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लखनऊ [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। उत्तर प्रदेश में एससी-एसटी आरक्षण के उपवर्गीकरण के मुद्दे पर राजनीतिक गर्माहट तेज हो रही है। हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के बाद अब यूपी में भी इस मुद्दे पर चर्चा जोर पकड़ रही है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस कदम का समर्थन करते हुए संकेत दिए हैं कि यूपी में भी जल्द ही इसे लागू किया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ, तो दलित वोट बैंक के लिए राजनीतिक दलों के बीच खींचतान बढ़ना तय है।
भाजपा की नई रणनीति, दलित वोट बैंक पर नजर
हरियाणा में भाजपा सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण लागू करने के बाद यूपी में भी इसकी संभावनाएं बढ़ गई हैं। इस कदम का उद्देश्य उन वंचित दलित समूहों को आरक्षण का लाभ देना है, जिन्हें अब तक उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।
अगर यूपी सरकार इस दिशा में कदम उठाती है, तो इससे भाजपा को दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में मदद मिल सकती है।डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि आरक्षण का लाभ उन वंचित समूहों तक पहुंचना जरूरी है, जो आज भी पिछड़े हैं। भाजपा की सरकारें समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
विपक्ष की क्या है बड़ी चिंता
एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण का विरोध लंबे समय से बसपा करती रही है। मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध करते हुए इसे दलितों के हितों पर आघात बताया। हालांकि, हरियाणा में भाजपा सरकार के इस कदम को दलितों का समर्थन मिला, जिसने यूपी के अन्य दलों की चिंता बढ़ा दी है।
इंडिया गठबंधन और सपा भी इस मुद्दे पर नजर बनाए हुए हैं। सपा के पीडीए फॉर्मूला में दलित वोट बैंक एक अहम हिस्सा है और इस उपवर्गीकरण से उनकी योजनाओं पर असर पड़ सकता है।
भाजपा की जीत और विपक्ष की रणनीति
1- हरियाणा चुनाव में मिली जीत से यह साफ हो गया है कि भाजपा ने इस मुद्दे को अपनी चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बनाया है। भाजपा की इस रणनीति ने दलित वोट बैंक में पैठ बनाने में मदद की है, जिसका असर यूपी में भी देखने को मिल सकता है।
2- वहीं, अन्य विपक्षी दल भी दलित वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए नए सिरे से रणनीति बना रहे हैं। बसपा, सपा और कांग्रेस इस मुद्दे पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
3- एससी-एसटी आरक्षण में उपवर्गीकरण का मुद्दा यूपी की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है। भाजपा की इस नई रणनीति से दलित वोट बैंक को साधने की कोशिशें तेज हो गई हैं, जिससे आगामी चुनावों में राजनीतिक दलों के बीच खींचतान और बढ़ेगी।
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