
उपचुनाव परिणाम के बाद प्रश्नचित कार्यकर्ता। फाइल फोटो।
नई दिल्ली, मुकेश पंडित। Bypoll Results 2024: उपचुनाव के नतीजों के क्या हैं संकेत ? क्या PM Modi की लोकप्रियता में आई है कमी ?पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, बिहार व तमिलनाडु में हुए 13 विधानसभा सीटों के उपचुनावों में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि इंडिया गठबंधन को दस और एक निर्दलीय उम्मीदवार को विजयश्री मिली है। ऐसे में सवाल उठता है कि इन चुनाव नतीजों के निहितार्थ क्या हैं? चुनावी नतीजें भाजपा आलाकमान के लिए क्या संकेत दे रहे हैं। आखिर इस चुनाव में जनता जनार्दन ने क्या संदेश दिया। क्या जनता के निशाने पर दलबदलू नेताओं पर हैं। इन चुनाव परिणामों में जनता ने पंजाब, हिमाचल और उत्तराखंड में उन प्रत्याशियों को सबक सिखाया, जिन्होंने दलबदल कर भाजपा का दामन थाम लिया था। नतीजे शायद इसी ओर संकेत कर रहे हैं। आइए, जानते हैं उपचुनाव में उम्मीदवार बने दलबदलूओं की जनता ने क्या गति की है।
हिमाचल प्रदेश…..
हिमाचल में तो तीन में से दो विधायक कांग्रेस के जीत जाने से मुख्यमंत्री सुक्खू की सरकार पर जो संकट मंडरा रहा था, वह जनता ने टाल दिया। याद रहे कि कांग्रेस के छह विधायकों ने सुक्खू के खिलाफ विद्रोह कर भाजपा का साथ दिया था, लेकिन अयोग्य करार दिये गये और अब जनता ने भी इन्हें दलबदल का करारा सबक सिखाया। धनबल की हार और जनबल की जीत, यही तो हमारा लोकतंत्र है। जिसे संविधान नहीं बचा पाया, उसे जनता ने बचा लिया पर सुक्खू को भी विधायकों का सम्मान करना सीखना होगा।
पंजाब ….
कहानी पंजाब की भी अलग नहीं। बेशक आप की भगवंत मान की सरकार को कोई खतरा नहीं था लेकिन भाजपा नेता शीतल वर्ष, 2022 में AAP के टिकट पर जीते लेकिन फिर भाजपा में शामिल हो गये। अब जनता ने आप के मोहिंद्र भगत को विधानसभा पहुंचा दिया। शीतल को दलबदल की सज़ा जनता ने सुना दी।
उत्तराखंड………
उत्तराखंड देवभूमि में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भाजपा को मायूस करने वाले हैं। दोनों सीट कांग्रेस की झोली में गए। इसमें प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनाथ में कांग्रेस की जीत मायने रखती है । खासतौर पर अयोध्या जैसे पवित्र संसदीय क्षेत्र से भाजपा के हार जाने के बाद, बद्रीनाथ से भाजपा का हारना हिंदुत्व के एजेंडे की हार के रूप में देखा जा रहा है। यह सीट पहले कांग्रेस के पास थी लेकिन इसके विधायक राजेंद्र भंडारी इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये थे। भाजपा ने उपचुनाव में फिर से भंडारी को टिकट दिया, लेकिन जनता ने दलबदलू को उसकी सही जगह दिखाने में ही भलाई समझी। राजेंद्र भंडारी के हाथ न माया लगी, न राम। राजनीतिक करियर भी खराब कर लिया।
हरियाणा….
कभी हरियाणा में इनेलो के सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने दलबदलुओं की मदद से चौ बंसीलाल की सरकार गिराई थी, और फिर जब विधानसभा चुनाव हुए तो उन्हीं दलबदलुओं को टिकट नहीं दिये। जनता ने इस चुनाव में यह संदेश दिया कि जो चौ बंसीलाल के नहीं हुए, वे मेरे कब तक रहेंगे ? हरियाणा में राव इंद्रजीत हैं, जो मुख्यमंत्री का सपना देखते देखते कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गये। उनका यह सपना भी अधूरा रहा। हालांकि वह केंद्र में छह बार राज्यमंत्री ही बनाए गए। उनके बाद में आने वाले केबिनेट मंत्री बना दिये गये। वे इंसाफ रथ बनाये बैठे हैं, लेकिन पहले खुद को इंसाफ नहीं दिला पाए।
इसी प्रकार चौ बीरेंद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने का सपना लेकर भाजपा में दस साल रहे, लेकिन मुख्यमंत्री पद नहीं मिला। आखिरकार कांग्रेस में ही लौट आये। किरण चौधरी हाल ही में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुई हैं और राज्यसभा टिकट के लिए भाजपा हाईकमान के चक्कर काट रही है। यह दलबदल राजनीतिक चमक पर पानी फेर रहे हैं। इस दलबदुलओं पर एक दोहा शायद ज्यादा सटीक बैठता है – खीरा सिर ते काटि के, मलिये नमक लाये !! रहिमन कड़ुवे मुखन को, चाहिए यही सजाये !!