
पंचतत्व में विलीन बिहार की कोकिला
लखनऊ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। बिहार की लोकगायिका शारदा सिन्हा, जिन्हें “बिहार की कोकिला” के रूप में जाना जाता था, आज गुलबी घाट पर पंचतत्व में विलीन हो गईं। उनके निधन की खबर ने बिहार और पूरे देश को शोक में डुबो दिया। पटना के राजेंद्र नगर स्थित उनके आवास पर अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। इस मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प-चक्र अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार गुलबी घाट पर राजकीय सम्मान के साथ किया गया। उनकी अंतिम यात्रा में उनके बेटे अंशुमान सिन्हा ने कांधा दिया और भाजपा के पूर्व सांसद रामकृपाल यादव तथा विधायक संजीव चौरसिया ने भी कांधा देकर श्रद्धांजलि अर्पित की। अंतिम संस्कार के दौरान उनका अंतिम छठ गीत बजाया गया, जो इस विदाई को और भी भावुक बना गया।
पति की मृत्यु के बाद टूटा मनोबल
शारदा सिन्हा के जीवन में दुखद मोड़ तब आया जब 22 सितंबर को उनके पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन हो गया। उनके बेटे अंशुमान सिन्हा के अनुसार, पति की मृत्यु के बाद से ही शारदा जी का मनोबल टूट गया था। उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताई थी कि उन्हें भी गुलबी घाट पर ही अंतिम विदाई दी जाए। इस कारण उनके बेटे ने उनकी अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए उसी घाट पर दाह संस्कार किया।
लोकसंगीत के प्रति शारदा सिन्हा का योगदान
शारदा सिन्हा ने अपने जीवन में बिहार के लोकसंगीत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। उनके छठ गीत, विवाह गीत, और अन्य लोक गीत बिहार के लोक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। उन्होंने न केवल बिहार की लोक संस्कृति को सहेजने का काम किया, बल्कि उसे देश-विदेश में प्रसिद्धि भी दिलाई। उनके गीतों में बिहार की मिट्टी की खुशबू और लोक परंपराओं की गहरी झलक मिलती है।
विदाई में बिहार की लोक संस्कृति की झलक
उनके अंतिम संस्कार में उनकी आवाज में गाए गए छठ गीत को बजाया गया, जिससे इस विदाई में बिहार की लोक संस्कृति की गहरी झलक देखने को मिली। यह उनकी सांस्कृतिक धरोहर और लोकगायन के प्रति उनके समर्पण को प्रदर्शित करता है। उनके निधन से बिहार ने एक अनमोल धरोहर को खो दिया है।