
यूक्रेनी मूल के महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी
प्रयागराज [अपर्णा मिश्रा ]। यूक्रेनी मूल के महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने विश्व शांति पर जोर देते हुए कहा कि मानव सभ्यता का परम उद्देश्य शांति, प्रेम और समता की स्थापना है। उन्होंने कहा कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दो प्रमुख विचारधाराएं हैं- ‘लोका संग्रह’ जिसका अर्थ है सार्वभौमिक भलाई और ‘अरु पड्डई’ जो तमिल में सार्वभौमिक ज्ञान को संदर्भित करता है। विष्णुदेवानंद गिरी जी ने कहा कि इन विचारों को आत्मसात करने के लिए ध्यान (मेडिटेशन) एक अत्यंत प्रभावी साधन है। योग दर्शन में ऋषि पतंजलि ने चार ब्रह्मविहारों का वर्णन किया है, जो विश्व शांति की प्राप्ति में सहायक हो सकते हैं।
उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु’ का अर्थ है – ‘सभी जीव सुखी हों’। यह संदेश केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक ठोस अभ्यास है,जिसे चार ब्रह्मविहारों के ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। जब व्यक्ति अपने भीतर प्रेम, करुणा, आनंद और समता को विकसित करता है, तो यह गुण समाज और विश्व में भी परिलक्षित होते हैं। इस प्रकार, विश्व शांति का सपना तभी साकार हो सकता है जब हम स्वयं के भीतर शांति स्थापित करें।
चार ब्रह्मविहारों का ध्यान
विष्णुदेवानंद गिरी के अनुसार, आत्मिक शांति और विश्व कल्याण के लिए चार ब्रह्मविहारों का ध्यान अत्यंत प्रभावशाली साधना है। ऋषि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में इस ध्यान का उल्लेख किया है, जो व्यक्ति के आंतरिक संतुलन को विकसित करने के साथ-साथ संपूर्ण सृष्टि में प्रेम, करुणा, आनंद और समता का संचार करता है।
उन्होंने कहा कि ब्रह्मविहार का अर्थ है दिव्य भावनाएं। यह मनुष्य को उच्च आध्यात्मिक स्थिति तक पहुंचाने में सहायक होती हैं। ये चार ब्रह्मविहार इस प्रकार हैं। पहला, मैत्री (प्रेमपूर्ण भाव) – बिना किसी स्वार्थ के सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और सद्भावना रखना। दूसरा, करुणा (सहानुभूति) – दूसरों के दुःख में सहभागी होकर उनकी सहायता करने की भावना। तीसरा, मुदिता (परम आनंद) – दूसरों की खुशियों में आनंदित होना, बिना ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा के। चौथा, उपेक्षा (समत्व भाव) – समभाव और निष्पक्षता बनाए रखना, चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी द्वारा सुझाया गया यह ध्यान एक प्रभावी और सरल प्रक्रिया है, जिसे दिन में तीन बार, मात्र पांच-पांच मिनट के लिए किया जाता है। यह ध्यान मन और शरीर को संतुलित करने, आंतरिक शांति प्राप्त करने और मानसिक स्पष्टता बढ़ाने में सहायक होता है। उन्होंने कहा कि इसके ध्यान की एक खास प्रक्रिया है।
उन्होंने इसके लिए सही मुद्रा और स्थिति पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि ध्यान करने के लिए सबसे पहले एक शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें। किसी भी आरामदायक आसन, जैसे कि पद्मासन या सुखासन में बैठें। यदि भूमि पर बैठना संभव न हो तो कुर्सी का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन रीढ़ को सीधा रखना आवश्यक है।
दूसरे, बैठने के बाद अपने शरीर को पूरी तरह से आराम दें। कंधों को ढीला छोड़ें, हाथों को गोद में रखें और अपनी आंखें हल्के से बंद कर लें। अब धीरे-धीरे गहरी सांस लें और छोड़ें। यह प्रक्रिया शरीर को तनावमुक्त करने और ध्यान की गहराई में जाने के लिए तैयार करने में मदद करती है। तीसरे, अब अपने ध्यान को सांसों पर केंद्रित करें। हर सांस के साथ शरीर और मन में शांति और स्थिरता महसूस करें। यदि विचार भटकने लगें, तो उन्हें कोमलता से जाने दें और वापस अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें।
यह सरल ध्यान साधना मानसिक तनाव को कम करने, आत्म-जागरूकता बढ़ाने और सकारात्मक ऊर्जा को विकसित करने में सहायक होती है। नियमित रूप से इस ध्यान का अभ्यास करने से व्यक्ति के जीवन में शांति, संतुलन और आंतरिक शक्ति का संचार होता है।
आत्मजागरण का मंत्र
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने कहा कि ध्यान और आत्मिक उन्नति के लिए ‘ओम’ के प्रकाश की कल्पना अत्यंत प्रभावी साधना है। जब हम अपनी छाती के मध्य में एक उज्ज्वल ‘ओम’ का ध्यान करते हैं, तो यह हमारे भीतर शुद्ध चेतना और ब्रह्मांडीय ऊर्जा को जागृत करता है।
