नई दिल्ली [TV 47 न्यूज नेटवर्क ]। बिहार अपने राजनीतिक परिदृश्य और चुनावी प्रक्रिया के लिए विश्वभर में जाना जाता है। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव ने भी अनेक दिलचस्प घटनाक्रम और राजनीतिक समीकरणों को जन्म दिया है। इस लेख में हम बिहार चुनाव 2025 में अपराधियों को कितने टिकट दिए गए, इसकी विस्तृत जांच करेंगे। साथ ही, यह विश्लेषण करेंगे कि किन-किन क्षेत्रों में अपराधियों का वर्चस्व रहा और इसका राज्य की राजनीतिक स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ा।
बिहार में चुनावी परिदृश्य का संक्षिप्त इतिहास
बिहार का राजनीतिक इतिहास अपराध और राजनीति के आपसी संबंधों का गवाह रहा है। यहाँ अक्सर अपराधी नेताओं को टिकट दिए जाने की परंपरा रही है, जिसका मुख्य कारण वोट बैंक, क्षेत्रीय वर्चस्व और स्थानीय सत्ता के संघर्ष हैं।
2000 के दशक से बिहार में अपराधियों का राजनीतिकरण तेजी से हुआ है। कई नेता और उम्मीदवार अपने आपराधिक रिकॉर्ड को छुपाकर चुनाव लड़ते रहे हैं, जबकि कुछ सीधे तौर पर अपराधियों के समर्थन से चुनावी मैदान में उतरते हैं।
2025 बिहार विधानसभा चुनाव: मुख्य राजनीतिक दल और उम्मीदवार
2025 के चुनाव में बिहार की राजनीति मुख्य रूप से राष्ट्रीय जनता दल (RJD), भारतीय जनता पार्टी (BJP), जनता दल (यूनाइटेड), कांग्रेस, वाम दल और कुछ क्षेत्रीय दलों के इर्द-गिर्द घूम रही थी। इस चुनाव में 243 विधानसभा सीटों के लिए मतदान हुआ।
चुनावी टिकट वितरण का आधार
यह चुनावी प्रक्रिया टक्कर का थी, जिसमें कई उम्मीदवारों ने अपने आपराधिक रिकॉर्ड का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया। फिर भी, कई क्षेत्रों में अपराधियों को टिकट दिए गए, जो चुनावी रणनीति का हिस्सा माना गया।
अपराधियों को टिकट: आंकड़ों का विश्लेषण
बिहार में चुनावी इतिहास की तुलना में 2025 में अपराधियों को टिकट देने का आंकड़ा पहले से अधिक रहा। विभिन्न चुनाव विश्लेषकों और निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, इस बार लगभग 40-45% उम्मीदवारों के पास आपराधिक रिकॉर्ड पाए गए।
कुल उम्मीदवारों में अपराधियों का प्रतिशत
- कुल उम्मीदवार: लगभग 2500
- आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार: लगभग 1100-1200 (43-45%)
- गंभीर अपराधियों (हत्या, डकैती, अपहरण आदि): लगभग 250-300
यह आंकड़ा बिहार के चुनावी इतिहास में अब तक का उच्चतम है, जो दर्शाता है कि अपराधी तत्व अभी भी राजनीति में प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।
क्षेत्रवार विश्लेषण
बिहार के विभिन्न जिलों में अपराधियों को टिकट दिए जाने के आंकड़े भिन्न हैं। विशेष रूप से, बिहार के पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी जिलों में अधिक अपराधी उम्मीदवार मैदान में हैं।
पटना और भागलपुर
पटना, बिहार की राजधानी, में लगभग 35% उम्मीदवारों के पास आपराधिक रिकॉर्ड पाए गए हैं। इनमें से कई नेता अपने क्षेत्रीय वर्चस्व को मजबूत करने के लिए अपराधियों का समर्थन प्राप्त करते हैं।
मुजफ्फरपुर और सारण
इन जिलों में भी उच्च संख्या में अपराधी उम्मीदवार मैदान में हैं। यहाँ अपराधी नेताओं का समर्थन क्षेत्रीय संघर्ष और वोट बैंक के आधार पर होता है।
पूर्वी बिहार (मोतिहारी, अररिया, किशनगंज)
यह क्षेत्र अपराधियों का गढ़ माना जाता है, जहां कई उम्मीदवारों के खिलाफ हत्या, अपहरण और डकैती के मामले दर्ज हैं।
अपराधी उम्मीदवारों का समर्थन और चुनावी रणनीति
विशेषज्ञों का कहना है कि अपराधी उम्मीदवारों का समर्थन मुख्य रूप से स्थानीय वर्चस्व, माफिया नेटवर्क और वोट बैंक के आधार पर होता है। कई बार, इन उम्मीदवारों को क्षेत्रीय दबंगों, माफिया और अपराधी गिरोहों का समर्थन प्राप्त होता है।
चुनावी रणनीति
- सामाजिक व जातीय समीकरण : अपराधी उम्मीदवार अपने जातीय और सामाजिक वोट बैंक को मजबूत करने के लिए अपराध का सहारा लेते हैं।
- आर्थिक व राजनीतिक समर्थन : कुछ नेता अपने आर्थिक व राजनीतिक हितों के कारण अपराधियों का समर्थन करते हैं।
- डर एवं धमकी का प्रयोग : पुलिस व प्रशासन का सहारा लेकर चुनाव में अपने वर्चस्व को बनाये रखने का प्रयास।
अपराधियों का राजनीतिकरण: कारण और प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार में अपराधियों का राजनीतिकरण एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है, जो कई कारणों से विकसित हुई है। इनमें प्रमुख हैं:
- सत्ता की लालसा
- वोट बैंक की राजनीति
- सामाजिक व जातीय समीकरण
- आर्थिक व अवैध वसूली का स्रोत
विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीतिकरण का परिणाम है कि अपराधी नेता चुनाव जीतने के बाद भी अपने आपराधिक कार्यकलाप जारी रखते हैं। यह स्थिति बिहार की राजनीति को स्थिरता से दूर ले जाती है, साथ ही विकास और कानून व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव डालती है।
चुनाव आयोग और कोर्ट का कदम
हालांकि, चुनाव आयोग ने कई कदम उठाए हैं ताकि अपराधी उम्मीदवारों को चुनाव प्रक्रिया से बाहर किया जा सके।
- आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की सूची जारी करना
- विवादित उम्मीदवारों की जांच
- सख्त नियमावली
फिर भी, राजनीतिक दलों और मतदाताओं का समर्थन अपराधियों को चुनावी मैदान में खड़ा रखता है। कई बार कोर्ट ने इन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने का आदेश भी दिया है, परंतु प्रभावी कार्रवाई न होने के कारण स्थिति जस की तस बनी रहती है।
बिहार में अपराधी राजनीति: आंकड़ों के पीछे का सच
अख़बारों और रिपोर्टों के अनुसार, बिहार में लगभग 60-70% अपराधी उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर मामलों का लंबा इतिहास रहा है। इनमें हत्या, डकैती, अपहरण, बलात्कार, चोरी आदि के मामलों की संख्या सबसे अधिक है।
प्रमुख अपराधी उम्मीदवारों के उदाहरण
- आरोपियों का क्षेत्रीय वर्चस्व
- उनके समर्थक और माफिया नेटवर्क
- उनके खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों का विश्लेषण
यह आंकड़े दिखाते हैं कि बिहार में अपराध और राजनीति का गहरा गठजोड़ है, जो राज्य की कानून व्यवस्था और सामाजिक स्थिरता के लिए चुनौती है।
