
महामंडलेश्वर चेतन गिरी
प्रयागराज [अपर्णा मिश्रा ]। चेतन गिरी जी, जो पहली बार महामंडलेश्वर बने हैं, मूल रूप से राजस्थान से हैं। उनका संबंध महानिर्वाणी अखाड़े से है, जो भारतीय संत परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। महामंडलेश्वर का पद भारतीय सनातन धर्म के साधु-संतों में उच्चतम सम्मानित पदों में से एक माना जाता है। यह पद उन संतों को दिया जाता है जो अध्यात्म, समाज सेवा और धार्मिक प्रचार-प्रसार में असाधारण योगदान देते हैं।
महानिर्वाणी अखाड़ा, जिसकी स्थापना प्राचीन काल में हुई थी, सनातन धर्म के प्रचार और भारतीय परंपराओं के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाता है। चेतन गिरी जी का महामंडलेश्वर बनना उनके तप, साधना और सेवा का प्रतीक है।
चेतन गिरी महाराज की भगवद गीता पर अगाध श्रृद्धा है। उनके अनुसार, भगवद गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला और सही मार्गदर्शन प्रदान करती है। उनकी कथा वाचन शैली और गीता के श्लोकों की व्याख्या के प्रति उनका समर्पण उन्हें भक्तों और श्रोताओं के बीच अत्यधिक प्रिय बनाता है। उनके विचारों और शिक्षाओं को समझने के लिए आइए कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर के माध्यम से उनकी व्याख्या को जानें।
प्रश्न : महाराज जी, आपका जीवन प्रेरणा से भरा है। कृपया हमें अपने प्रारंभिक जीवन के बारे में बताएं ?
उत्तर: मेरा प्रारंभिक जीवन काफी चुनौतीपूर्ण था। जब मैं 18 माह का था, मेरे पिता ने मुझे मेरे गुरु संतोष गिरी के हाथों सौंप दिया। हालांकि, बाद में उनके आदेश पर मुझे वापस घर ले जाया गया। जब मैं पांच वर्ष का हुआ, मेरी माता का देहांत हो गया। उस परिस्थिति में गुरु ने मुझे अपने साथ आश्रम लाने का निर्णय लिया और मेरी शिक्षा की पूरी जिम्मेदारी स्वयं ली।
प्रश्न : आपके नामकरण और स्कूल में दाखिले की प्रक्रिया काफी असामान्य रही। इसके बारे में कुछ बताएं ?
उत्तर: जब गुरु संतोष गिरी मुझे स्कूल में दाखिला दिलाने ले गए, तो मेरा नया नामकरण किया गया। इसके पूर्व मेरे इस शरीर के माता-पिता मुझे प्रकाश नाम से बुलाते थे। गुरु ने मेरा नाम “चेतन गिरी” रखा और पिता के नाम के स्थान पर अपना नाम दर्ज कराया। हालांकि, स्कूल प्रबंधन ने इस पर आपत्ति जताई। तब गुरु ने एसडीएम कोर्ट में गोदनामे की प्रक्रिया पूरी की, जिससे कानूनी रूप से वे मेरे संरक्षक बने। इसके बाद ही मुझे स्कूल में दाखिला मिल सका। यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने मुझे शिक्षा प्राप्त करने का अवसर दिया।
प्रश्न : आपके गुरु संतोष गिरी ने आपके जीवन पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर: गुरु जी केवल मेरे शिक्षक नहीं, बल्कि माता-पिता के समान थे। उन्होंने मेरे जीवन को संवारने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनकी देखरेख में मैंने न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि जीवन के गहरे मूल्यों को भी सीखा। कठिन परिस्थितियों में उन्होंने मुझे आत्मविश्वास और धैर्य का पाठ पढ़ाया। उनकी शिक्षा ने मुझे सिखाया कि हर चुनौती को अवसर के रूप में देखना चाहिए।
प्रश्न : महाकुंभ के महामंडलेश्वर पंडाल में आपकी उपस्थिति के बारे में बताएं ?
उत्तर: महाकुंभ में महामंडलेश्वर पंडाल एक आध्यात्मिक केंद्र है। यहां मैं भक्तों और आगंतुकों का स्नेहपूर्वक स्वागत करता हूं। गीता के श्लोकों के माध्यम से मैं जीवन की गहरी शिक्षाओं को सरल शब्दों में समझाने का प्रयास करता हूं। मेरा उद्देश्य है कि गीता की शिक्षाएं हर व्यक्ति तक पहुंचें और वे अपने जीवन को बेहतर बना सकें।
प्रश्न : भगवद गीता के किस श्लोक को आप सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं?
उत्तर: भगवद गीता का हर श्लोक महत्वपूर्ण है, लेकिन “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” (अध्याय 2, श्लोक 47) मेरे लिए विशेष है। यह श्लोक हमें निष्काम कर्म का संदेश देता है। इसका अर्थ है कि हमें अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। यही जीवन का सार है।
प्रश्न : गीता का कौन सा श्लोक महाराज जी के अनुसार जीवन में संतुलन सिखाता है?
