
न्याय की देवी में किया गया यह बदलाव
नई दिल्ली [ TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने भारतीय न्याय प्रणाली में एक अनोखी और प्रतीकात्मक पहल की है। सुप्रीम कोर्ट में स्थित न्याय की देवी की मूर्ति, जो अंधी आंखों और हाथ में तलवार के साथ न्याय का प्रतीक मानी जाती थी। अब एक नए स्वरूप में प्रस्तुत की गई है। इस मूर्ति से आंखों की पट्टी हटाई गई है और तलवार की जगह संविधान की किताब थमाई गई है। यह बदलाव भारतीय न्याय और संविधान की सर्वोच्चता का संदेश देता है।
न्याय की देवी में किया गया यह बदलाव क्यों महत्वपूर्ण है?
न्याय की देवी की मूर्ति में किया गया यह बदलाव न्याय की प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और संविधान की सर्वोच्चता का प्रतीक है। आंखों की पट्टी हटाना यह दर्शाता है कि न्याय अंधा नहीं है, बल्कि यह सब देखता है और संविधान के आधार पर निष्पक्ष निर्णय लेता है। वहीं, तलवार की जगह संविधान की किताब यह संदेश देती है कि संविधान ही न्याय का सबसे बड़ा और सशक्त हथियार है।
CJI का संदेश: संविधान ही सर्वोपरि
CJI डीवाई चंद्रचूड़ का यह कदम न्याय और संविधान की सर्वोच्चता पर जोर देता है। यह बदलाव इस बात का प्रतीक है कि भारतीय न्याय प्रणाली में कोई भी निर्णय संविधान की मर्यादाओं और उसमें दिए गए अधिकारों और कर्तव्यों के आधार पर ही लिया जाता है।
संविधान की किताब: न्याय का नया प्रतीक
तलवार की जगह न्याय की देवी के हाथ में संविधान की किताब थमाना इस बात का संदेश है कि संविधान ही न्याय का मार्गदर्शक है। तलवार न्याय की कठोरता का प्रतीक हो सकती है, लेकिन संविधान न्याय को संवेदनशील और निष्पक्ष बनाता है।
सुप्रीम कोर्ट का प्रतीकात्मक संदेश
इस अनोखी पहल से सुप्रीम कोर्ट ने देश के नागरिकों को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है। यह पहल न्यायपालिका और संविधान की शक्ति पर बल देती है और यह बताती है कि भारतीय न्याय प्रणाली में किसी भी तरह का फैसला संविधान की किताब के आधार पर ही लिया जाएगा।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ की यह अनोखी पहल भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह बदलाव न्याय की परिभाषा में नई दिशा देता है और संविधान की सर्वोच्चता को और भी मजबूत करता है।