
अडानी और राहुल गांधी
प्रयागराज [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। अडानी मामले में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भले ही पिछले कई वर्षों से केंद्र की मोदी सरकार को लगातार निशाना बना रहे हों, लेकिन वास्तविक तथ्यों पर नजर डालें तो वह अपने ही चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं। 2014 से पहले गौतम अडानी का कारोबार कई कांग्रेस शासित राज्यों में भी मौजूदा दौर की तरह ही गतिमान था। इन राज्यों में कई मौजूदा कांग्रेसी नेताओं के साथ उनके अच्छे व्यावसायिक संबंध थे। जिससे अडानी को व्यापार करने में सहूलियतें मिलती रहीं।
1990 के दशक में जब राजीव गांधी केंद्र सरकार में थे, अडानी समूह ने अपने कारोबार की शुरुआत की थी और कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी को सरकार से हर संभव सहयोग मिला। इन संबंधों ने अडानी के व्यापारिक साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खासकर उन कांग्रेस शासित राज्यों ने अडानी के कारोबार को समर्थन दिया, जहां कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। तमाम सुविधाएं जैसे भूमि आवंटन, करों में छूट और अन्य विशेष लाभ उनके कारोबार के लिए फायदेमंद साबित हुए।
आज जब राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गौतम अडानी के रिश्तों पर सवाल उठा रहे हैं, तो उनके इस आक्षेप के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी अपने ही चक्रव्यूह में फंस गए हैं। दरअसल, कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी के कारोबार को जो समर्थन और सहयोग मिला, उसे नजरअंदाज करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। यह स्थिति राहुल गांधी के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे अडानी और मोदी सरकार के रिश्तों पर सवाल उठाने के बावजूद, कांग्रेस अडानी के व्यापारिक विस्तार से पल्ला नहीं झाड़ सकती है।
इस प्रकार अडानी और कांग्रेस के रिश्तों को लेकर यह राजनीतिक संदर्भ राहुल गांधी के लिए उलझन और आलोचना का कारण बन सकता है,जो उनकी पार्टी के लिए मुश्किलें उत्पन्न कर सकता है। खासकर जब वे केंद्र सरकार और अडानी के रिश्तों पर प्रश्न उठा रहे हैं।
कांग्रेस शासित राज्यों में अडानी समूह की पैठ
गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे राज्य वो थे जहां कांग्रेस की सरकारें थीं और इन राज्यों में अडानी ने अपने व्यापार को विस्तार देने के लिए विभिन्न सरकारी लाभ उठाए। इन राज्यों में अडानी समूह ने कोल माइनिंग, बंदरगाह निर्माण, ऊर्जा उत्पादन और अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया। इतना ही नहीं, 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद भी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड जैसे राज्यों में जहां भी कांग्रेस की सरकार रही, वहां भी अडानी समूह का कारोबार वैसे ही चलता रहा, जैसे कि भाजपा शासित राज्यों में रहा।
1- 1993 में गुजरात के सीएम चिमनभाई पटेल और अडानी के मधुर संबंध
1993 में गुजरात के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने अडानी समूह के लिए मुंद्रा पोर्ट परियोजना के लिए एक बेहद सस्ता भूमि आवंटन किया था, जो अडानी के व्यापार के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। इस समय अडानी समूह को मात्र 10 पैसे प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि दी गई थी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ही सस्ती कीमत थी। इस भूमि का आवंटन अडानी समूह के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था और इसने उनकी व्यापारिक सफलता को मजबूत किया।
मुंद्रा पोर्ट अडानी समूह का एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र बन चुका है। यह भारत के सबसे बड़े और प्रमुख बंदरगाहों में से एक है। इस भूमि आवंटन ने अडानी के व्यवसाय को एक नई दिशा और गति प्रदान की। इससे उन्होंने अपनी व्यापारिक गतिविधियों का विस्तार किया। इस सौदे को लेकर कई राजनीतिक और व्यावसायिक समीक्षाएं होती रही हैं, क्योंकि यह सौदा तत्कालीन मुख्यमंत्री और अडानी समूह के बीच के मधुर संबंधों की ओर इशारा करता है। यह घटना अडानी समूह के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने उन्हें भारतीय उद्योग जगत में एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया।
2- सुर्खियों में रहे दिग्विजय सिंह और अडानी के रिश्ते
दिग्विजय सिंह और अडानी के रिश्ते 1993 से 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए सुर्खियों में रहे। इस दौरान दिग्विजय सिंह के शासनकाल में राज्य में कई औद्योगिक परियोजनाओं की शुरुआत हुई और अडानी समूह को खनन और ऊर्जा क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अवसर मिले।
