
फाइल फोटो।
बागपत, TV 47 न्यूज नेटवर्क । नौ माह के बच्चे को उसके माता-पिता ने किशनपुर बराल स्थित बाबा महावीर गिरि मंदिर को दान कर दिया। इसके बाद बच्चे का नामकरण करने के लिए मंदिर में भंडारे का आयोजन किया गया। किशनपुर बराल स्थित रामताल में बाबा महावीर गिरि गोपाल गिरि मंदिर के महंत प्रयागराज गिरि ने बताया कि कंडेरा निवासी मीनाक्षी देवी ने मंदिर में आकर अपनी कोई मनोकामना की थी। अब उनकी मनोकामना पूर्ण हो गई। इस पर उन्होंने अपने नौ माह के पोते चेतन को धूना (स्थायी हवनकुंड) पर रखकर दान कर दिया।
महंत प्रयागराज गिरि ने बालक का नामकरण रामगोपाल गिरि किया। उन्होंने कहा कि अब इस बालक को बाबा रामगोपाल गिरि नाम से पुकारा जाएगा। यह बालक दो साल का होने तक मां का दूध पीएगा, तब तक वह अपने माता-पिता के पास ही रहेगा। दो साल पूर्ण होने पर वह मंदिर में आ जाएगा।
बच्चे का पिता मोनू कश्यप और मां आरती हैं। इनको इस बच्चे के अलावा एक नौ वर्षीय बेटी और एक दो साल का बेटा है। मोनू चालक हैं और किराए की गाड़ी चलाते हैं। बच्चे की दादी मीनाक्षी धार्मिक प्रवृत्ति की हैं और भजन-कीर्तन करती हैं। मीनाक्षी ने बताया कि उनकी एक मनोकामना पूर्ण हुई थी, इसलिए बच्चे को दान कर दिया है। मीनाक्षी के पति सत्यकुमार का निधन हो चुका है। वे भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे और मंदिर के प्रति उनकी आस्था थी।
महंत प्रयागराज गिरि का कहना है कि इस गद्दी से लोगों की आस्था जुड़ी है। गद्दी को कोई वारिस नहीं मिल रहा था। बालक के आने से वारिस मिल सकेगा। स्वजन ने अपनी इच्छा से बच्चे को दान किया है। रमाला थाना प्रभारी महेंद्रपाल सिंह का कहना है कि यह मामला उनके संज्ञान में नहीं है।
बाल संरक्षण आयोग ले सकता है संज्ञान
तीन साल पहले हरियाणा के हिसार क्षेत्र में समाधा मंदिर में एक माह के मासूम बच्चे को दान करने के मामले में राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लिया था। आयोग की चेयरपर्सन ज्योति बैंदा ने मंदिर में बच्चों से जुड़ा रिकार्ड तलब किया था। डडल पार्क निवासी फल व्यापारी ने अपने एक महीने के बच्चे को मंदिर में चढ़ाया था। जिस पर पुलिस ने दोनों पक्षों को को थाने में तलब किया। कार्रवाई की स्थिति देखते हुए परिवार ने बच्चे को वापस ले लिया था।
कानून के जानकारों का कहना था कि ऐसा करना जुवेनाइल जस्टिस एक्ट व चाइल्ड एक्ट के अलावा भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय है। अगर किसी माता-पिता को अपना बच्चा छोड़ना है तो उन्हें चाइल्ड वेल्फेयर कमेटी या जिला बाल संरक्षण यूनिट के समक्ष जाना होगा। माता-पिता की काउंसिलिंग होती है। परिवार को दो माह का समय दिया जाता है। इस अवधि में अगर मां-बाप का मन बदल जाता है तो वह बच्चा वापस ले सकते हैं।