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लखनऊ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। उत्तर प्रदेश में दीपोत्सव का उत्सव मिट्टी के दीयों की परंपरा को फिर से जीवंत कर रहा है, जिससे मिट्टी के कारीगरों के जीवन में एक नई उम्मीद जगी है। अयोध्या में राज्य सरकार द्वारा 2017 में दीपोत्सव की शुरुआत के बाद से मिट्टी के दीयों की मांग में लगातार वृद्धि हुई है। कुम्हारों का यह पारंपरिक पेशा अब न केवल पुराने शिल्प को जीवित रख रहा है, बल्कि युवा पीढ़ी के लिए भी यह रोजगार का नया अवसर बनता जा रहा है।
मिट्टी के दीयों की बढ़ती मांग से कुम्हारों की नई पीढ़ी का उत्साह
लखनऊ के युवा कुम्हार सचिन प्रजापति, जिन्होंने इंजीनियरिंग छोड़कर पारंपरिक मिट्टी के काम को अपनाया है, इस बदलाव का बड़ा उदाहरण हैं। सचिन अब अपनी वर्कशॉप में दीये और अन्य मिट्टी के उत्पाद बनाकर स्थानीय कुम्हारों के साथ काम कर रहे हैं। इसी तरह, बाराबंकी के राजेश कुमार प्रजापति भी अब अपने पूर्वजों के पेशे को आगे बढ़ा रहे हैं, जो 20 कुम्हारों को रोजगार देते हुए दीयों की बड़ी मात्रा में आपूर्ति करते हैं।
ऑनलाइन बिक्री और नया बाजार
गोरखपुर के कपिल प्रजापति और उनके सहयोगी सार्थक सिंह ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिये अपने दीयों की बिक्री बढ़ाई है। इनका उद्देश्य भविष्य में और भी अधिक मिट्टी के उत्पादों को बाजार में लाना है। साथ ही ये युवा कुम्हार प्रशिक्षण के माध्यम से मिट्टी के काम को प्रौद्योगिकी से जोड़ रहे हैं।
सरकारी सहायता से कुम्हारों को लाभ
उत्तर प्रदेश माटीकला बोर्ड की पहल ने स्थानीय कुम्हारों को बिजली-चालित चाक और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं, जिससे उत्पादन प्रक्रिया में सुधार आया है। देवेन्द्र सिंह जैसे कुम्हार अब अपने उत्पादों को बेहतर तरीके से बेच पा रहे हैं और अधिक स्थायित्व की ओर बढ़ रहे हैं।