‘ओम’ केवल एक ध्वनि नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का मूल है। इसकी अनुगूंज से मन शांत होता है, विचार शुद्ध होते हैं और आत्मा परम तत्व से जुड़ती है। ध्यान करते समय जब हम इस दिव्य प्रकाश को अपने हृदय में अनुभव करते हैं, तो यह निरपेक्षता और शाश्वतता की अनुभूति कराता है।
गिरी जी के अनुसार, जो साधक प्रतिदिन इस साधना को अपनाते हैं, वे मानसिक शांति, आत्मबल और दिव्य अनुभूति प्राप्त करते हैं। ‘ओम’ के प्रकाश की कल्पना से आध्यात्मिक जागरण संभव है, जिससे मनुष्य अपने भीतर स्थित ब्रह्मांडीय ऊर्जा को महसूस कर सकता है और दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।
आत्मसंतुलन की साधना
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने कहा कि जीवन में मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन बनाए रखने के लिए भावनाओं से तालमेल आवश्यक है। जब हम प्रेम, करुणा, आनंद और समभाव को जागृत करते हैं, तो हमारा हृदय सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
उन्होंने साधकों को प्रेरित किया कि वे अपने जीवन की उन परिस्थितियों को याद करें, जब उन्होंने निस्वार्थ प्रेम महसूस किया था, जब करुणा से उनका हृदय द्रवित हुआ था, जब वे आनंद के क्षणों में डूबे थे और जब उन्होंने समभाव से हर परिस्थिति को स्वीकार किया था। इन भावनाओं को पुनः जागृत कर हम अपने भीतर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित कर सकते हैं।
गिरी जी ने समझाया कि भावनाओं पर हमारा नियंत्रण ही हमें आंतरिक शांति प्रदान करता है। जब हम अपनी भावनाओं को सही दिशा में केंद्रित करते हैं, तो जीवन सरल और सुंदर बन जाता है। यह साधना न केवल हमें मानसिक शांति देती है, बल्कि हमारे आसपास भी प्रेम और सौहार्द का वातावरण निर्मित करती है।
ब्रह्मांडीय ऊर्जा का विस्तार
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने कहा कि दिव्य भावनाओं का प्रसार न केवल आत्मिक शांति के लिए, बल्कि समग्र सृष्टि के कल्याण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जब हम अपने भीतर प्रेम, करुणा, और आनंद की भावनाओं को जागृत करते हैं, तो इन्हें प्रकाश की किरणों के रूप में कल्पना करें, जो हमारे शरीर से बाहर निकलती हैं।
यह दिव्य प्रकाश हमारे आस-पास के वातावरण को प्रकाशित करता है, और धीरे-धीरे यह हमारे घर, गांव, शहर, देश, संपूर्ण पृथ्वी और ब्रह्मांड के 14 लोकों तक फैलता है। गिरी जी ने बताया कि इस प्रकाश के फैलने से हर स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, और यह सभी जीवों को शांति, सुख और संतुलन प्रदान करता है।
जब हम इस दिव्य प्रकाश को महसूस करते हैं, तो हम न केवल अपने आत्मिक उन्नति के रास्ते पर चलते हैं, बल्कि हम पूरी सृष्टि को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इस साधना से ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने का अनुभव मिलता है, और हम सभी जीवों के कल्याण की कामना करने लगते हैं।
व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण
विष्णुदेवानंद गिरी ने बताया कि चार ब्रह्मविहारों का ध्यान केवल व्यक्तिगत कल्याण तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसके प्रभाव का दायरा पूरी सृष्टि पर पड़ता है। ये चार ब्रह्मविहार- प्रेम, करुणा, आनंद और समभाव – मनुष्य के भीतर उच्च भावनाओं को जागृत करते हैं, जो न केवल उसके मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि समाज और विश्व के लिए भी लाभकारी हैं।
गिरी जी के अनुसार, इन ब्रह्मविहारों का ध्यान मानसिक शांति और तनाव से मुक्ति प्रदान करता है। जब हम प्रेम और करुणा की भावना से परिपूर्ण होते हैं, तो सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप, हमारे मानवीय संबंधों में सुधार होता है, और हम समाज में सौहार्द और सहानुभूति का माहौल बनाते हैं।
इसके अतिरिक्त, यह ध्यान आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है, और व्यक्ति को ब्रह्मांडीय चेतना से जोड़ता है। यह ब्रह्मविहारों का अभ्यास न केवल हमें आंतरिक शांति देता है, बल्कि पूरे विश्व में शांति और सद्भाव का प्रसार करता है।
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने शांति और मुक्ति के मार्ग को अपनाने के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना है कि हमें सभी जीवों के लिए आशीर्वाद देना चाहिए ताकि वे धर्म और आत्मज्ञान के रास्ते पर चलें। उनका यह संदेश कि हम सभी को चार अनंतों के माध्यम से मोक्ष प्राप्त करने के लिए जागरूक करना चाहिए, यह हमारे जीवन में गहरी शांति और संतुलन ला सकता है।
