
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटो।
नई दिल्ली [TV 47 न्यूजनेटवर्क] । देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्या कुछ बहुत बड़ा होने वाला है? क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के पैरों के नीचे से रेड कारपेट खींचने की जमीन तैयार की जा रही है? यह प्रश्न वायरस की तरह फिजा में तैर रहा है। आखिर इस चर्चा को हवा कहां से मिल रही है। क्या सच में सीएम योगी की कुर्सी खतरे में हैं। इसका गृहमंत्री अमित शाह से क्या कनेक्शन है। इन सब बातों की पड़ताल करती मुकेश पंडित की रिपोर्ट ….
देश की राजधानी दिल्ली से लेकर लखनऊ में दिनभर चर्चाओं का दौर जारी है। यह प्रश्न ना तो काल्पनिक हैं और ना ही मनगढ़ंत कहानी बताकर इन्हें सिरे से खारिज किया जा सकता है। इसकी पृष्ठभूमि भारतीय जनता पार्टी और सहयोगी दलों के नेताओं ने तैयार की है। इसे केंद्रीय गृह मंत्री और देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता अमित शाह एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बीच जारी शीत युद्ध के तौर पर देखा जा रहा है।
इन दोनों नेताओं के बीच कैसा छत्तीस का आंकडा है, यह बात अब सियासी हल्कों से छिपी नहीं है। मंगलवार को अचानक बुलावे पर उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे तो चल रही चर्चाओं को और बल मिल गया। आग में घी का काम पार्टी व सहयोगी दलों के नेताओं ने किया। सबसे पहले भाजपा के विधान परिषद सदस्य देवेंद्र प्रताप सिंह ने काफी कड़ा और लज्जित करने वाला बयान दिया कि सीएम दफ्तर के कुछ अफसर विधायकों को उनके पैर छूने पर विवश कर रहे है। इतना ही नहीं, विधायक ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर निरंकुश नौकरशाही पर लगाम कसने की नसीहत तक दी। विधायक का यह पत्र भी सार्वजनिक हो गया है। जाहिर है, मुख्यमंत्री को असहज करने की गरज से ही इस प्रकार का बयान दिया गया।
निषाद पार्टी नेता और योगी मंत्रिमंडल में कैबिनेट स्तर के संजय निषाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए कह चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में हार के लिए मुख्य रूप से नौकरशाही जिम्मेदार हैं। यानी उन्होंने इशारों-इशारों में जता दिया कि उत्तर प्रदेश में किस तरह अफसरशाही हावी है। हालांकि, योगी आदित्य नाथ ने बयानों के काट के लिए एक दर्जन से अधिक आईएएस और आईपीएस के तबादले करके मामले पर ठंडा पानी डालने की कोशिश की, परंतु बात इतनी ही आसान नहीं है।
योगी आदित्य नाथ को हटाने के लिए पूरी एक लाबी काम कर रही है। लंबे समय से मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब देख रहे केशव प्रसाद मौर्य काफी सक्रिय नजर आ रहे हैं। वे दिल्ली के लगातार चक्के काट रहे हैं। उन्होंने रविवार को जेपी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा कार्य समिति की बैठक में अपने संबोधन के दौरान कहा था कि पार्टी संगठन से बड़ा कोई नहीं है। उनका इशार किसकी ओर था, यह किसी से छिपा नहीं है।
मंत्री ओमप्रकाश राजभर अपने बयानों के लिए पहले से काफी बदनाम हैं। इस सब नेताओं में एक बात कामन है कि सभी को गृह मंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है। राजनीति के जानकारों का भी कहना है कि बिना किसी वरदहस्त के इन नेताओं का खुलकर बयान देना आसान नहीं है। लेकिन जहां तक योगी आदित्य नाथ का सवाल है, किसी के लिए भी उनके नीचे से कुर्सी छीनना हंसी-खेल नहीं होगा।
केंद्रीय नेतृत्व को मालूम है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी आदित्य नाथ बड़े जनाधार वाले नेता हैं। उनसे किसी भी तरह की छेड़छाड़ भाजपा को भारी पड़ सकती है। पार्टी के अलावा उनका भी एक मजबूत राजनीतिक बेस है। जो उन्होंने अपनी राजनीतिक शैली से खड़ा किया है, पर आने वाले दस विधानसभा सीटों के उपचुनाव योगी की अग्निपरीक्षा से कम नहीं होंगे। यदि परिणाम भाजपा के अनुकूल नहीं आते हैं तो इसका ठीकरा योगी के सिर पर ही फोड़ा जाएगा। उनकी पार्टी में हैसियत काफी कम हो जाएगी।
(लेखक TV 47 news.com के दिल्ली एनसीआर में के संपादक है।)