
प्रो हर्ष वी पंत। फाइल फोटो।
नई दिल्ली [TV 47 न्यूज नेटवर्क]। Bangladesh Coup: बांग्लादेश में घटित हो रहे राजनीतिक घटनाक्रम ने भारत को जबरदस्त चिंता में डाल दिया है। पड़ोसी मुल्क के राजनीतिक संकट की आंच भारत तक पहुंच रही है। बांग्लादेश के इस संकट ने जहां भारत की कूटनीति के समक्ष एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। वहीं दूसरी ओर भारत की सामरिक चुनौती भी बढ़ गई है। आइए जानते हैं कि बांग्लादेश के सियासी संकट का असर भारत पर किस तरह से पड़ेगा। भारत की सामरिक सुरक्षा को कैसा खतरा उत्पन्न हो गया है। भारत के लिए हसीना क्यों उपयोगी है। बिना शेख हसीना वाले बांग्लादेश से भारत को कौन सी दिक्कतें होने वाली है। इस पर विशेषज्ञों की क्या राय है।
अलगाववादियों पर चीन की नजर
प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पूर्वोत्तर भारत में अलगाववादी आंदोलन को दबाने में भी हसीना सरकार ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। इन अलगाववादियों को बांग्लादेश के कैंपों से समर्थन मिल रहा था। हसीना सरकार ने वहां रह रहे अलगाववादी आंदोलन के बड़े नेताओं को भारत को सौंप दिया। इसमें उल्फा नेता अरविंद राजखोवा समेत कई दूसरे अलगाववादी नेता शामिल हैं। अब उन पर भारत से शांति वार्ता का दबाव है। ऐसे में अगर बांग्लादेश में हसीना की सरकार नहीं रहती तो भारत के लिए यह सहज स्थिति नहीं होगी। इन अलगाववादियों पर चीन की नजर होगी। चीन अलगाववादियों के जरिए पूर्वोत्तर भारत को अस्थिर कर सकता है। यह भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी।

करोड़ों के निवेश पर संकट
इस संकट के चलते दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते भी प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में बांग्लादेश हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वर्ष 2022-23 के बीच दोनों देशों के बीच का कुल व्यापार 15.93 बिलियन अमेरिकी डालर रहा है। ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देश कई प्रोजेक्ट्स पर संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। बांग्लादेश वर्तमान में 1160 मेगावाट बिजली भारत से आयात कर रहा है। दोनों देशों के बीच भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन बेहद अहम है। भारत ने पिछले एक दशक में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाहों के निर्माण के लिए हजारों करोड़ रुपये दिए हैं।
भारत के लिए क्यों जरूरी है हसीना
बांग्लादेश की सियासत में दो प्रमुख चेहरे हैं। बांग्लादेश आवामी लीग की शेख हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की खालिदा जिया। पिछले कई वर्षों से देश की राजनीति इनके इर्द-गिर्द घूमती रही है। बांग्लादेश में पिछले 15 वर्षों से आवामी लीग की सरकार थी। आवामी लीग उदार, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मुल्यों पर भरोसा करती है। इसके चलते भारत के प्रति उसका रवैया काफी नरम है। यही कारण है कि भारत ने भी उसे प्राथमिकता दी है। दूसरी ओर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पाटी का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथियों की ओर है। इसके चलते वह हमेशा से पाकिस्तान की पैरवी करती आई है।
भारत के लिए क्यों जरूरी है बांग्लादेश में स्थिर सरकार
1- प्रो पंत का कहना है कि भारत का प्रयास रहा है कि बांग्लादेश सहित अपने अन्य पड़ोसी मुल्कों से उसके बेहतर संबंध हो। भारत सदैव पड़ोसी देशों में लोकतंत्र और एक स्थिर सरकार का हिमायती रहा है। भारत की कोशिश होगी कि बांग्लादेश में एक स्थिर और निर्वाचित सरकार बने। भारत का यह प्रयास भी होगा। बांग्लादेश के राजनीतिक घटनाक्रम से भारत की चिंता बढ़ी है। पूरे घटनाक्रम पर उसकी पैनी नजर भी है।

2- उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की मौजूदा सरकार के साथ भारत के बेहतर संबंध हैं। उन्होंने कहा कि शेख हसीना की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ निकटता रही है। शेख हसीना चीन और भारत के बीच संतुलन बनाकर रखती थीं, लेकिन अब इस संतुलन पर प्रश्न खड़े होने लगे हैं। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में विपक्षी बीएनपी की पाकिस्तान और चीन के साथ निकटता है। इतना ही नहीं बीएनपी देश में इस्लामिक राजनीति की बात करता है। ऐसे में अगर बीएनपी की या उसकी समर्थित सरकार बनती है तो भारत के साथ रिश्तों में तल्खी आना स्वाभाविक है।
3- प्रो पंत ने कहा कि अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बांग्लादेश में किस तरह से राजनीतिक प्रक्रिया की शुरुआत होती है। सेना किस सूझबूझ के साथ देश में राजनीतिक प्रक्रिया की बहाली करता है। उन्होंने कहा कि अभी तो सेना की पहली प्राथमिकता देश में कानून व्यवस्था को पटरी पर लाना होगा। प्रो पंत ने कहा कि इसमें कोई संशय नहीं कि शेख हसीना सरकार का जाना भारत के लिए एक बड़ा झटका है।
4- भारत-बांग्लादेश के रिश्तों की जड़ें बहुत गहरी है। दोनों देशों के बीच पिछले पांच दशकों से द्विपक्षीय संबंध है। उन्होंने कहा कि इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गत वर्ष नई दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन में बांग्लादेश को विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
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