
इलाहाबाद हाईकोर्ट । फाइल फोटो।
उत्तर प्रदेश की न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निशानेबाज गौरव गुप्ता की शस्त्र लाइसेंस के आवेदन पर दिया गया देवरिया जिला मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया है। इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ है कि सरकारी अधिकारियों को आवेदन की प्रक्रिया में उचित न्याय और कानूनी मानकों का पालन करना चाहिए। न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने यह आदेश दिया कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया निर्णय अवैध और अनुचित था, और नए सिरे से आदेश पारित किया जाना चाहिए।
यह निर्णय खासतौर पर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि आवेदक को उचित अवसर दिया जाना चाहिए और यदि कोई त्रुटि हो, तो उसे सुधारने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। यह आदेश न केवल गौरव गुप्ता के अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि सरकारी अधिकारियों के कार्यशैली में सुधार और जवाबदेही भी सुनिश्चित करता है।
क्या है पूरा मामला
गौरव गुप्ता, जो कि एक प्रतिभाशाली निशानेबाज हैं, ने एक नवंबर 2023 को शस्त्र लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। उनका उद्देश्य खेल प्रशिक्षण और प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना था। उनके आवेदन को जिला मजिस्ट्रेट, देवरिया ने खारिज कर दिया। इस निर्णय का आधार यह था कि प्रमाणपत्रों में आवेदक ने शूटिंग की श्रेणी (प्रतिष्ठित शूटर या जूनियर शूटर) स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया था। इसके अतिरिक्त, जिला मजिस्ट्रेट ने यह भी कहा कि आवेदक द्वारा प्रस्तुत हलफनामे में आवश्यक विवरण नहीं थे।
गौरव गुप्ता ने इस निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया और याचिका दायर की। याचिका में उन्होंने कहा कि उनके आवेदन में कोई त्रुटि नहीं थी, और यदि कोई त्रुटि थी भी, तो उसे सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए था। उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें जुलाई 2025 में होने वाली प्रतिष्ठित प्री-यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेना है, जिसके बिना उन्हें प्रतियोगिता में भाग लेने से वंचित किया जाएगा।
न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल ने अपने आदेश में कहा कि जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय पूरी तरह से तर्कसंगत और कानूनी मानकों के अनुरूप नहीं था। कोर्ट ने पाया कि आवेदक को उचित अवसर दिए बिना, बिना उचित कारणों के आवेदन खारिज करना न्यायसंगत नहीं है।
कोर्ट ने यह भी माना कि शस्त्र नियम, 2016 के तहत, आवेदनकर्ता को अपने आवेदन में स्पष्टता और आवश्यक प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने का अवसर देना चाहिए। यदि कोई त्रुटि हो, तो संबंधित अधिकारी को चाहिए कि वह आवेदक को सूचित करे और सुधार का अवसर प्रदान करे।
आदेश का विवरण
- देवरिया जिला मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द किया जाए।
- जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया जाए कि वह 15 दिनों के भीतर नए सिरे से आदेश पारित करें।
- नए आदेश में यह सुनिश्चित किया जाए कि आवेदनकर्ता को अपने आवेदन में सुधार करने का उचित अवसर दिया जाए।
- यदि आवेदक ने अपनी योग्यता और श्रेणी स्पष्ट रूप से प्रदर्शित कर दी है, तो उसका आवेदन स्वीकार किया जाए।
- यदि आवश्यक हो, तो संबंधित विभाग को निर्देशित किया जाए कि वह आवेदन प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करें।
आवेदनकर्ता का पक्ष
गौरव गुप्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने आवेदन के साथ सभी आवश्यक प्रमाणपत्र और हलफनामे प्रस्तुत किए थे। उन्होंने कहा कि आवेदन में कोई भी त्रुटि नहीं थी और यदि कोई त्रुटि थी भी, तो उसे सुधारने का अवसर देना चाहिए था।
उन्होंने यह भी बताया कि गौरव गुप्ता एक प्रतिबद्ध खिलाड़ी हैं, जिनका लक्ष्य खेल के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन करना है। उन्होंने आग्रह किया कि उनका आवेदन उचित मानकों के अनुसार स्वीकार किया जाए और उन्हें आगामी प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिले।
सरकारी पक्ष का तर्क
दूसरी ओर, सरकारी वकील ने कहा कि आवेदन में स्पष्टता का अभाव था, और प्रमाणपत्रों में आवश्यक जानकारी नहीं थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि नियमों के अनुसार, आवेदन की सटीकता और श्रेणी का स्पष्ट उल्लेख होना अनिवार्य है। इसीलिए, जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय सही था और इसे बदले जाने की जरूरत नहीं है।
कोर्ट का फैसला क्यों महत्वपूर्ण है
यह फैसला इस बात का संकेत है कि सरकारी अधिकारियों को नियमों का सख्ती से पालन करना होगा और आवेदन प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। यदि कोई त्रुटि या कमी हो, तो उसे सुधारने का अवसर देना जरूरी है। इससे आवेदकों के अधिकारों की रक्षा होगी और सरकारी निर्णयों में निष्पक्षता बनी रहेगी।
यह फैसले खेलकूद के क्षेत्र में भी एक मिसाल स्थापित करता है कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, और उन्हें उचित अवसर मिलना चाहिए।