
फाइल फोटो।
लखनऊ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बहराइच जिले में जारी ध्वस्तीकरण नोटिस से जुड़े मामले में यूपी सरकार को जवाब दाखिल न करने पर कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने राज्य के अधिकारियों द्वारा दिए गए निर्देशों को अनदेखा करने पर नाराजगी व्यक्त की और मामले की अगली सुनवाई 4 नवंबर तक स्थगित कर दी।
मामला क्या है?
बहराइच जिले में कुंडसार-महसी-नानपारा-महाराजगंज रोड पर कथित अवैध निर्माणों को हटाने के लिए नोटिस जारी किया गया था। इस संबंध में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने 23 संपत्तियों को नोटिस दिया, जिनमें से 20 मुसलमानों की थीं। यह नोटिस उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्देशों के विपरीत ध्वस्तीकरण कार्रवाई को रोकने से संबंधित था, जिसमें कुछ मामलों को छोड़कर बुलडोजर कार्रवाई पर प्रतिबंध लगाया गया है।
अदालत की सख्त टिप्पणी
अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि राज्य के अधिकारी संबंधित सड़क पर लागू नियमों और श्रेणी के बारे में विस्तृत जवाब दें। लेकिन, राज्य सरकार ने इन निर्देशों का पालन नहीं किया और केवल जनहित याचिका की पोषणीयता (सुनवाई योग्य) पर आपत्ति दर्ज की।
न्यायमूर्ति एआर मसूदी और सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने इस देरी पर नाराजगी जताई और राज्य सरकार से पूछा कि क्या उन्होंने पिछले आदेश की भावना को सही ढंग से समझा है।
अवधि बढ़ाई गई
अदालत ने प्रभावित लोगों को पीडब्ल्यूडी द्वारा दिए गए तीन दिन के नोटिस की अवधि को बढ़ाकर 15 दिन कर दिया है, जिससे ध्वस्तीकरण की कार्रवाई फिलहाल स्थगित हो गई है।
राज्य के वकील की दलील
राज्य सरकार के वकील ने जनहित याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति जताई, जिसके बाद अदालत ने राज्य के अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए कि वे मामले से जुड़े सभी पहलुओं पर विचार करें। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि कुंडसार-महसी रोड पर बने घरों की सटीक संख्या क्या है और कौन से नियम लागू होते हैं।
सांप्रदायिक तनाव और ध्वस्तीकरण अभियान
यह मामला तब और विवादित हो गया जब बहराइच जिले के एक गांव में जुलूस के दौरान सांप्रदायिक टकराव हुआ, जिसमें राम गोपाल मिश्रा नामक युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी। पीडब्ल्यूडी ने मिश्रा की हत्या के आरोपी अब्दुल हमीद सहित कई घरों की माप ली थी, जो इस घटना से जुड़े थे।
यह भी पढ़ें : Update : बहराइच हिंसा में बैकफुट पर पुलिस, आगजनी और दंगे की साजिश कबूलने पर दो गिरफ्तार