
इलाहाबाद हाई कोर्ट फाइल फोटो।
प्रयागराज [TV47 न्यूजनेटवर्क] एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि भारतीय संविधान किसी को धर्म मानने व प्रचार करने की अनुमति देता है। यह मतांतरण (धर्म परिवर्तन) कराने की अनुमति नही देता। मतांतरण कराना एक गंभीर अपराध है। ऐसे मामलों में सख्ती की जानी चाहिए। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अनुसूचित जाति के लोगों को हिंदू से ईसाई बनाने के आरोपित की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने आंध्र प्रदेश के श्रीनिवास राव नायक की जमानत अर्जी की सुनवाई करते हुए दिया है।
आखिर क्या है पूरा मामला
-कोर्ट ने कहा, नागरिकों को अपना धर्म मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है। किसी को भी मत परिवर्तित कराने की अनुमति नहीं है। महाराजगंज के थाना निचलौल में श्रीनिवास राव नायक व अन्य के खिलाफ गरीब हिंदुओं को बहला-फुसला कर ईसाई बनाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज है।
-आरोप है याची ने लोगों को प्रलोभन दिया कि ईसाई मत अपनाने से उनके सभी दुख-दर्द दूर हो जाएंगे और उनके जीवन में खुशियां आएंगी तथा वह प्रगति करेंगे। सह-अभियुक्त विश्वनाथ ने अपने घर पर 15 फरवरी 2024 को कार्यक्रम आयोजित किया था। इसमें बड़ी संख्या में ग्रामीणों को बुलाया गया था। इसके बाद काफी लोगों ने मत परिवर्तन कर लिया।
याची का कहना था कि उसका कथित मतांतरण से कोई संबंध नहीं है। वह आंध्र प्रदेश का निवासी है। उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है। अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि याची आंध्र प्रदेश का निवासी है और महाराजगंज में मतांतरण कार्यक्रम में आया था। वह इसमें सक्रिय रूप से भाग ले रहा था, जो कानून का उल्लघंन है।
-कोर्ट ने कहा, शिकायतकर्ता को मत परिवर्तन करने के लिए राजी किया गया था, जो जमानत देने से इनकार करने के लिए प्रथम दृष्टया पर्याप्त है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि शिकायतकर्ता ने आंध्र प्रदेश निवासी आवेदक को गैरकानूनी मत परिवर्तन के मामले में झूठा फंसाया। दोनों के बीच कोई दुश्मनी भी नहीं थी।