
महाकुंभ 2025: नन्हे संतों की अनोखी नर्सरी
प्रयागराज [अपर्णा मिश्रा ]। महाकुंभ 2025 की दिव्यता और भव्यता के बीच एक ऐसा दृश्य है जो हर किसी को चौंका देगा। यह है नन्हे संतों की नर्सरी, जहां परंपरा, अध्यात्म और मासूमियत का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस नर्सरी में श्रृचा, सनत, आस्था, सत्य, नित्यम, आज्ञा, संज्ञा, वत्सा, शिखा और गार्गी जैसे बाल संतों की उपस्थिति है, जिनके नाम ही उनकी दिव्यता को दर्शाते हैं। इस अनोखी नर्सरी में न केवल संत तैयार हो रहे हैं, बल्कि यह आध्यात्मिकता और परंपरा के संरक्षण का एक जीवंत उदाहरण है। यह नर्सरी एक संदेश देती है कि ज्ञान, साधना और परंपरा का कोई अंत नहीं होता, यह सदा प्रवाहित होती रहती है।
नर्सरी के नन्हे संत: गार्गी पुरी जी
इस नर्सरी के सबसे छोटे संत गार्गी पुरी जी हैं। इनकी उम्र मात्र नौ महीने है। उनकी बाल क्रीड़ा और मासूम मुस्कान में आध्यात्मिकता की झलक दिखाई देती है। उनके भीतर आध्यात्म का बीज अंकुरित हो चुका है। गार्गी पुरी जी न केवल इस नर्सरी की नई पौध का प्रतीक हैं, बल्कि आध्यात्मिकता की उस ऊर्जा का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हर पीढ़ी में प्रवाहित होती है।
मात्र नौ महीने की उम्र में गेरुवा वस्त्र धारण करने वाली गार्गी पुरी जी आश्रम में सहजता और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं। उनका गेरुवा वस्त्र न केवल उनकी मासूमियत को अलौकिक रंग प्रदान करता है, बल्कि इसे देखकर मन स्वाभाविक रूप से उनकी ओर आकर्षित हो जाता है।

गार्गी जी के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनके साथ रहने वाले अन्य संतों और दाय मां पर है, जो अत्यंत स्नेह और समर्पण के साथ उनकी देखभाल करते हैं। यह देखभाल केवल शारीरिक आवश्यकताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा का भी समावेश है। आश्रम में रहने वाले हर संत को यह सुनिश्चित करने का दायित्व है कि गार्गी जी को एक सुरक्षित, स्नेहपूर्ण और प्रेरणादायक वातावरण मिले।
गार्गी जी आश्रम की सभी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं। सुबह-शाम होने वाली वंदना और आरती में उनकी उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनकी उपस्थिति न केवल अन्य संतों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती है, बल्कि यह उनके बालमन में अनुशासन और अध्यात्म की नींव भी डालती है। आश्रम के वरिष्ठ सदस्यों के बीच विराजमान होकर गार्गी जी उनके अनुभवों और शिक्षाओं से लाभान्वित होती हैं।
उनके जीवन में अनुशासन और संयम का प्रभाव संतों की संगति से सहज ही देखने को मिलता है। आश्रम में बिताया गया हर क्षण उनके व्यक्तित्व में संस्कारों को गहराई से समाहित करता है। उनके बाल स्वभाव में जो सहजता और पवित्रता है। वह उनके भविष्य के आध्यात्मिक जीवन के लिए एक मजबूत आधार तैयार करती है।
गार्गी पुरी जी न केवल एक बाल संत हैं, बल्कि वह इस बात का प्रतीक भी हैं कि अध्यात्म और संस्कार की शिक्षा बचपन से ही दी जा सकती है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि सही मार्गदर्शन और वातावरण से व्यक्ति किसी भी अवस्था में आध्यात्मिकता को अपनाने और उसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाने में सक्षम हो सकता है।
ब्रह्मनिष्ठ संतोषपुरी गीता भारती: नर्सरी की पहली पौध
संतोषपुरी गीता भारती जी का नाम अध्यात्म की दुनिया में एक अद्वितीय स्थान रखता है। वह इस नर्सरी की पहली पौध हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान और साधना से अध्यात्म के आकाश में सितारे की तरह चमक बिखेरी। उनकी यात्रा एक प्रेरणा है, जो साधारण जीवन से असाधारण आध्यात्मिकता तक पहुंचने का मार्ग दिखाती है। तप और ज्ञान के बल पर वह 1962 में सबसे कम उम्र की महिला महामंडेश्वर बनीं। उनकी मौजूदगी इस आश्रम को एक नई ताकत और ऊर्जा प्रदान करती है।
