
बाल विवाह पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला।
प्रयागराज [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। प्रयागराज में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2004 में हुए एक बाल विवाह को अमान्य घोषित किया है। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने गौतमबुद्ध नगर की एक कुटुंब अदालत के फैसले को पलटते हुए इस मामले में अपीलकर्ता को न्याय दिलाने का आदेश दिया है।
बाल विवाह का मामला और अपील
2004 में 12 वर्षीय संजय चौधरी और नौ वर्षीय एक लड़की का विवाह संपन्न हुआ था। विवाह के वर्षों बाद संजय चौधरी ने गौतमबुद्ध नगर की कुटुंब अदालत में अपील की थी कि यह विवाह अमान्य घोषित किया जाए। यह विवाह उस समय कानून के खिलाफ था। हालांकि, कुटुंब अदालत ने उनकी अपील को खारिज कर दिया। इस निर्णय के बाद संजय चौधरी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस मामले की पुनर्विचार अपील दायर की।
उच्च न्यायालय का फैसला
उच्च न्यायालय ने इस मामले में संजय चौधरी की अपील स्वीकार की और 47 पन्नों के अपने फैसले में कुटुंब अदालत के आदेश को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि संजय ने यह मुकदमा समयसीमा के भीतर दायर किया है। उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के आधार पर यह फैसला किया गया कि संजय के पास 23 वर्ष की आयु तक इस मुकदमे को दायर करने की समयसीमा थी और उन्होंने यह अपील उसी समयसीमा में की थी।
बाल विवाह को अमान्य घोषित और मुआवजा आदेश
अदालत ने इस मामले में दोनों पक्षों के विवाह को अमान्य घोषित कर दिया है और अपीलकर्ता, यानी संजय चौधरी को अपनी पूर्व पत्नी को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। अदालत के अनुसार यह राशि एक महीने के भीतर भुगतान करनी होगी।
बाल विवाह पर कड़ा संदेश
यह निर्णय न केवल न्यायिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण है, बल्कि बाल विवाह के खिलाफ एक सख्त संदेश भी देता है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले के माध्यम से बाल विवाह को अस्वीकार्य ठहराया और यह स्पष्ट किया कि ऐसे विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती।