नई दिल्ली [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। राजनीति के महासागर में रिश्तों का खेल अत्यंत जटिल और परिवर्तनशील है। नेताओं के बीच संबंध केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि स्वार्थ, अवसर और सत्ता की लालसा से बनते और टूटते रहते हैं। भारत की राजनीति में नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का रिश्ता भी इसका अपवाद नहीं है। वर्षों से उनका संबंध उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहा है, कभी दोस्ती का दिखावा, तो कभी मतभेद की दीवार। इसमें हम इन दोनों नेताओं के बीच के संबंध का इतिहास, वर्तमान परिदृश्य और आने वाले भविष्य का विश्लेषण करेंगे।
1. नीतीश कुमार का प्रारंभिक सफर और राजनीतिक शुरुआत
नीतीश कुमार का राजनीतिक जीवन सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं था, बल्कि यह राष्ट्रीय परिदृश्य का भी हिस्सा रहा है। उन्होंने अपने सफर की शुरुआत जनता दल से की, फिर जनता दल (यूनाइटेड) की स्थापना की, और अपने कार्यकाल में बिहार में सुशासन का मॉडल स्थापित किया।
सामान्य परिचय
- 1990 के दशक में बिहार में राजनीतिक ध्रुवीकरण
- जनता दल की स्थापना और सामाजिक न्याय का नारा
- जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन
- वाजपेयी सरकार में मंत्री पद, बिहार में पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी
राजनीतिक शुरुआत
1994 में नीतीश कुमार जनता दल से अलग हुए और अपनी नई पार्टी “जनता दल (यूनाइटेड)” का गठन किया। उस समय बिहार में जातीय समीकरण और सामाजिक न्याय का मुद्दा प्रमुख था। नीतीश ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत में ही साफगोई और सादगी से जनता का दिल जीता।
2. बीजेपी के साथ शुरुआत और फिर दूरी
नीतीश कुमार का बीजेपी के साथ शुरुआती संबंध अच्छा था। 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, वाजपेयी सरकार में मंत्री भी बनाए गए।
संबंध का उत्क्रमण
- 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने पर इस्तीफा देना पड़ा।
- 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का बिहार दौरा और नीतीश की प्रशंसा।
- 2003 में समता पार्टी का बीजेपी के साथ विलय और फिर जनता दल (यूनाइटेड) का गठन।
- 2005 में बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाना।
विवाद और विवादास्पद क्षण
- 2010 में पटना में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का रद्द होना, जिसमें मोदी का नाम था।
- बिहार में बाढ़ राहत के दौरान गुजरात की मदद का विज्ञापन और विवाद।
- इन घटनाओं ने दोनों नेताओं के बीच दूरी बढ़ाई।
नीतीश कुमार का यह मानना था कि भाजपा परामर्श और गठबंधन का खेल खेल रही है, और वह अपने सामाजिक आधार को सुरक्षित रखना चाहते थे।
3. मोदी का राष्ट्रीय प्रभाव और नीतीश का अलगाव
2013 में भाजपा का राष्ट्रीय समूह मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने के बाद स्थिति बदल गई। नीतीश का विरोध उग्र हो गया।
मुख्य घटनाएं:
- 2013 में गोवा में भाजपा की बैठक, जिसमें मोदी को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया।
- नीतीश का मोदी को ‘सांप्रदायिक नेता’ कह कर नकारना।
- भाजपा के साथ दूरी बनाना और अपनी सरकार से भाजपा मंत्रियों को हटाना।
- 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश का अकेले चुनाव लड़ना और हार जाना।
संबंध का टकराव:
- मोदी की चुनावी सभाओं में नीतीश पर निशाना।
- बिहार में मोदी के विकास व हिंदुत्व एजेंडे का विरोध।
- फिर भी, दोनों नेताओं के बीच का संबंध स्थाई नहीं था।
4. 2015 का महागठबंधन और सत्ता की वापसी
2015 में नीतीश कुमार ने लालू यादव की आरजेडी के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया। यह बिहार में सत्ता की नई परिभाषा थी।
मुख्य बातें:
- गठबंधन का उद्देश्य भाजपा को रोकना।
- मुख्यमंत्री पद पर फिर से नीतीश का कब्जा।
- इस गठबंधन का बिहार में सामाजिक समीकरण पर प्रभाव।
- 2017 में नीतीश का फिर से भाजपा के साथ जाना।
बदलते समीकरण:
- नीतीश का भाजपा से दूरी रखना, फिर भी समय-समय पर मिलना-जुलना।
- 2020 में फिर से भाजपा के साथ गठबंधन।
- 2022 में भाजपा से अलग होना और फिर से आरजेडी के साथ मिलना।
विशेष:
यह दौर दिखाता है कि नीतीश अपने राजनीतिक हित और अवसर पर आधारित रिश्तों को निभाते हैं।
5. मोदी का उभार और नीतीश का विरोध
2013 के बाद मोदी का राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव बढ़ने लगा। उनकी हिंदुत्व और विकास की राजनीति ने नीतीश को अलग कर दिया।
मुख्य घटनाएं:
- 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत।
- 2015-2017 के बीच मोदी का बिहार में प्रचार और नीतीश का विरोध।
- 2017 में मोदी के साथ फिर से मिलना।
- 2019 में मोदी का फिर से बिहार दौरा।
- 2022 में नीतीश का भाजपा से अलगाव।
राजनीतिक समीकरण:
- मोदी-नीतीश का संबंध स्वार्थ और अवसर आधारित।
- दोनों नेताओं का अपने-अपने वोट बैंक और सामाजिक समीकरण।
- नरेंद्र मोदी का लक्ष्य बिहार में स्थायी सत्ता।
6. वर्तमान परिदृश्य और आने वाली चुनौतियां
विशेषज्ञों की राय
- नीतीश का यह भरोसा है कि भाजपा के साथ रहकर ही वह राष्ट्रीय स्तर पर खड़ा रह सकते हैं।
- नरेंद्र मोदी का लक्ष्य बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करना।
- दोनों नेताओं का स्वार्थ और अवसर का खेल।
7. क्या रिश्तों में स्थिरता संभव है?
सभी विशेषज्ञ मानते हैं कि राजनीति में रिश्ते स्थायी नहीं होते, बल्कि स्वार्थ और अवसर के आधार पर बदलते रहते हैं।
मुख्य बिंदु:
- नीतीश का 2022 में भाजपा से अलग होना।
- मोदी का बधाई देना और फिर पलटवार।
- दोनों नेताओं के बीच के संबंध का अनिश्चितता का खेल।
- आने वाले दिनों में क्या होगा?
8. निष्कर्ष
- राजनीति में रिश्तों का स्वभाव बहुत ही अनिश्चित है।
- नीतीश और मोदी का रिश्ता स्वार्थ और अवसर का खेल है।
- स्थिरता या फिर तल्ख़ियों का बढ़ाव?
- आने वाले समय में दोनों का संबंध फिर से टकराव या मेलजोल की दिशा में जाएगा।
राजनीति का यह खेल कहता है कि रिश्ते कभी स्थायी नहीं होते। नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी का संबंध भी इसी अनिश्चितता के घेरे में है। दोनों नेताओं के बीच का यह रिश्ता स्वार्थ, अवसर और सत्ता के खेल का परिणाम है, जो कभी भी बदल सकता है। भविष्य में क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि यह खेल राजनीति का सबसे ज्वलंत और जटिल हिस्सा बना रहेगा।
