
पीएम मोदी ने क्यों किया घरेलू गौरैया का जिक्र
प्रयागराज [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। पीएम मोदी ने हमारे शहरों से लुप्त हो रही गौरैया का भी जिक्र किया। इस बात पर जोर देते हुए कि गौरैया जैव-विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि बढ़ते शहरीकरण के कारण आज शहरों में गौरैया मुश्किल से दिखाई देती है। अपने गौरैया बचाओ अभियान में स्कूली बच्चों को शामिल करने के लिए चेन्नई स्थित कुदुगल ट्रस्ट का हवाला दिया। आइए जानते हैं कि घरेलू गौरैया, जो कभी हमारे घरों के आंगन और बगीचों में सामान्य रूप से देखी जाती थी, आजकल तेजी से क्यों घट रही है यह पक्षी ? इसके साथ यह भी जानेंगे कि घरेलू गौरैया की घटती संख्या के कारण क्या है ? आखिर इसे कैसे बचाया जा सकता है ?
घरेलू गौरैया का इतिहास और फैलाव
घरेलू गौरैया (Passer domesticus) की उत्पत्ति यूरोपीय और एशियाई देशों से हुई थी। 19वीं सदी में, मानव हस्तक्षेप के कारण यह पक्षी विश्वभर में फैल गया। न्यूयॉर्क शहर में 1850 के दशक में पहली बार इन पक्षियों को लाया गया था, और जल्दी ही ये अमेरिका के अधिकांश हिस्सों में फैल गए। इसी तरह, अन्य क्षेत्रों में भी मानव गतिविधियों के कारण गौरैया की उपस्थिति बढ़ी।
गौरैया की घटती संख्या के कारण
- आवास और खाद्य स्रोतों की कमी: बदलती कृषि पद्धतियों और शहरीकरण के कारण गौरैया के लिए आवास और खाद्य स्रोतों की कमी हो रही है। पुराने समय में, शहरी क्षेत्रों में बिखरे हुए अनाज और खेतों में फैले हुए खाद्य पदार्थ गौरैया के लिए एक प्रमुख आहार स्रोत थे, लेकिन अब यह स्रोत घटते जा रहे हैं।
- वायु प्रदूषण: बढ़ते वायु प्रदूषण का असर भी घरेलू गौरैया पर पड़ा है। प्रदूषित हवा में रहने से गौरैया के शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे उनकी प्रजनन दर भी प्रभावित हो रही है।
- कीटों की कमी: घरेलू गौरैया अपने बच्चों को पालने के लिए कीड़ों पर निर्भर रहती हैं। वैश्विक स्तर पर कीटों की संख्या में गिरावट के कारण, गौरैया के लिए आवश्यक आहार मिलना मुश्किल हो रहा है।
- शहरी सफाई और सुधार: शहरों में स्वच्छता प्रथाओं में सुधार के साथ, कचरा और अन्य खाद्य स्रोतों की कमी हो रही है। इससे गौरैया जैसे छोटे पक्षियों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो गई है।
- कृषि का आधुनिकीकरण: कृषि में बदलाव के कारण अब खेतों में विविधता कम हो गई है। पारंपरिक कृषि पद्धतियों के स्थान पर एकल फसल प्रणाली (monoculture) का प्रयोग बढ़ गया है, जिससे पक्षियों के लिए खाद्य स्रोत सीमित हो गए हैं।
घरेलू गौरैया के संरक्षण के उपाय
- बर्ड हाउस और घोंसला निर्माण: घरों में बर्ड हाउस लगाकर हम घरेलू गौरैया के लिए सुरक्षित स्थान बना सकते हैं। यह कदम विशेष रूप से शहरी इलाकों में प्रभावी हो सकता है, जहां इनके लिए प्राकृतिक घोंसला स्थलों की कमी हो रही है।
- कीट संरक्षण: यदि कीटों की कमी के कारण गौरैया के प्रजनन में समस्या आ रही है, तो कृषि क्षेत्रों में कीटों का संरक्षण करना आवश्यक होगा। इसके लिए प्राकृतिक कीट नियंत्रण विधियों को अपनाना लाभकारी हो सकता है।
- आवासीय क्षेत्र में हरियाली बढ़ाना: शहरी क्षेत्रों में वृक्षारोपण और बागवानी गतिविधियों को बढ़ावा देने से गौरैया के लिए आवास और आहार दोनों की उपलब्धता बढ़ सकती है।
- सफाई प्रथाओं का पुनर्मूल्यांकन: शहरी इलाकों में कचरा प्रबंधन और स्वच्छता प्रथाओं को इस तरह से संशोधित किया जा सकता है कि छोटे पक्षियों को भोजन मिल सके।
- शिक्षा और जागरूकता: लोगों को घरेलू गौरैया के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना जरूरी है। इसके लिए विभिन्न पक्षी संरक्षण संस्थाओं द्वारा विश्व गौरैया दिवस जैसे आयोजनों का समर्थन किया जा सकता है।
घरेलू गौरैया की घटती संख्या का प्रभाव
घरेलू गौरैया का घटना न केवल एक प्रजाति का नुकसान है, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर भी असर डाल सकता है। गौरैया की उपस्थिति अन्य कीटों और बीजों के नियंत्रण में मदद करती है। इन पक्षियों की कमी से कृषि क्षेत्रों में कीटों की संख्या बढ़ सकती है, जो फसलों के लिए हानिकारक हो सकता है।
घरेलू गौरैया की घटती संख्या पर चिंता जताना जरूरी है, क्योंकि यह हमारे पर्यावरण के लिए एक चेतावनी है। हालांकि, हम सभी मिलकर इस पक्षी की सुरक्षा के लिए कई कदम उठा सकते हैं। बर्ड हाउस, प्राकृतिक आवासों का संरक्षण, और कीटों का संरक्षण जैसे उपाय इस दिशा में मददगार साबित हो सकते हैं। यदि हम समय रहते इस दिशा में काम करें, तो हम घरेलू गौरैया जैसी महत्वपूर्ण प्रजाति के संरक्षण में सफल हो सकते हैं।