
महिला ब्रह्मनिष्ठ संत संतोष पुरी
प्रयागराज [अपर्णा मिश्रा ]। संतोष पुरी एक ब्रह्मनिष्ठ महिला संत हैं, जिन्होंने अपनी जीवन यात्रा में कई अद्भुत अनुभवों को समेटा है। 1954 में, जब वह पहली बार महाकुंभ में अपने गुरु (ब्रह्मलीन हरिहरा नंद जी) के साथ प्रयागराज आईं थी। यह उनके जीवन का अहम मोड़ था। यह उनका पहला महाकुंभ था और इसके साथ जुड़ी यादें आज भी उनकी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा हैं।
संतोष पुरी की कहानियां उनके जीवन के महत्वपूर्ण व्यक्तियों से जुड़ी हैं, जिनमें भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री शामिल हैं। उनके साथ बिताए गए समय और अनुभव आज भी उनकी यादों में जीवित हैं। संतोष पुरी की बातें अक्सर दादी मां की कहानी-किस्सा जैसी लगती हैं, जो जीवन के गहरे अनुभवों और अद्भुत संस्मरणों से भरी होती हैं।
संतोष पुरी के बारे में यदि कहा जाए कि वह चलता फिरता एक विकिपीडिया हैं, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनके जीवन के हर पहलू में इतिहास, अनुभव और ज्ञान समाहित हैं। आज हम उनकी तपस्या और साधना से जुड़े पहलुओं पर बात करेंगे।
साधना और तपस्या का जीवन बहुत ही अनुशासित और संयमित
संतोष पुरी की साधना और तपस्या का जीवन बहुत ही अनुशासित और संयमित रहा है। उन्होंने जीवन के हर क्षण को आत्मकल्याण और आत्मज्ञान के लिए समर्पित किया। उनका कहना है कि कि साधना केवल शारीरिक तपस्या नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक उन्नति का मार्ग है। उन्होंने अपनी साधना के दौरान हर समय अपने अंतर्मन की गहराइयों में जाकर आत्मा के साथ संवाद स्थापित किया।
उनकी तपस्या ने उन्हें न केवल आंतरिक शांति दी, बल्कि बाहरी दुनिया के साथ उनके संबंधों को भी बेहतर बनाया। उन्होंने कहा कि साधना और तपस्या का असली अर्थ केवल बाहरी दुनिया से कटकर ध्यान में लगना नहीं, बल्कि अपने भीतर की शांति और संतुलन को प्राप्त करना है। संतोष पुरी का मानना है कि साधना और तपस्या के जरिए हम आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
उनकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल
जब संतोष पुरी नेहरू, राजेंद्र प्रसाद और लाल बहादुर शास्त्री के साथ अपनु अनुभवों को साझा करती हैं, तो एक सवाल मन में कौंध जाता है कि आखिर उनकी उम्र कितनी होगी। संतोष पुरी खुद भी अपनी उम्र का सही अंदाजा नहीं लगा पातीं।
वह बताती हैं कि आजादी के बाद जब वह अपने गुरु के साथ 1954 में प्रयागराज के पहले महाकुंभ में आई थीं, तब उनकी उम्र लगभग 10 से 15 वर्ष रही होगी। लेकिन उनकी सक्रियता और जीवनशैली से यह लगता है कि उम्र उनके लिए एक संख्या मात्र है। उनकी ऊर्जा, साधना और उनके अनुभवों का गहरा असर उनके व्यक्तित्व पर साफ दिखाई देता है।
उनके जीवन से यह लगता है कि उम्र सिर्फ एक भौतिक सीमा है, असली ताकत हमारे भीतर की आत्मिक शक्ति में है। संतोष पुरी का जीवन इस बात का प्रमाण है। उनके अनुभव, उनकी शिक्षा और उनके जीवंत किस्से हमें यह सिद्ध करते हैं कि असली उम्र हमारे मन, हमारी सोच और हमारी साधना में छिपी होती है।

छोटी सी उम्र में एक महान गुरु का सानिध्य
संतोष पुरी ने बताया कि जब वह सिर्फ तीन वर्ष की थीं, तब उनके माता-पिता ने उन्हें गुरु (ब्रह्मलीन हरिहरा नंद जी) के हवाले कर दिया था। इस छोटी सी उम्र में ही उनका जीवन एक महान गुरु के सानिध्य में बीतने लगा। संतोष पुरी अपनी बातों में गुरु का जिक्र बार-बार करती हैं, मानो उनका हर शब्द और हर विचार गुरु के आशीर्वाद से अभिभूत हो। उनके लिए गुरु सिर्फ एक शिक्षक नहीं, बल्कि माता-पिता और संपूर्ण संसार हैं।
गुरु की उपस्थिति उनके जीवन का आधार है। वह कहती हैं, “गुरु ही मेरे लिए सब कुछ हैं। उनके बिना मेरा जीवन अधूरा है।” उनकी वाणी में गुरु की महिमा बसी हुई है। संतोष पुरी का मानना है कि गुरु की कृपा से ही उन्होंने आत्मज्ञान और साधना के रास्ते पर कदम रखा।
तीन वर्ष की अवस्था में जो साधना प्रारंभ हुई, वह आज तक उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। संतोष पुरी ने गुरु महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि गुरु का सानिध्य छोटे मनुष्य को भी अद्वितीय मार्गदर्शन दे सकता है। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य अपने गुरु के प्रति समर्पित होता है, तो साधना का रास्ता सच्चे ज्ञान और शांति की ओर अग्रसर होता है।
संतोष पुरी ने भले ही औपचारिक शिक्षा न ली हो, लेकिन गीता और वेदों का गहरा आत्मिक बोध उन्हें प्राप्त है। उनका कहना है कि गीता और वेद उनके अंतर्मन का हिस्सा हैं। गुरु के सानिध्य में उन्होंने न केवल आंतरिक ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि कई गूढ़ और दिव्य ग्रंथों का अध्ययन भी किया। गुरु की निकटता ने बाल्यावस्था में ही उन्हें अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव दिए।
उनके प्रवचनों में गीता के संस्कृत श्लोक इस प्रकार से अभिव्यक्त होते हैं, जैसे वे उनकी जुबान का हिस्सा हों। संतोष पुरी गीता के श्लोकों को इस सहजता से प्रस्तुत करती हैं कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उनके शब्दों में एक अद्वितीय मधुरता है, जो सुनने वालों के दिलों में गहरी छाप छोड़ जाती है।
संतोष पुरी का कहना है कि जब जीवन और आत्मा गुरु के आशीर्वाद से पोषित होती है, तो ज्ञान की प्राप्ति किसी औपचारिक शिक्षा से परे होती है। उनका सरल और स्वाभाविक तरीका उनके आध्यात्मिक ज्ञान को और भी प्रभावशाली बना देता है। वह केवल उपदेश नहीं देतीं, बल्कि उनके प्रवचन जीवन के गहरे अर्थ को समझाने का एक माध्यम बन जाते हैं। संतोष पुरी की वाणी में एक दिव्यता और शांति है, जो श्रोताओं को आत्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित करती है।
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