
नजूल बिल पर हंगामा।
लखनऊ TV 47 न्यूज नेटवर्क। नजूल भूमि पर उत्तर प्रदेश सरकार का बिल सुर्खियों है। इस बिल को लेकर सरकार के अंदर ही दो गुट हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस बिल को लेकर इतना सियासी घमासान क्यों मचा है। क्या इस बिल को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अलग-थलग पड़ गए हैं। आइए जानते हैं कि नजूल बिल क्या है। क्या भाजपा के अंदर ही इसका विरोध हो रहा है। इस विरोध के क्या राजनीतिक मायने हैं।
बता दें कि इस बिल को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने विधानसभा में पेश किया था। हालांकि, इससे पहले मुख्यमंत्री और दोनों उपमुख्यमंत्रियों के मध्य बैठक में बिल को लेकर तमाम पहलुओं पर चर्चा हुई थी। विधानसभा में भाजपा के विधायक हर्ष वाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह ने अपनी आपत्ति जाहिर की थी। इसके अलावा सरकार के सहयोगी दलों ने खासकर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी विरोध किया था।
क्या है बिल का स्टेट्स
यूपी में नजूल बिल विधानसभा में पास हो गया। हालांकि, विधानपरिषद में पेश करने के बाद इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया है। लेकिन इस बिल को लेकर सरकार और भाजपा के अंदर ही दो फाड़ हो गई है। सरकार के भीतर ही इस बिल को लेकर अंदरूनी कलह सदन के भीतर देखने को मिल रहा है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विधान परिषद में खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने समिति को भेजने का प्रस्ताव दिया जिसे सभापति ने मान लिया। सरकार को उस समय दिक्कत का सामना करना पड़ा जब इस बिल का विरोध खुद उनके ही लोग करने लगे। उधर कांग्रेस ने धमकी दी थी कि इस बिल के खिलाफ पार्टी सड़क पर उतरेगी।
क्या है नजूल बिल
खास बात यह है कि इस बिल के लागू होने से नजूल की भूमि फ्री होल्ड नहीं की जा सकती है। प्रयागराज से भाजपा विधायक हर्ष वाजपेयी का कहना है कि सरकार एक या दो लोगों से जमीन ले ले तो फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन जो लोग ब्रिटिश काल से इन जमीनों पर रह रहे हैं। उनका क्या होगा, कई लोग 100 साल से रह रहे हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री आवास दे रहे हैं, दूसरी ओर हम लोगों से जमीन ले रहे हैं ये न्यायसंगत नहीं है। भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि सुझाव पर सरकार को तवज्जो देनी चाहिए और लीज को फिर से नवीनीकरण का मौका देना चाहिए।
क्या होगा प्रभाव
1- सरकार के बिल के मुताबिक नजूल की जमीन पर मालिकाना हक के लिए कोर्ट में लंबित सभी मामले स्वत: खारिज हो जाएंगे। इस बिल के जरिए सरकार नजूल की जमीन को रेगुलेट करना चाहती है। यह सरकार के अधीन है लेकिन सीधे सरकार के प्रबंधन में नहीं है।
2- बिल के जरिए सरकार इसके ट्रांसफर को रोकना चाहती है। इस बिल में सरकार के पास अधिकार है कि जिसका किराया सही समय पर जमा हो रहा है उसके लीज को बढ़ा सकती है, जिससे सरकार के पास इसका नियंत्रण बना रहेगा। लीज की जमीन का रेंट जमा किया जा रहा है, शर्ते भी मानी जा रही हैं तो भी लीज खत्म होने पर सरकार जमीन वापस ले सकती है।
3- नजूल की जमीन का मालिकाना हक किसी को नहीं दिया जाएगा बल्कि सिर्फ सार्वजनिक इस्तेमाल किया जाएगा। पहले सरकार नजूल की जमीन को 99 साल के लिए लीज पर देती थी।
नजूल की भूमि क्या है
दरअसल, आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत किसी की भी जमीन जब्त कर लेती थी, जिसमें राजा से लेकर छोटे आदमी तक हो सकते थे। लेकिन आजादी के बाद जो लोग इसके मालिकाना हक के कागज नहीं दिखा पाए वो जमीन सरकार की हो गई। अभी तक नजूल की जमीन सिर्फ ट्रांसफर हो सकती है, लेकिन उसका मालिकाना हक नहीं मिल सकता था। उत्तर प्रदेश में लगभग 25 हजार हेक्टेयर भूमि नजूल की है। इसको आमतौर पर लीज पर दिया जाता है। ये किसी व्यक्ति को या संस्था को दिया जाता है। इन जमीनों पर लोग वर्षों से रह रहे हैं। ये लोग इस उम्मीद में हैं कि एक दिन ये फ्री होल्ड हो जाएगी लेकिन बिल के अमल में आ जाने से ऐसा नहीं हो सकता। अभी तक नजूल की भूमि सिर्फ ट्रांसफ़र हो सकती है लेकिन उसका मालिकाना हक़ नहीं मिल सकता, वो सरकार के पास है।
फैजाबाद में हार का एक कारण नजूल
आम चुनाव में फैजाबाद में भाजपा की हार के कई कारण में से एक कारण नजूल की भूमि भी थी। राम पथ और परिक्रमा मार्ग की अधिकांश जमीन नजूल की हैं। जब इस भूमि अधिग्रहण हुआ तो भूमि सरकार की निकलीं, जिनका घर तोड़ा गया चौड़ीकरण के लिए उनको मुआवजा उनकी बिल्डिंग का मिला पर जमीन का नहीं मिला। मकान पुराने थे इसलिए मुआवजा कम होता चला गया। इसकी वजह से मतदाता भापजा के प्रति उदासीन रहा और कई जगह विरोध में भी रहा है। अयोध्या में ही नजूल की जमीन को लेकर पीएमओ तक शिकायत हो चुकी है। इसी तरह से लखनऊ, प्रयागराज, कानपुर, फैजाबाद जैसे शहरों में कुछ ना कुछ भूमि नजूल की पाई जाती है।