
योगमाता कीको ऐकावा महाकुंभ 2025
जापान की योगमाता कीको ऐकोवा की आध्यात्मिक यात्रा सत्य, योग और मानवता के गहरे मूल्यों से प्रेरित है। कीको ऐकोवा का जन्म भले जापान में हुआ लेकिन उनका दिल हिदुस्तानी है। उनका जीवन और विचारधारा भारतीय दर्शन और योग परंपरा की उत्कृष्टता का प्रतीक है। जापान में जन्मी योगमाता कीको ऐकोवा भारत की योग परंपरा से इतनी प्रभावित हुईं की वह भारत की हो गईं। बचपन में सत्य की खोज करते हुए योग के प्रति उनकी लगन ऐसी लगी की वह योग साधना की ‘मीरा’ हो गई। योग और कर्म कांड में कौन श्रेष्ठ है ? उनको योग की प्रेरणा कहां से मिली ? उनके अध्यात्मिक गुरु से उनका मिलन और बाबा पायलट से मुलाकात पर उनके विचार और योग के क्षेत्र में भारत का भविष्य और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में क्या सोचती है ? जैसे तमाम ज्वलंत मुद्दों पर योगमाता कीको ऐकोवा ने बेबाकी से जवाब दिया। पेश है उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश।
प्रश्न : आप योग और कर्मकांड में से किसे श्रेष्ठ मानती हैं ?
उत्तर : ईश्वर प्राप्ति और सत्य की खोज के लिए मैं कर्मकांड से अधिक योग को महत्व देती हूं। योग केवल शरीर और मन का संयोजन नहीं है, बल्कि यह आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम है। हमारे गुरु ब्रह्मलीन हरि बाबा ने यह प्रमाणित किया कि योग के माध्यम से सर्व सत्ता का बोध और सत्य की अनुभूति संभव है।
प्रश्न : आपकी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर : मेरी आध्यात्मिक यात्रा अन्य संतों से कुछ भिन्न रही है। बाल्यकाल में ही मानवता और प्रकृति के प्रति मेरा प्रेम जागृत हो गया था। सत्य को जानने और उसे समझने की लालसा बचपन से ही थी। मेरे पिता ने मुझे मानवता का पाठ पढ़ाया। वह पेशे से वकील थे। वे बेहद दयालु व्यक्ति थे। हमेशा लोगों की मदद करते थे। दुर्भाग्यवश, उनका बहुत कम उम्र में निधन हो गया, लेकिन उनके संस्कार मेरे भीतर गहरे उतर गए। इसी कारण, बाल्यकाल से ही लोगों की सेवा करना मुझे आनंदित करता था।
प्रश्न : सत्य की खोज में आपके अनुभव कैसे रहे ?
उत्तर : सत्य की खोज में मैंने भारत सहित कई यूरोपीय देशों की यात्रा की, लेकिन वास्तविक अनुभूति मुझे हिमालय में आकर हुई। यहां मेरी मुलाकात ब्रह्मलीन हरि बाबा से हुई, जो योग पुरुष थे। यह मेरी यात्रा का निर्णायक मोड़ था। उनके सान्निध्य में मुझे समाधि का बोध हुआ। यह अनुभव मेरे जीवन को नई दिशा देने वाला था। हिमालय में मुझे सत्य और प्रकृति के साथ दिव्य अनुभूति हुई।
प्रश्न: आप समाधि को कैसे परिभाषित करती हैं ?
उत्तर : समाधि आत्मा और परमात्मा के मिलन की अवस्था है। यह स्थिति केवल योग के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है। समाधि में हमें सभी बंधनों से मुक्ति मिलती है और हम सच्चे अर्थों में अपने अस्तित्व का अनुभव कर पाते हैं। 1991 से 2007 तक तक मैंने 18 बार भू-समाधि ली है, जो मेरी साधना का एक हिस्सा है।
प्रश्न: आपकी साधना का मुख्य आधार क्या है ?
उत्तर : मेरा साधना का आधार भारतीय दर्शन और योग है। मेरा मानना है कि योग न केवल आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है, बल्कि सत्य को जानने का मार्ग भी प्रदान करता है। इसके साथ ही हिमालय में साधना करने से प्रकृति और सत्य का साक्षात्कार आसान हो जाता है। यही कारण है कि मैं आज भी भारतीय परंपराओं और योग साधना में अटूट विश्वास रखती हूं।
प्रश्न: समाधि में आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?