उनकी आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ उनके जन्म से पहले ही हो गया था। ब्रह्मलीन हरिहरानंद जी ने उनके माता-पिता से वचन के रूप में उन्हें प्राप्त कर लिया था। यह परंपरा अनोखी थी। इसमें बच्चे का पालन-पोषण माता-पिता के बजाय गुरु के संरक्षण में होता था। संतोषपुरी गीता भारती जी इस परंपरा की नींव बनीं।

उनकी इस यात्रा ने न केवल इस नर्सरी को एक पहचान दी, बल्कि आध्यात्मिकता की नई ऊंचाइयों को भी छुआ। वह इस नर्सरी की पहली पौध थीं, जो आज एक विशाल वट वृक्ष के रूप में खड़ी हैं। उनकी जड़ें गहरी हैं और उनकी शाखाएं दूर-दूर तक फैली हैं।
गीता भारती जी का बचपन विशेष था। महज नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने गीता को पूरी तरह से कंठस्थ कर लिया था। उनके इस असाधारण प्रतिभा को पहचानते हुए,देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें “गीता भारती” की उपाधि दी। यह सम्मान उनके ज्ञान और आध्यात्मिक गहराई का प्रमाण था।
इस प्रकार, ब्रह्मनिष्ठ संतोषपुरी गीता भारती जी इस नर्सरी की नींव हैं। वह उस ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को अध्यात्म के मार्ग पर चलने का साहस और विश्वास प्रदान करती है। उनका जीवन एक जीवंत गीता है, जो सिखाती है कि आत्मज्ञान और सेवा ही सच्चा जीवन है।
स्वामी शरद पुरी जी: दूसरी पीढ़ी के संत
स्वामी शरद पुरी जी इस नर्सरी परंपरा के दूसरे पीढ़ी के संत हैं। उन्होंने अपने ज्ञान, साधना और परिश्रम से इस परंपरा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। उनका जीवन साधना, सेवा और अनुशासन का आदर्श प्रस्तुत करता है। इस नर्सरी में पलने वाले नन्हे संतों की देखभाल और उनके विकास की जिम्मेदारी उन्होंने बड़े प्रेम और समर्पण से निभाई है।
शरद पुरी जी मानते हैं कि नन्हे संतों को आध्यात्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी प्राप्त होनी चाहिए। उनका दृष्टिकोण संतों की शिक्षा के मामले में बेहद व्यापक और प्रगतिशील है। वह स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानते हैं और उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं। विवेकानंद के शिकागो धर्म महासभा में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का उल्लेख करते हुए, शरद पुरी जी अक्सर कहते हैं कि अगर विवेकानंद को अंग्रेजी का ज्ञान न होता, तो वह सनातन धर्म को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत नहीं कर पाते।
उनका मानना है कि संतों को केवल धर्म और अध्यात्म की शिक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उन्हें सभी प्रकार के ज्ञान और भाषाओं का बोध होना चाहिए। यही कारण है कि इस नर्सरी के नन्हे संतों को वैदिक परंपराओं के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी प्रदान की जाती है। आश्रम के भीतर एक खास स्कूल चलाया जाता है, जो एक अद्वितीय “आईसीएसई बोर्ड” के तहत संचालित है। इस स्कूल की खासियत यह है कि यह वैदिक परंपराओं और आधुनिक शिक्षा का समन्वय करता है।
नन्हे संतों को यहां अनुशासन, भाषा और संस्कारों की शिक्षा दी जाती है। वह फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने और पढ़ने में सक्षम हैं। बड़े हो चुके संत एमबीए और अन्य उच्च शिक्षा की डिग्रियां धारण कर चुके हैं, लेकिन उनकी डोर हमेशा आश्रम से जुड़ी रहती है। उनका जीवन सेवा और साधना के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
स्वामी शरद पुरी जी के नेतृत्व में नर्सरी के संतों को पढ़ाई और अनुशासन का अद्भुत संतुलन सिखाया जाता है। वह मानते हैं कि शिक्षा केवल ज्ञान अर्जित करने का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मविकास का मार्ग भी है। उनके प्रयासों का परिणाम यह है कि इस नर्सरी के संत समाज में अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं।
