
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
अलीगढ़ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे पर उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला, और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के साथ बहुमत का फैसला सुनाया। इसमें न्यायालय ने 4:3 के बहुमत से सुझाव दिया कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनः विचार के लिए एक नई पीठ गठित की जानी चाहिए, ताकि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर निर्णय लिया जा सके।
असहमति वाले फैसले और बहुमत की राय
इस निर्णय में चार अलग-अलग मत सामने आए। बहुमत के पक्ष में प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि नए मानदंड निर्धारित किए गए हैं, जिन्हें नई पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति में अपने अलग-अलग फैसले सुनाए।
1967 का अज़ीज़ बाशा मामला और एएमयू का केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा
1967 में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एस अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले में यह फैसला दिया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित किया गया है। हालांकि, 1981 में संसद ने एक संशोधन अधिनियम पारित कर इस निर्णय को उलटते हुए एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बहाल कर दिया था।
2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का निर्णय
जनवरी 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संसद द्वारा 1981 में पारित कानून के उस प्रावधान को रद्द कर दिया था, जिसमें एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया गया था। उच्चतम न्यायालय का हालिया निर्णय अब इस मामले पर एक नया दृष्टिकोण लाने के लिए तैयार है और एक नई पीठ के गठन का प्रस्ताव दिया गया है, जिससे इसे फिर से परखा जा सके।
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