उत्तर : समाधि में मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि 96 घंटे तक एक बंद भूमिगत कक्ष में रहकर ध्यान और योग की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रदर्शन करना है। यह एक सार्वजनिक समाधि थी और इस तरह का साहसिक कार्य करने वाली मैं पहली महिला थी। इस उपलब्धि ने ध्यान और समाधि की गहराई को दर्शाते हुए यह साबित किया कि योग और ध्यान के माध्यम से मानव मन और शरीर असीम संभावनाओं तक पहुंच सकते हैं।
प्रश्न : इस उपलब्धि के दौरान आपने क्या अनुभव किया और यह दूसरों के लिए कैसे प्रेरणादायक है?
उत्तर : इस समाधि के दौरान मैंने ध्यान की चरम अवस्था का अनुभव किया, जिसमें बाहरी दुनिया से मेरा कोई संपर्क नहीं था। यह आत्मा के साथ गहरे जुड़ाव और आंतरिक शांति की स्थिति थी। यह उपलब्धि यह संदेश देती है कि योग और ध्यान के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने भीतर शांति और संतुलन पा सकता है।
प्रश्न : आपके लिए मानवता और आध्यात्मिकता का क्या महत्व है ?
उत्तर : मानवता और आध्यात्मिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। मानवता का बीज बचपन में ही मेरे पिता ने मुझमें बोया था। मानवता के बिना आध्यात्मिकता अधूरी है। मुझे लगता है कि ईश्वर का साक्षात्कार तभी संभव है जब हम दूसरों की सेवा और प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीवन जीते हैं।
प्रश्न : पायलट बाबा के साथ आपका परिचय कैसे हुआ ?
उत्तर : यह एक संयोग था। वर्ष 1984 में ब्रह्मलीन पायलट बाबा से मेरी मुलाकात हुई जब वह जापान में एक टेलीविजन शो के सिलसिले में आए थे। उस समय मैं जापान और अन्य यूरोपीय देशों में योग केंद्र संचालित कर रही थी। जापान में मेरी एक पहचान बन चुकी थी। मैं अपने गुरु हरि बाबा से बहुत प्रभावित थी और पायलट बाबा भी गुरु हरि बाबा के ही शिष्य थे। हमारी इस मुलाकात के बाद भारत में मेरी यात्रा बढ़ गई। हमने पायलट बाबा के साथ कई स्थानों पर भू समाधि ली। वह मेरे गुरु भाई थे। इसके बाद हमने कई महाकुंभों में साथ समय बिताया।
प्रश्न : आप जूना अखाड़ा की महामंडलेश्वर कैसे बनीं ?
उत्तर : मैंने 2007 में जूना अखाड़ा की महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त की। यह मेरे लिए बहुत गर्व की बात थी क्योंकि मैं जूना अखाड़ा की पहली महिला महामंडलेश्वर थी। इससे पहले जूना अखाड़ा में महिलाओं को यह उपाधि नहीं दी जाती थी। अखाड़ा ने भारतीय सनातन परंपरा और योग साधना में मेरी रुचि को देखते हुए यह निर्णय लिया। यह मेरे तप और साधना का सम्मान था। मैंने दुनिया के कई देशों की यात्रा की है, लेकिन भारत की भूमि अनोखी और अलौकिक है। हिमालय का अनुभव तो अवर्णनीय है। वहां शांति, सत्य और दिव्यता है, जो दुनिया के किसी और स्थान पर नहीं मिलती।
प्रश्न : भारत के योग गुरु बनने की संभावनाओं पर आप क्या सोचती हैं ?
उत्तर : भारत के पास योग गुरु बनने की अपार क्षमता है। यह देश ज्ञान, तप और साधना का प्रतीक है। ऋषि-मुनियों ने अपनी साधना से इस भूमि को पवित्र और अलौकिक बनाया है। यहां ज्ञान, भक्ति और कर्म का अनूठा संगम है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है। ‘ही इस ए गुड मैन।’ उन्होंने योग और सनातन के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मोदी जी खुद एक साधक हैं और सनातन परंपरा के पोषक हैं। उनके नेतृत्व में भारत निश्चित रूप से योग गुरु बनने के करीब है। यह सदी भारतीय योग की है।
प्रश्न : अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और अन्य अवसरों पर प्रधानमंत्री से कैसे संपर्क किया, आपकी भूमिका उनके साथ कैसे जुड़ी है ?
