
नेपाली बाबा उर्फ आत्मानंद दास स्वामी
प्रयागराज [ अपर्णा मिश्रा ]। आकर्षक श्यामल तन में एक झीनी सी धोती। नीचे एक पुराना लंगोट। बाबा का कुल यही पोशाक है। उनकी ये सादगी भारत में साधू पंरपरा की एक मिसाल पेश करती है। साधू-संतों के लिए यह जीवन एक तपस्या है और बाबा इस परंपरा को नए आयाम दे रहे हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन को साधना और सेवा में ही बिताया है। उनके चेहरे पर हमेशा एक मुस्कान और आत्मविश्वास की झलक रहती है, जो उनकी अंदरूनी शांति को दर्शाता है। उनका सानिध्य और निकटता मन को बेहद सुकून देने वाला है। ये बाबा अपनी सादगी को लेकर ही सुर्खियों में नहीं रहते, बल्कि उन्होंने राजनीति में ऐसी-ऐसी भविष्यवाणी की, जिसको लेकर विस्मय होना लाजमी है। इसके चलते वह अनायस ही मीडिया की सुखिर्यों में रहे हैं।
जी हां, हम बात कर रहे हैं नेपाली बाबा उर्फ आत्मानंद दास स्वामी की। एक सप्ताह पूर्व बाबा का प्रयागराज महाकुंभ में आगमन हो चुका है। उनका काफिला शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर झूंसी के बदरा गांव के बाहर अपने शिष्यों के साथ एक निर्जन वन में रुका हुआ हैं। इस निर्जन वन में उनकी व्यवस्था ग्रामीणों ने संभाल रखी है। इस बगिया में इस ठंड में जीवन बेहद जटिल है। जलआपूर्ति के लिए एक सरकारी हैंडपंप है। इस बगिया में विद्युत आपूर्ति नहीं है। बाबा एक वट वृक्ष के नीचे खुले आसमान में डेरा डाले हुए हैं। इतना कष्ट झेलते हुए भी वह यहां के शासन व प्रशासन से कोई शिकायत नहीं करते।
बाबा ने बताया कि एक दिन पहले ही मेला प्रशासन ने रहम कर तीन टेंट मुहैया कराया है। हालांकि, अभी तक इन टेंटों में साधू संतों को अंधेरे में ही रात गुजारनी होती है। फिलहाल, बाबा इस टेंट में नहीं रहते। उनके शिष्यों ने यहां डेरा जमाया हुआ है। बाबा अभी भी दिन-रात एक वट वृक्ष के नीचे अपना आसन जमाया हुआ है। बुधवार का दिन बाबा के लिए थोड़ा सुकून भरा रहा। मेला प्रशासन की नजर उनकी ओर पड़ी। उनको जगह आवंटन के लिए बुलाया गया था। प्रशासन के इस आश्वासन के बाद बाबा के चेहरे पर थोड़ी राहत देखी जा सकती है।
इस महाकुंभ में बाबा की चिंता अपने रहने की नहीं है। बातचीत में उन्होंने कहीं भी अपनी सुविधा की बात नहीं कही। उनका जोर इस बात पर था कि देश दुनिया से आने वाले हमारे भक्तों को कोई तकलीफ न हो यही हमारा प्रयास है। इस महाकुंभ में नेपाली बाबा का बड़े धार्मिक कार्यक्रम हैं। लाखों हवन कुंड और शिव लिंग का निर्माण होना है। बाबा की मान्यता है कि किसी भी पूजन के पूर्व भगवान शंकर की आराधना अनिवार्य है। ऐसे में संगम तट पर इस महाकुंभ का प्रारंभ शंकर की अराधना से ही होगा। बाबा ने अभी से इसकी तैयारी शुरू कर दी है।
शेष दूसरे भाग में …..