
नई दिल्ली [TV 47 न्यूज नेटवर्क]। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले के प्राचीर से लगातार 11वीं बार राष्ट्रीय ध्वज फहराया। लाल किले की प्राचीर से उन्होंने राष्ट्र को संबोधित किया। आइए जानते हैं कि उनके इस संबोधन के क्या मायने हैं। प्रधानमंत्री पक्ष और विपक्ष के लोगों को क्या संदेश देना चाहते हैं? उनके भाषण के क्या निहितार्थ हैं?
समान नागरिक संहिता पर स्पष्ट संदेश
1- भारतीय जनता पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में भले ही पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर सकी, लेकिन इस भाषण में उन्होंने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी ने अपने कोर एजेंडे को नहीं छोड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी तीसरी सरकार के पहले स्वंत्रता दिवस समारोह में संकेत दिया है कि अब देश में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने का वक्त आ गया है। अपने संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह देश की मांग है। प्रधानमंत्री मोदी ने 78वें स्वंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से कहा कि संविधान निर्माताओं की आकांक्षाओं को पूरा करने का दायित्व सरकार पर है।
2- मोदी सरकार 3.0 देश में यूसीसी लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाने जा रही है। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने संविधान निर्माताओं, संविधान और सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं का हवाला देकर कहा कि देश को ऐसे भेदभावकारी कानूनों से मुक्ति लेनी ही होगी। उन्होंने मौजूदा सिविल कोड को सांप्रदायिक बताया। इसलिए मैं तो कहूंगा कि अब समय की मांग है कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड हो। हमने कम्यूनल सिविल कोड में 75 वर्ष बिताए हैं।
3- उन्होंने कहा कि देश ऐसे कानून को बर्दाश्त नहीं कर सकता है, जो धार्मिक आधार पर विभाजन का कारण बने। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने अपने कई आदेशों में देश में यूसीसी लागू करने का निर्देश दिया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं मानता हूं इस गंभीर विषय पर देश में व्यापक चर्चा हो। हर कोई अपने विचार लेकर आए।’
4- प्रधानमंत्री ने स्पष्ट इशारा किया कि जो कानून देश को धर्म के आधार पर बांटते हैं, जो ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं.. ऐसे कानूनों के आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता है। इसलिए मैं तो कहूंगा कि अब समय की मांग है कि देश में एक सेक्युलर सिविल कोड हो। हमने कम्यूनल सिविल कोड में 75 वर्ष बिताए हैं। अब हमें सेक्युलर सिविल कोड की तरफ जाना होगा। तब जाकर देश में धर्म के आधार पर जो भेदभाव हो रहे हैं, सामान्य नागरिक को जो दूरी महसूस होती है, उससे हमें मुक्ति मिलेगी।’
क्या कहता है संविधान
संविधान के नीति निर्देशक तत्व में यह साफ है कि देश में सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू हो। संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, ‘राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। संविधान के नीति निर्देशक तत्व देश की मौजूदा सरकार के समक्ष कुछ लक्ष्य निर्धारित करते हैं जिन्हें संविधान निर्माण के वक्त लागू नहीं किया जा सकता था, क्योंकि उस वक्त उसकी उचित परिस्थिति नहीं थी। हालांकि वह इतने महत्वपूर्ण विषय हैं कि संविधान निर्माताओं ने इसे छोड़ नहीं दिया बल्कि अगली पीढ़ी के लिए गाइडलाइंस के तौर पर संविधान के नीति निर्देशक तत्व के रूप में पेश कर दिया।
डॉ. आंबेडकर की क्या थी इच्छा
देश में वैयक्तिक कानून को मान्यता दी जाए या व्यापक कानून को शासन का आधार बनाया जाए, इस पर डॉ. आंबेडकर ने बहुत तार्किक दलीलें दीं। उन्होंने कहा, ‘यूरोप में ईसाई मत है, पर ईसाई मत का यह अर्थ नहीं है कि समस्त संसार के ईसाइयों के लिए या यूरोप के किसी भाग के ईसाइयों के लिए, जिसमें वे रहते हैं, उत्तराधिकार कानून की समान पद्धति हो। ऐसी कोई बात नहीं है। मैं स्वयं यह नहीं समझ पाता कि धर्म का इतना महान और वृहद् न्याय क्षेत्र क्यों रखा जाए कि वह समस्त जीवन पर छा जाए और उस क्षेत्र में विधानमंडल के हस्तक्षेप करने तक में बाधा डाले।’ डॉ. आंबेडकर के इस तर्क से साफ झलता है कि वो व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्षधर तो थे, लेकिन धर्म को इतना तवज्जो नहीं देना चाहते थे कि वह व्यक्ति के जीवन पर छा जाए।