‘शांति के लिए योगी’ आंदोलन की शुरुआत
2022 में, उन्होंने ‘शांति के लिए योगी’ आंदोलन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य युद्धों और संघर्षों के प्रभाव को कम करना था। उनका विश्वास था कि अगर लोग इस ध्यान का अभ्यास करें, तो पृथ्वी पर शांति और सामंजस्य की स्थिति स्थापित की जा सकती है। इस ध्यान के लिए किसी विशेष गुरु से संचरण प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है और यह किसी भी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं है। यह हर व्यक्ति के लिए, चाहे वह हिंदू हो या किसी अन्य धर्म का अनुयायी उपयुक्त है।
यह योग सरल और शक्तिशाली प्रक्रिया
यह ध्यान एक ऐसी सरल और शक्तिशाली प्रक्रिया है, जो किसी भी व्यक्ति को आंतरिक शांति और समग्रता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकती है। विष्णुदेवानंद गिरी के अनुसार, इस ध्यान का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत मुक्ति नहीं, बल्कि समाज और संसार में शांति की स्थापना है। उनके शब्दों में, “धर्म और आत्मज्ञान की दिशा में एक कदम बढ़ाना, न केवल अपने लिए, बल्कि पूरे संसार के लिए भी एक महान योगदान है।”
महामंडलेश्वर विष्णुदेवानंद गिरी ने एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है, जिसमें उन्होंने ध्यान के महत्व पर जोर दिया। उनका कहना है कि अगर हर व्यक्ति बिना किसी प्रतिबंध के ध्यान का अभ्यास करे और दूसरों को भी यह सिखाए, तो यह पूरी दुनिया को एक स्वर्गीय स्थान में बदल सकता है। उनका विश्वास है कि ध्यान करने से विशेष रूप से चार अनंतों का ध्यान करने से, सत्व ऊर्जा जागृत होती है, जो पृथ्वी पर सबसे मूल्यवान खजाना है।
सत्व ऊर्जा सोने, हीरे, आभूषण, प्लेटिनम, गैस और तेल से कहीं अधिक मूल्यवान
विष्णुदेवानंद गिरी के अनुसार, सत्व ऊर्जा सोने, हीरे, आभूषण, प्लेटिनम, गैस और तेल से कहीं अधिक मूल्यवान है। यह मानवता के लिए सबसे कीमती संसाधन है, जिसे हमें खोजने और जागरूक करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि आजकल दुनिया में गैस, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन सत्व ऊर्जा की हमेशा कमी रहती है। इस कमी को दूर करने के लिए, ध्यान के अभ्यास को फैलाना और इसे लोगों के जीवन का हिस्सा बनाना बहुत महत्वपूर्ण है।
उनके अनुसार ध्यान एक शक्तिशाली साधना है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन को बेहतर बनाती है, बल्कि समाज और पूरे ग्रह को भी लाभ पहुंचाती है। यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, अगर अरबों लोग नियमित रूप से ध्यान का अभ्यास करें, तो इससे न केवल उनकी व्यक्तिगत स्थिति में सुधार होगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और समृद्धि का वातावरण बनेगा। यही कारण है कि विष्णुदेवानंद गिरी ने सभी को इस ध्यान के अभ्यास में भाग लेने की प्रेरणा दी है, ताकि हम एक ऐसी दुनिया बना सकें, जो प्रेम, शांति और सत्व ऊर्जा से भरी हो।
सत्व ऊर्जा का महत्व बहुत गहरा
विष्णुदेवानंद गिरी के बताया कि सत्व ऊर्जा का महत्व बहुत गहरा है। यह वह ऊर्जा है जो जीवन में शांति, संतुलन और समृद्धि लाती है। जब समाज में सत्व ऊर्जा की कमी होती है, तो जीवन में तनाव, संघर्ष और असंतुलन बढ़ जाता है। लेकिन ध्यान और साधना के माध्यम से हम सत्व ऊर्जा को जागृत कर सकते हैं, उसका उत्पादन कर सकते हैं और समाज में उसका प्रसार कर सकते हैं।
जब सत्व ऊर्जा का प्रसार होता है, तो यह समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। खुशियां, आनंद, सफलता और विकास स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होने लगते हैं। इसका असर केवल व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के स्तर पर भी परिवर्तन लाता है। जैसे-जैसे सत्व ऊर्जा फैलती है, अर्थव्यवस्था फलने-फूलने लगती है। चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार होता है, जीवन प्रत्याशा बढ़ती है और लोगों में एकता और भाईचारे का भाव विकसित होता है।
साथ ही, यह समाज में अपराधों को भी कम करती है और मौसम की स्थितियां भी अधिक अनुकूल होती हैं। सत्व ऊर्जा के प्रभाव से संसार में एक सकारात्मक बदलाव आता है, जिससे सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। जब हर व्यक्ति के जीवन में सत्व ऊर्जा जागृत होती है, तो धरती पर स्वर्ग का अनुभव होता है।