में सफलतापूर्वक भूमिका निभाई है, जिससे पूरे हिंदू समाज में शांति और सहयोग को बढ़ावा मिला है। इसके अलावा, ABAP ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार और दिशा-निर्देश भी दिए हैं, जिससे धार्मिक समुदायों में एकता बनी रहती है।