
नीलम करवरिया की फाइल फोटो।
प्रयागराज [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। मेजा सीट से भाजपा की पूर्व विधायक नीलम करवरिया (55 साल) का निधन हो गया। उन्हें लिवर सिरोसिस की बीमारी थी। कुछ दिनों से हैदराबाद के निजी अस्पताल में भर्ती थीं। गुरुवार देर रात अस्पताल में ही अंतिम सांस ली।
बता दें कि वह हैदराबाद के अस्पताल में वेंटिलेटर पर थीं। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए पिछले कई दिनों से हैदराबाद के अस्पताल में भर्ती थीं। ब्लड प्रेशर लो होने के बाद अचानक बिगड़ी तबीयत। उनके लाखों समर्थकों ने उनके जल्द ठीक होने की दुआएं की थी । उनके समर्थकों द्वारा कई जगहों पर उनके जल्द स्वस्थ्य होने के लिए पूजा पाठ और अर्चना की जा रही थी।
तीन पीढ़ी की राजनीतिक विरासत को संभाल रहीं नीलम करवरिया
कहा गया है कि कभी कभी समय भी कड़े इंतहान लेता है। ऐसा ही कुछ नीलम करवरिया के साथ हुआ। परिस्थितियों ने ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा किया कि उन्हें भी राजनीति में उतरना पड़ा, और वर्ष 2017 में भाजपा ने प्रयागराज की मेजा विधानसभा से नीलम करवरिया को प्रत्याशी बनाया।
चुनाव में नीलम करवरिया ने जीत दर्ज की, और पहली बार विधायक बनीं। जबकि एक समय ऐसा था कि कभी करवरिया बंधु के नाम से विख्यात कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया एक साथ सांसद, विधायक और एमएलसी हुआ करते थे, और एक समय ऐसा आया कि अपनी राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया को चुनावी मैदान में उतरना पड़ा। फिलहाल करवरिया बंधु की जनता के बीच बनाए गए भरोसे ने नीलम करवरिया का साथ दिया।
करवरिया परिवार का राजनीतिक इतिहास
1- वैसे तो राजनीति में कदम भुक्खल महराज के पिता ने ही रख दिया था। राजनीति से न पिता को और न ही इन्हें कुछ विशेष हासिल हो सका था। वर्ष 2000 में भुक्खल महराज के बड़े बेटे कपिलमुनि करवरिया पहली बार कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे। उसके बाद वर्ष इलाहाबाद जिले के भाजपा के कर्णधार माने जाने वाले उदयभान करवरिया ने वर्ष 2002 में पहली बार जिले के बारा विधानसभा में कमल खिलाया और विधायक बने थे।
2- उसके बाद वर्ष 2005 में सबसे छोटे भाई सूरजभान करवरिया ने भी राजनिति में कदम बढ़ाया और मंझनपुर के ब्लाक प्रमुख बने। इसके उपरांत 2007 में सूरजभान एमएलसी बने। वहीं 2007 में भी भाजपा ने फिर से उदयभान करवरिया को बारा से प्रत्याशी बनाया और उदयभान ने जीत दर्ज कर दोबारा विधायक बन गए, जबकि उदयभान उस चुनाव में इलाहाबाद के अकेले भाजपा विधायक थे।
3- इसके बाद कपिलमुनि करवरिया भी फूलपुर से सांसद बन गए। उस समय जब करवरिया बंंधु एक साथ विधायक, सांसद और एमएलसी थे तो इनके राजनीतिक रसूख की चर्चा न सिर्फ इलाहाबाद में थी बल्कि आस पास के जिले में भी इनकी बातें होती थीं। कुछ ही समय बीतने के बाद जवाहर पंडित हत्याकांड में कुछ ऐसा हुआ कि तीनों भइयों को जेल जाना पड़ा।
नीलम ने सभांली कमान
करवरिया बंधु के जेल जाने के बाद हजारों समर्थकों और कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा थी, लेकिन उन सभी के विश्वास को कायम रखने के लिए उदयभान ने बड़ा फैसला लिया और अपनी पत्नी नीलम करवरिया को राजनीति में दाखिल किया। नीलम करवरिया ने भी उन जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और पहली बार में ही मेजा से विधायक बनीं।
विधायक बनने के बाद नीलम करवरिया ने जनता के सुख दुख और जरूरतों में शामिल होकर उदयभान की राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह से संभाल लिया। यही कारण है कि पद न होने के बाद भी नीलम करवरिया को यमुनापार का सबसे लोकप्रिय नेता माना जा रहा है।