उत्तर: “योगस्थ: कुरु कर्माणि” (अध्याय 2, श्लोक 48) इसका अर्थ है कि बिना किसी आसक्ति के, फल की चिंता किए बिना, अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्चा योग है। मन को स्थिर और शांत रखते हुए जो कार्य किया जाता है, वह न केवल सफल होता है, बल्कि हमें जीवन में संतोष और शांति भी देता है। इस श्लोक में पहली बार योग शब्द का प्रयोग किया गया है और यहीं पर इसकी परिभाषा भी दी गई है।
प्रश्न: योग का जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: योग का अर्थ केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है। यह मन और आत्मा का संतुलन है। जब हम योग की स्थिति में रहते हैं, तो हमारा मन शांति और स्थिरता में रहता है। इससे हम जीवन की चुनौतियों का सामना धैर्य और विवेक के साथ कर सकते हैं।
प्रश्न: महाराज जी, क्या गीता के सभी श्लोक जीवन में लागू होते हैं?
उत्तर: हां, गीता का हर श्लोक जीवन के किसी न किसी पहलू को दर्शाता है। चाहे वह कर्म का महत्व हो, भक्ति का मार्ग हो, या ज्ञान की चर्चा, गीता हमें हर परिस्थिति में मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसे समझने और जीवन में अपनाने से हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं।
प्रश्न : राजस्थान की संस्कृति का आपके जीवन पर क्या प्रभाव है?
उत्तर: राजस्थान की मिट्टी का रंग और वहां की संस्कृति मेरे व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा है। मेरे आतिथ्य में राजस्थान की परंपराएं झलकती हैं। गीता की शिक्षाओं को अपनाने के साथ-साथ मैंने अपनी संस्कृति से जुड़े मूल्यों को भी आत्मसात किया है।
प्रश्न : आप समाज में सकारात्मक बदलाव कैसे लाना चाहते हैं?
उत्तर: मैं शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहता हूं। मेरा सपना है कि मैं ऐसे बच्चों की मदद करूं, जो आर्थिक या सामाजिक कारणों से शिक्षा से वंचित हैं। मेरा मानना है कि शिक्षा सबसे बड़ा साधन है, जो किसी भी बाधा को पार करने की ताकत देती है।
प्रश्न : कठिनाइयों का सामना करने के लिए आप लोगों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: जीवन में कठिनाइयां आती हैं, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए। हर चुनौती को अवसर के रूप में देखना चाहिए। अपने मार्गदर्शकों और संरक्षकों के प्रति कृतज्ञ रहें और उनके मार्गदर्शन को अपने जीवन में अपनाएं। दृढ़ संकल्प और सकारात्मक दृष्टिकोण से आप किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं।
प्रश्न : गीता की शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आप क्या प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर: महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों के माध्यम से मैं गीता की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार कर रहा हूं। मेरी कोशिश है कि हर व्यक्ति गीता को केवल एक धार्मिक ग्रंथ के रूप में न देखे, बल्कि इसे जीवन जीने की कला के रूप में अपनाए। गीता हमें शांति, धैर्य और संतुलन सिखाती है, जो हर किसी के जीवन में आवश्यक है।
प्रश्न : आपके जीवन का वह क्षण, जिसने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया?
उत्तर: मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह था, जब गुरु संतोष गिरी ने मुझे अपने संरक्षण में लिया और मेरी शिक्षा की जिम्मेदारी स्वयं उठाई। उस समय की कठिन परिस्थितियों ने मुझे सिखाया कि आत्मविश्वास और सही मार्गदर्शन से जीवन की हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
प्रश्न : आने वाली पीढ़ी के लिए आपका क्या संदेश है?
उत्तर: मेरी आने वाली पीढ़ी के लिए यही सलाह है कि वे शिक्षा को अपना सबसे बड़ा हथियार बनाएं। अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करें, भले ही परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों। गीता की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाएं और अपने कर्तव्यों का पालन करें। इससे न केवल आपका जीवन बेहतर होगा, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव आएगा।
प्रश्न : आपकी योजनाएं और भविष्य के लक्ष्य क्या हैं?
उत्तर: मेरी योजना है कि मैं अधिक से अधिक लोगों तक गीता की शिक्षाओं को पहुंचाऊं। इसके साथ ही, मैं शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता हूं, ताकि हर बच्चा, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में हो, शिक्षा प्राप्त कर सके। यह मेरा सपना है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे।
प्रश्न : आपने जीवन में गीता की शिक्षाओं को कैसे अपनाया?
उत्तर: गीता ने मुझे सिखाया कि जीवन में संतुलन और स्थिरता आवश्यक है। मैंने इसे अपने जीवन में आत्मसात किया है और दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा देता हूं। हर दिन गीता के श्लोकों का अभ्यास करना और उनके गहरे अर्थों को समझना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है।
प्रश्न : अंत में, आप भक्तों और समाज को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मेरा संदेश है कि अपने जीवन को सरल और सकारात्मक बनाएं। गीता की शिक्षाओं को अपनाएं और निष्काम कर्म का अभ्यास करें। अपने जीवन में शांति और संतुलन बनाए रखें। सबसे महत्वपूर्ण, दूसरों की मदद करने का प्रयास करें और समाज में एकजुटता और सहयोग का माहौल बनाएं। यही सच्चा धर्म है।