
नई दिल्ली [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। भोजपुरी संगीत की जानी-मानी हस्ती और लोकगायिका शारदा सिन्हा का निधन संगीत प्रेमियों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शारदा सिन्हा का नाम छठ गीतों और अन्य पारंपरिक लोकगीतों के लिए एक अद्वितीय पहचान रखता था। उनके निधन से भोजपुरी संगीत जगत में गहरा शोक व्याप्त हो गया है। आइए जानते हैं शारदा सिन्हा के अनछुए पहलुओं के बारे में।
शारदा सिन्हा का संगीतिक सफर
शारदा सिन्हा ने अपने संगीतिक सफर की शुरुआत भोजपुरी लोकगीतों से की थी और जल्दी ही उनकी आवाज़ का जादू पूरे उत्तर भारत में छा गया। उनके गाए हुए छठ गीतों ने उन्हें एक लोकप्रिय लोकगायिका का दर्जा दिलाया, जो कि भोजपुरी समाज और बिहार-उत्तर प्रदेश के लोक संस्कृति में अनमोल योगदान है। “केलवा के पात पर उगले सुरुज देव” और “पवनी के दिन चार” जैसे गीत आज भी हर छठ पर्व पर गाए जाते हैं और लोगों के दिलों में बसते हैं।
लोकगीतों के प्रति समर्पण
शारदा सिन्हा का संपूर्ण जीवन लोकगीतों और भोजपुरी संस्कृति के प्रति समर्पित रहा। उनकी गायिकी ने न केवल छठ गीतों को पहचान दिलाई बल्कि भारत के अन्य हिस्सों में भी भोजपुरी संगीत को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी आवाज़ में एक ऐसा जादू था जो लोगों को लोकगीतों से जोड़ता था और अपने सांस्कृतिक विरासत को संजोने का संदेश देता था।
शारदा सिन्हा की लोकप्रियता और सम्मान
अपने जीवनकाल में शारदा सिन्हा ने अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए। उन्हें “पद्म श्री” और “पद्म भूषण” जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जो उनकी संगीत साधना और लोकगीतों के प्रति उनके योगदान का प्रतीक हैं। उनके गीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं थे, बल्कि उन्होंने समाज को एक सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का काम किया।
शारदा सिन्हा का निधन: संगीत जगत को क्षति
उनके निधन से संगीत प्रेमियों के बीच गहरी शोक की लहर है। वह केवल एक गायिका नहीं थीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक थीं जो लोक संस्कृति और संगीत को विश्व स्तर पर ले गईं। उनकी अनुपस्थिति संगीत जगत के लिए एक बड़ी क्षति है और उनकी आवाज़ हमेशा उनके प्रशंसकों के दिलों में गूंजती रहेगी।