उत्तर : नरेंद्र मोदी जी के साथ मेरा रिश्ता गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक है। हमारा पहला महत्वपूर्ण संपर्क 2016 में हुआ, जब उन्होंने भारतीय संस्कृति और योग के प्रति मेरे प्रयासों की सराहना की। इस मुलाकात ने भारत और जापान के बीच सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों को मजबूत किया। मोदी जी की योग के प्रति निष्ठा और इसे विश्व मंच पर ले जाने की प्रतिबद्धता मेरे प्रयासों के साथ मेल खाती है।
2023 में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के दौरान, मैंने संयुक्त राष्ट्र में योग सत्र का नेतृत्व किया और नरेंद्र मोदी जी को आशीर्वाद देने का सौभाग्य प्राप्त किया। यह क्षण न केवल उनके योग के प्रति गहरे समर्पण को दर्शाता है, बल्कि योग को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के हमारे साझा उद्देश्य को भी रेखांकित करता है। उनका नेतृत्व योग को केवल एक अभ्यास से ऊपर उठाकर जीवन का दर्शन बनाने में सहायक रहा है।
योगमाता के रूप में मेरा जीवन योग, ध्यान और शांति के संदेश को फैलाने के लिए समर्पित है। इस संदर्भ में, नरेंद्र मोदी जी जैसे नेता, जिन्होंने योग को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई, मेरे लिए प्रेरणादायक हैं।
प्रश्न : योगमाता के रूप में आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रही हैं, मोदी जी के साथ संबंध कैसे जुड़ता है?
उत्तर: मेरी प्रमुख उपलब्धियों में 2019 में विश्व शांति सलाहकार के रूप में दादा साहब फाल्के फिल्म फाउंडेशन अवार्ड प्राप्त करना शामिल है। यह सम्मान मेरे उन प्रयासों की मान्यता थी, जो मैंने ध्यान और योग के माध्यम से शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए किए। यह वही दृष्टिकोण है जिसे नरेंद्र मोदी जी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की स्थापना के माध्यम से प्रोत्साहित किया।
योग के प्रति उनकी निष्ठा और इसे विश्व स्तर पर अपनाने का उनका दृष्टिकोण मेरे प्रयासों से मेल खाता है। मैंने योग को मानवता की भलाई के लिए एक साधन के रूप में बढ़ावा दिया और मोदी जी ने इसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ले जाकर इसे और अधिक व्यापक बनाया।
योगमाता के रूप में मेरा उद्देश्य प्राचीन भारतीय ज्ञान को आधुनिक समय में लागू करना है। नरेंद्र मोदी जी के प्रयासों ने इसे बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया है। उनके साथ मेरी मुलाकातों और संवाद ने मेरे कार्यों को और प्रेरणा दी है। नरेंद्र मोदी जी जैसे नेतृत्वकर्ताओं के साथ संपर्क ने मेरे कार्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद की है। उनके प्रयासों से प्रेरणा लेते हुए, मैं विश्व शांति और मानवता की सेवा में समर्पित रहूंगी।
प्रश्न : योग और शांति के क्षेत्र में आपकी योजनाएं क्या हैं?
उत्तर : मेरी योजना योग और ध्यान के माध्यम से शांति और मानवता को बढ़ावा देना जारी रखने की है। मेरी दृष्टि योग को केवल एक व्यक्तिगत साधना से परे ले जाकर इसे वैश्विक कल्याण का माध्यम बनाना है। नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में योग को जो पहचान मिली है, उसे और व्यापक बनाना मेरा उद्देश्य है।
मैं आने वाले वर्षों में योग सत्रों, कार्यशालाओं और संवादों के माध्यम से विश्व भर के लोगों को इस प्राचीन ज्ञान से जोड़ने का प्रयास करूंगी। मेरी शिक्षा और प्रयास यह दिखाते हैं कि योग सिर्फ शरीर और मन का संतुलन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मार्ग है जो विश्व को शांति, प्रेम और सह-अस्तित्व के मार्ग पर ले जा सकता है।
प्रश्न : भारत की भूमि को आप कैसे देखती हैं?
उत्तर: भारत की भूमि दिव्य और अद्वितीय है। यहां का हिमालय सत्य और शांति का प्रतीक है। इस देश की मिट्टी में वह ऊर्जा है, जो किसी भी साधक को उसकी साधना में सफलता दिला सकती है। हालांकि, भारत के लोग इस बात को कम समझते हैं। हिमालय पर सत्य और मोक्ष की खोज की जा सकती है। यह एक ऐसी भूमि है, जो पूरे विश्व में अद्वितीय है।
प्रश्न : आपकी साधना और योग का उद्देश्य क्या है?
उत्तर : साधना और योग का मेरा उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और सत्य की प्राप्ति है। मेरा मानना है कि योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि आत्मा, मन और शरीर के बीच संतुलन बनाने की कला है। भारत ने इस ज्ञान को दुनिया को दिया है और अब इसका विस्तार करना हमारा कर्तव्य है।
प्रश्न : आप महाकुंभ को किस रूप में देखती हैं ?
उत्तर : महाकुंभ एक दिव्य आध्यात्मिक उत्सव है, जो मानव जाति की आस्था और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह एक ऐसा पर्व है, जहां केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोग आत्मज्ञान और सत्य की खोज के लिए आते हैं। महाकुंभ का विशेष महत्व इसलिए है क्योंकि यह एक ऐसी परंपरा है, जो अनादि काल से चली आ रही है।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि और ज्ञान प्राप्ति का अवसर भी है। गंगा का स्नान, साधु-संतों का संगम, और इस पवित्र भूमि पर ध्यान और साधना करने का अनुभव अद्वितीय है। गंगा की पवित्रता और दिव्यता हर किसी को आनंदित करती है।
प्रश्न : महाकुंभ की अनोखी विशेषता क्या है ?
उत्तर : महाकुंभ की सबसे अनोखी विशेषता यह है कि यह पूरे विश्व को एक छोटे से भूखंड में एकत्र कर देता है। ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति सभी को यहां खींच लाती है। लोग यहां व्यापार या लाभ के लिए नहीं, बल्कि आत्मज्ञान, साधना और सत्य को जानने के लिए आते हैं। यह आयोजन केवल भौतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी महान है। यहां साधु-संतों के दर्शन, उनके प्रवचन और साधना का मार्गदर्शन मिलना अपने आप में दुर्लभ अनुभव है।
प्रश्न : क्या आप मानती हैं कि सनातन धर्म का वैज्ञानिक आधार है ?
उत्तर : बिल्कुल, सनातन धर्म का आधार वैज्ञानिक है। इसके सभी कर्मकांड, परंपराएं और रीति-रिवाज एक गहन वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित हैं। उदाहरण के लिए, योग और ध्यान के माध्यम से मन और शरीर का संतुलन स्थापित करना, आयुर्वेद की विधियां और वेदों में वर्णित खगोलशास्त्र – ये सब सनातन धर्म की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करते हैं। सनातन धर्म में हर कर्म का उद्देश्य आत्मा और प्रकृति के बीच संतुलन स्थापित करना है। यह धर्म हमें सिखाता है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके ही हम एक स्वस्थ और संतुलित जीवन जी सकते हैं।
प्रश्न : क्या महाकुंभ और सनातन धर्म का गहरा संबंध है ?
उत्तर : हां, महाकुंभ और सनातन धर्म का संबंध अत्यंत गहरा है। महाकुंभ सनातन धर्म की एक ऐसी परंपरा है, जो धर्म, ज्ञान और साधना का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है। यह आयोजन दर्शाता है कि सनातन धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मा की गहराइयों में उतरने का मार्ग भी है। महाकुंभ में हर साधक को अपनी साधना को और गहन करने का अवसर मिलता है। यहां सभी अपने-अपने मार्ग पर चलते हुए भी एक अदृश्य धागे से बंधे रहते हैं और वह धागा है सनातन धर्म का।
प्रश्न : भविष्य के लिए आपकी क्या योजना है ?
उत्तर: मेरी योजना है कि योग और भारतीय दर्शन को और अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए। मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक लोग सत्य और ईश्वर की अनुभूति कर सकें। मेरा लक्ष्य मानवता की सेवा के माध्यम से आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करना है।
प्रस्तुति : अपर्णा मिश्रा