शरद पुरी जी ने इस परंपरा को और भी मजबूत किया है। उनके नेतृत्व में इस नर्सरी ने नई ऊंचाइयों को छुआ है। वह नन्हे संतों को यह सिखाते हैं कि ज्ञान और शिक्षा से आत्मबल मिलता है और यही आत्मबल समाज और धर्म की सेवा करने में सहायक होता है।
स्वामी शरद पुरी जी के जीवन का एक और महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वह संतों को समाज से जोड़े रखने में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि संतों को समाज की समस्याओं और जरूरतों को समझना चाहिए और उनके समाधान के लिए अपने ज्ञान और साधना का उपयोग करना चाहिए।
उनका यह दृष्टिकोण न केवल परंपरा को जीवित रखता है, बल्कि इसे समय के साथ और भी प्रासंगिक बनाता है। उनकी शिक्षाओं और प्रयासों ने इस नर्सरी को न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र बनाया है, बल्कि इसे एक ऐसा संस्थान भी बनाया है जो आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
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महामंडलेश्वर प्रज्ञापुरी जी: नर्सरी की अनोखी धरोहर
महामंडलेश्वर प्रज्ञापुरी जी इस नर्सरी परंपरा की तीसरी कड़ी हैं। संतोष पुरी जी और शरद पुरी जी के बाद, प्रज्ञापुरी जी और श्रृचा पुरी ने इस परंपरा को सजीव रखा और इसे आगे बढ़ाया। उनकी उपस्थिति से यह परंपरा और भी सुदृढ़ और प्रभावशाली हो गई है।
प्रज्ञापुरी जी का जीवन अनुशासन, समर्पण और ज्ञान का प्रतीक है। शरद पुरी जी के अनुसार, प्रज्ञापुरी और श्रृचा पुरी दोनों ही बहुत कम उम्र में आश्रम के नियमों के अनुरूप इसमें सम्मिलित हुई थीं। उनके पालन-पोषण और शिक्षा के पीछे संतों और आश्रम का विशेष योगदान रहा है। वर्तमान में, दोनों बहनें अपनी आध्यात्मिक और आधुनिक शिक्षा पूर्ण कर चुकी हैं।
प्रज्ञापुरी जी का व्यक्तित्व उनकी सहजता, सरलता और गहराई से परिपूर्ण है। वह शांत और गंभीर दिखती हैं, लेकिन उनके भीतर अद्भुत प्रखरता और ज्ञानमयी ऊर्जा है। आश्रम में नन्हे संतों के प्रति उनका स्नेह और देखभाल उन्हें एक आदर्श गुरु के रूप में स्थापित करता है।
आश्रम में प्रज्ञापुरी जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। वह शरद पुरी जी और श्रृचा पुरी के साथ मिलकर नन्हे संतों को मार्गदर्शन देती हैं। इन संतों को आध्यात्मिकता और आधुनिकता का संतुलन सिखाने में उनकी विशेष भूमिका है। वह नन्हे संतों को न केवल अनुशासन और संस्कारों की शिक्षा देती हैं, बल्कि उन्हें जीवन के हर पहलू में सक्षम बनाने का प्रयास करती हैं।
प्रज्ञापुरी जी का मानना है कि संतों को हर प्रकार के ज्ञान और अनुभव का भंडार होना चाहिए। वह वैदिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के महत्व को भी समझती हैं। आश्रम के आईसीएसई बोर्ड के तहत चलने वाले स्कूल में नन्हे संतों की शिक्षा पर उनका विशेष ध्यान है। इस शिक्षा प्रणाली में आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ वैदिक परंपराओं का भी समावेश है।
उनकी नेतृत्व क्षमता और त्वरित निर्णय लेने की योग्यता ने आश्रम को एक नई दिशा दी है। आश्रम में उनके ज्ञान, अनुभव और त्याग को देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले समय में वह इस परंपरा की प्रमुख गद्दी को संभाल सकती हैं। आश्रम को उनसे काफी उम्मीदें हैं और वह इन उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं।
प्रज्ञापुरी जी न केवल संतों के लिए प्रेरणा हैं, बल्कि वह आश्रम की अनमोल धरोहर भी हैं। उनके सान्निध्य में नन्हे संत पुष्पित और पल्लवित हो रहे हैं। वह अपने ज्ञान, समर्पण और स्नेह से इन नन्हे संतों को एक मजबूत आधार प्रदान कर रही हैं।
महामंडलेश्वर प्रज्ञापुरी जी का जीवन सादगी, सेवा और समर्पण का अद्भुत उदाहरण है। वह इस परंपरा की न केवल धरोहर हैं, बल्कि इसकी आधारशिला भी हैं। उनके मार्गदर्शन में यह नर्सरी आने वाले समय में और अधिक ऊंचाइयों को छूने में सक्षम होगी। उनका समर्पण और ज्ञान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।
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