
प्रयागराज महाकुंभ 2025 अखाड़ों की स्थापना और महत्व
प्रयागराज महाकुंभ 2025 के शंखनाद के पूर्व एक बार अखाड़ों की हलचल फिर शुरू हो गई है। महाकुंभ में ये अखाड़े सुर्खियों में हैं। महाकुंभ में शासन और प्रशासन के साथ यहां के आबोहवा में हर जगह अखाड़ों की ही गूंज है। ऐसे में सवाल उठता है कि सनातन धर्म में अखाड़ों का क्या रोल है। नई पीढ़ी के मन में इनके इतिहास और भूमिका को लेकर कई सवाल एक साथ कौंध रहे हैं। टीवी 47 न्यूज नेटवर्क ने इस दिशा में एक नई पहल शुरू की है। हम अपने पाठकों के लिए इस पर एक पूरी एक सीरीज पेश कर रहे हैं। इससे अखाड़ों से जुड़ी हर बात को आपके सामने रखने की कोशिश की जाएगी। इस कड़ी में आखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के साथ महामंडलेश्वरों के साक्षात्कार भी होंगे। पेश है इसका प्रथम भाग –
प्रयागराज [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। सनातन धर्म, जिसे अक्सर हिंदू धर्म के रूप में जाना जाता है। यह दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। इसकी जड़ें हजारों वर्षों पुरानी हैं। यह भारत की संस्कृति, परंपरा और जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा है। यह धर्म न केवल आध्यात्मिकता पर आधारित है, बल्कि इसमें समाज और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने का भी संदेश है। आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में इस धर्म को विस्तार देने और उसकी रक्षा करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
चार मठों की स्थापना: आध्यात्मिकता का संवर्धन
आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म के संरक्षण और प्रचार के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों में चार प्रमुख मठों की स्थापना की। ये मठ थे:
- बद्रीनाथ (उत्तर में)
- रामेश्वरम (दक्षिण में)
- जगन्नाथ पुरी (पूर्व में)
- द्वारका (पश्चिम में)
ये मठ केवल धार्मिक केंद्र नहीं थे, बल्कि उन्होंने समाज में आध्यात्मिक चेतना को जगाने और धार्मिक शिक्षाओं को फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आदि गुरु शंकराचार्य ने इन मठों के माध्यम से वेदों, उपनिषदों और अन्य धार्मिक ग्रंथों के ज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाया और उन्हें धर्म के मूल तत्वों से अवगत कराया।
विदेशी आक्रमणों का सामना
8वीं शताब्दी के आस-पास भारत पर विदेशी आक्रमणों की शुरुआत हुई। इस समय सनातन धर्म को बाहरी आक्रमणों से बचाने के लिए एक नई दृष्टि की आवश्यकता महसूस हुई। आदि गुरु शंकराचार्य ने देखा कि धर्म को केवल आध्यात्मिक ज्ञान से ही नहीं, बल्कि शारीरिक शक्ति से भी संरक्षित किया जा सकता है। इसी सोच के तहत उन्होंने अखाड़ों का गठन किया।
अखाड़े, जिनका प्रारंभ सनातन धर्म के अनुयायियों ने किया, एक प्रकार के प्रशिक्षण केंद्र थे। यहां साधु और संत न केवल धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते थे, बल्कि शारीरिक शक्ति और युद्ध कौशल का भी प्रशिक्षण लिया करते थे। ये अखाड़े सैनिकों और साधुओं के बीच का अंतर पैदा करते थे और धर्म की रक्षा के लिए उनके मनोबल को ऊंचा बनाए रखते थे।
अखाड़ों का महत्व और आदि गुरु शंकराचार्य का योगदान
आदि गुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों के गठन के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि धर्म को केवल वाणी से नहीं, बल्कि कार्य से भी संरक्षित किया जाए। इन अखाड़ों के साधु और संत शस्त्रों में निपुण थे और उन्होंने समय आने पर अपने ज्ञान और शक्ति से भारत की धार्मिक पहचान की रक्षा की।
अखाड़े का अर्थ और उनकी परंपरा
अखाड़े शब्द का सामान्य अर्थ है एक ऐसी जगह जहां पहलवानी या कुश्ती का अभ्यास होता है। आमतौर पर इसे एक स्थान के रूप में देखा जाता है, जहां पहलवान अपनी शारीरिक शक्ति और कौशल का प्रदर्शन करते हैं और बदन पर मिट्टी लपेटकर अपनी ताकत के दांव-पेच आजमाते हैं। लेकिन जब बात धर्म और धार्मिक परंपराओं की होती है, तो अखाड़ों का अर्थ और महत्व कुछ अलग ही हो जाता है।
आदि गुरु शंकराचार्य और अखाड़ों का जन्म
आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में सनातन धर्म के संरक्षण और प्रचार के लिए चार प्रमुख मठों की स्थापना की। उन्होंने देखा कि जब विदेशी आक्रमणों ने भारत में प्रवेश किया तो धर्म की रक्षा के लिए केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से काम नहीं चल सकता। इस समय, शारीरिक शक्ति और युद्ध कौशल का महत्व बढ़ गया।
आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी शिक्षाओं में कहा कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर शक्ति का उपयोग किया जाना चाहिए। यह शक्ति ऐसे साधुओं से आएगी, जिन्हें शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का भी ज्ञान हो। इस सोच ने अखाड़ों के गठन की दिशा दी, जहां साधु और संत न केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते थे, बल्कि शस्त्र विद्या में भी कुशल होते थे।
1565 में अखाड़ों का विकास
1565 में, संत मधुसूदन सरस्वती ने एक नई पहल की, जिसमें अखाड़ों को और अधिक शक्तिशाली बनाया गया। उनके प्रयासों से, अखाड़ों में ऐसे लोग तैयार किए गए जो न केवल धार्मिक शिक्षा से परिपूर्ण थे, बल्कि हथियारों से भी लैस थे। ये साधु और संत अब मठों और मंदिरों की रक्षा के लिए तैयार रहते थे और जरूरत पड़ने पर अन्य से लड़ने-भिड़ने में सक्षम होते थे।
इस दौर में, अखाड़ों ने एक नई भूमिका निभानी शुरू की। ये केवल धार्मिक स्थान नहीं रहे, बल्कि सैन्य प्रशिक्षण के केंद्र भी बन गए, जहां साधु अपनी शारीरिक क्षमता और आत्मरक्षा के कौशल को विकसित करते थे।
अखाड़ों की धर्म से जोड़ी गई शक्ति
अखाड़ों का उद्देश्य अब केवल पहलवानी तक सीमित नहीं था। यहां पर धर्म के दांव-पेच के साथ-साथ शस्त्र की विद्या भी सिखाई जाने लगी। ये साधु और संत धर्म के संरक्षण के लिए अपने प्रशिक्षण में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की तैयारियों से गुजरते थे। यह विचारधारा भी आदि गुरु शंकराचार्य की दूरदृष्टि का हिस्सा थी, जिसने उन्हें समझाया कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक है कि साधु न केवल आध्यात्मिक बल्कि शारीरिक रूप से भी मजबूत हों।