मध्य प्रदेश के खनिज क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अडानी ने राज्य सरकार से विभिन्न अनुमतियां प्राप्त कीं, जिससे उनकी व्यापारिक गतिविधियों का दायरा बढ़ा। यह निवेश अडानी के साम्राज्य के विस्तार में महत्वपूर्ण साबित हुआ और मध्य प्रदेश के ऊर्जा क्षेत्र में अडानी समूह का योगदान भी उल्लेखनीय रहा।
इस समय के दौरान अडानी और दिग्विजय सिंह के बीच अच्छे संबंधों के कारण इस समूह को राज्य में कई रणनीतिक लाभ प्राप्त हुए। इन संबंधों ने अडानी को राज्य सरकार से आवश्यक अनुमतियां और समर्थन प्राप्त करने में मदद की। इससे उनके व्यापारिक साम्राज्य को और मजबूत आधार मिला। इस तरह से दिग्विजय सिंह के शासनकाल में अडानी समूह का व्यापार और भी व्यापक हुआ, खासकर मध्य प्रदेश के ऊर्जा और खनन क्षेत्र में।
3- कांग्रेस के शंकरसिंह वाघेला और अडानी के रिश्ते
1996 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शंकरसिंह वाघेला ने राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा दिया। उनकी नीतियों के चलते अडानी समूह ने गुजरात में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में निवेश किया जैसे कि कोल माइनिंग, सौर ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचा। इन परियोजनाओं ने अडानी समूह को राज्य में अपनी उपस्थिति मजबूत करने में मदद की। वाघेला के शासनकाल में अडानी को राज्य सरकार से कई विशेष सहूलतें मिलीं, जिनमें भूमि आवंटन और करों में छूट शामिल थे।
1996 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शंकरसिंह वाघेला ने राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई नीतियां अपनाईं, जिनका प्रभाव अडानी समूह पर गहरा पड़ा। वाघेला के शासनकाल में अडानी समूह ने गुजरात में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में निवेश किया, जैसे कि कोल माइनिंग,सौर ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचा। इन परियोजनाओं ने अडानी समूह को राज्य में अपनी उपस्थिति मजबूत करने में महत्वपूर्ण मदद की।
वाघेला के नेतृत्व में अडानी को राज्य सरकार से कई विशेष सहूलतें मिलीं, जिनमें भूमि आवंटन और करों में छूट शामिल थीं। इन सहूलतों के कारण अडानी समूह को राज्य में अपने व्यापार का विस्तार करने में बड़ी मदद मिली, जिससे उन्होंने कई क्षेत्रों में अपने निवेश को बढ़ाया। विशेष रूप से सौर ऊर्जा और कोल माइनिंग जैसे क्षेत्रों में अडानी का योगदान महत्वपूर्ण रहा और इन निवेशों ने न केवल अडानी समूह को लाभ पहुंचाया, बल्कि राज्य के औद्योगिकीकरण को भी गति दी। वाघेला और अडानी के बीच यह सामंजस्यपूर्ण संबंध राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी रहे और अडानी समूह के लिए एक स्थिर और लाभकारी व्यापारिक वातावरण सुनिश्चित किया।
4- भूपेश बघेल भी अडानी समूह के मददगार
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार द्वारा अडानी समूह को खनन और ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में लाइसेंस दिए जाने की बात की गई है। इस कदम को राज्य के आर्थिक विकास के लिए फायदेमंद बताया गया, क्योंकि इससे अडानी समूह को छत्तीसगढ़ में निवेश का अवसर मिला और राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद मिली। हालांकि, इसके बाद से ही राहुल गांधी का दांव उन पर ही उलटा पड़ने लगा।
अडानी समूह के साथ जुड़ी राजनीतिक और व्यापारिक गतिविधियां केवल एक विशेष पार्टी या सरकार तक सीमित नहीं रही हैं, बल्कि विभिन्न सरकारों के बीच यह साझेदारी दशकों से जारी रही है। राहुल गांधी के आरोपों पर गौर करें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका आरोप मोदी सरकार पर केंद्रित है, लेकिन इन तथ्यों से यह साबित होता है कि अडानी समूह का व्यापारिक साम्राज्य भाजपा, कांग्रेस, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक जैसी विभिन्न सरकारों के संरक्षण में बढ़ा है।
भूपेश बघेल द्वारा दिए गए बयान के संदर्भ में, जहां उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में अडानी के साथ किए गए फैसले राज्य के विकास और अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी रहे, यह तथ्य राहुल गांधी के लिए एक कठिन स्थिति पैदा करता है। यदि वे इस फैसले को नकारते हैं, तो यह उनकी खुद की राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने जैसा होगा। और यदि वे इसका समर्थन करते हैं, तो इससे उनके राजनीतिक आरोपों में द्विध्रुवीयता आ सकती है, जो पहले ही आलोचनाओं का कारण बन सकती है।